Ambedkar Jayanti 2022 : सपने में बाबा साहेब का न्योता और मेरी जेल यात्रा

Ambedkar Jayanti 2022 : कल रात यह सोचकर जल्दी सो गया कि अगले 4 दिन छुट्टी है, लिहाजा दोस्तों से मिलने-जुलने और अध्ययन का खूब समय रहेगा लेकिन सपने में अचानक डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) आ गए...

Update: 2022-04-14 05:46 GMT

सपने में बाबा साहेब का न्योता और मेरी जेल यात्रा

सौमित्र राय की टिप्पणी

Ambedkar Jayanti 2022 : कल रात यह सोचकर जल्दी सो गया कि अगले 4 दिन छुट्टी है, लिहाजा दोस्तों से मिलने-जुलने और अध्ययन का खूब समय रहेगा लेकिन सपने में अचानक डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) आ गए। उन्होंने मुझे एक निमंत्रण पत्र दिया। मुझे एक आयोजन में वक्ता के तौर पर संविधान पर बोलना था।

हैरत में पड़कर मैंने बड़ी विनम्रता से पूछा- कार्यक्रम में तो संवैधानिक पदों पर बैठे सरकारी लोग आ रहे हैं और मैं ठहरा एक अदना नागरिक। क्या कहूंगा? बाबा साहेब बड़े प्यार से बोले- 25 नवंबर 1949 को देश की संविधान सभा में मेरा दिया गया भाषण पढ़ लो और आज जो फर्क नजर आता है, वही ईमानदारी से बोल दो।

खैर, सुबह 11 बजे से शुरू हुए कार्यक्रम में देश के आईन को लागू करने वाले विद्वानों ने बाबा साहेब के योगदान को नमन करते हुए ढेर सारी नसीहतें देनी शुरू कीं। तीसरे वक्ता के तौर पर मेरा नाम था, लेकिन पहले दोनों वक्ताओं के उद्बोधन इस कदर बोझिल थे कि सभा में एक तिहाई लोग झपकी लेने लगे।

तभी प्रस्तुतिकर्ता ने मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाते हुए मेरा नाम पुकारा। मुझे लगा, जैसे बकरे को हलाल करने से पहले उसे आखिरी बार दुलारा जा रहा हो। शून्य चेतना के साथ मैंने माइक थामी। हाथ कांप रहे थे। अचानक मुझे अपने भीतर एक नीली रोशनी का आभास हुआ। एक घूंट पानी पीकर मैंने बोलना शुरू किया।

घर से कार्यक्रम के लिए आते समय मुहल्ले की सड़क पर एक महीने से खुदी हुई नाली नजर आई। पार्षद की नेकी का बोर्ड हटा नहीं था और 3 लोग नाली में गिरकर टांग तुड़वा बैठे थे। मुख्य सड़क पर लोकतंत्र का नामोनिशान नहीं था। जिसके पास जितनी बड़ी गाड़ी, वह उतना ही तेज, बेखौफ भाग रहा था। कारें दुपहिया को और बस पैदल को रौंदने के इरादे से गुजर रही थीं। महिला चालकों को घूरने, कट मारने, उल्टी दिशा में गाड़ी भगाने का सिलसिला बदस्तूर जारी था।

सड़क पर ट्रैफिक लाइट्स बंद और सिपाही नदारद।हालांकि कुछ बुलडोज़र हाथी की तरह मस्त खड़े थे। किसी तरह बचते-बचाते 2 किलोमीटर तक आया तो देखा कि तंबू से आधी सड़क घेरी हुई है। पता चला कि भागवत कथा चल रही है। दर्जन भर पुलिसवाले मंत्रमुग्ध होकर कथा सुन रहे थे। ठेले-खोमचे वालों से लेकर झूले तक मीनाबाजार की तरह लगे थे। दर्जनों लाउडस्पीकर से भगवान के उपदेशों का चारों लोकों में मुफ्त श्रवण हो रहा था।

आधी सड़क पर जाम लगा था। वाहन चालक एक-दूसरे पर अभद्र भाषा में धौंस जमा रहे थे। एक एम्बुलेंस का हूटर शायद अंदर बैठे मरीज की थमती नब्ज को टटोल रहा था। इस अराजकता के बीच मैंने एक नागरिक के कर्तव्य को तिलांजलि देकर गाड़ी घुमाना ही ठीक समझा और 5 किलोमीटर का चक्कर लगाकर किसी तरह 15 मिनट की देरी से कार्यक्रम में पहुंच सका। ये जरुरी था, वरना शायद आप लोग मुझे अंबेडकर विरोधी मान लेते। मैं आप सब महानुभावों से माफी चाहता हूं।

इतना कहते हुए मैंने देखा कि ऊँघ रहे दर्शक अब हंसने लगे थे। मैंने बाबा साहेब के उक्त भाषण को कोट करते हुए कहा- संविधान कितना भी अच्छा हो, अगर उस पर अमल करने वाले लोग गलत हैं तो संविधान की स्थिति बुरी होगी। अब हंसते हुए चेहरों पर चिंता थी। बहरहाल, मैंने बोलना जारी रखते हुए हाल का एक उदाहरण पेश किया- ट्रेन का टिकट लेना था। वेबसाइट पर सारी सीटें फुल थीं। तत्काल कोटे से प्रीमियम लागत पर टिकट बुक करवाई। ट्रेन में सवार हुआ तो देखा दो-तिहाई सीटें खाली हैं। मुसाफिर रसीद कटवाकर फौरी टिकट कटवा रहे हैं। टीसी से पूछा तो बताया कि टिकट रद्द हुई हैं।

लोकतंत्र में लूट से बाबा साहेब चिंतित थे। उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अगर इसी तरह भ्रष्टाचार और देश से गद्दारी जारी रही तो हम दोबारा ग़ुलाम बन जाएंगे। इतना कहते ही मंच पर हलचल हुई। दोनों पूर्व वक्ता आयोजक से कह रहे थे कि उन्हें किसी और कार्यक्रम में जाना है। हाथ जोड़कर दोनों माफी मांगते हुए चले गए। दर्शकों में से कुछ सीढियां उतरते नजर आये।

मैंने बोलना जारी रखा। लूट का यह सिस्टम सब्जी के ठेले में रखे पत्थर के वजन राशन के अनाज में कंकड़, मिलावटी मसालों से लेकर आलीशान शॉपिंग मॉल तक में है। लेकिन कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को यह दिखाई नहीं देता। डॉ. अंबेडकर ने अपने भाषण में कहा था कि तीनों अंगों का कामकाज तभी सुचारू तरीके से चलेगा, जब सरकार इनके संचालन की कार्यप्रणाली को मज़बूत करे। इसके लिए सभी दलों को व्यक्ति विशेष के चेहरे को महत्व देने के बजाय देश को प्रमुखता देनी होगी।

यह कहते हुए मैं देख रहा था कि दर्शक दीर्घा में से कुछ तिलकधारी लोग मंच के पास इकट्ठा हो गए थे। उनके चेहरे पर घनी दाढ़ी और आंखें लाल थीं। तभी प्रस्तुतिकर्ता भी बगल में आकर मुझे घड़ी दिखाने लगे। मैंने उनसे थोड़ी मोहलत और और अंत में एक कविता से अपनी बात खत्म करने की मोहलत मांगी, जो मिल गई।

मैंने कवि और सामाजिक कार्यकर्ता राज वाल्मीकि की कविता पढ़ी-

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

सुनो गौर से भारत वालो

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

ज़रा इधर भी ध्यान लगालो

ज्ञान-चक्षु मैं खोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

लिंचिंग-मॉब कराने वालो

नफरत को फैलाने वालो

झूठे सत्य बनाने वालो

नीयत तुम्हारी तोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

ब्राह्मणवाद अपनाने वालो

फ़ासीवाद को लाने वालो

ओ संविधान जलाने वालो

तुम पर 'हल्ला बोल' रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

मेरा भक्त बताने वालो

जाति भेद जताने वालो

हिन्दू राष्ट्र बनाने वालो

पोल तुम्हारी खोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

देवी उसे बताने वालो

दासी उसे बनाने वालो

नाहक उसे सताने वालो

तुम पर हमला बोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

मज़हब पर लड़वाने वालो

दंगों को करवाने वालो

जनता को भरमाने वालो

भेद तुम्हारे खोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

तानाशाहो होश में आ लो

रोक सको तो रोक लगालो

बच्चे-बूढ़े-युवा संभालो

सब के मुंह से बोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

नरक-सफाई करने वालो

झाड़ू छोड़ो कलम उठालो

शिक्षा-संगठन-शक्ति बढ़ालो

बात पते की बोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

दलित-ट्राइबल-बहुजन वालो

माइनोरिटी को साथ मिला लो

मिशन-एकता को अपना लो

तोल-मोल कर बोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

लोकतंत्र के ओ रखवालो

ख़तरे में है इसे बचा लो

चुप्पी छोड़ आवाज उठा लो

समता का रस घोल रहा हूँ

मैं अंबेडकर बोल रहा हूँ

कविता की आखिरी लाइन के बीच दर्शक दीर्घा में जय श्रीराम के नारे लगने लगे। प्रस्तुतिकर्ता और मंच संचालक ने घबराकर कार्यक्रम समाप्त कर दिया और मुझे आयोजकों ने घेरकर सभास्थल से बाहर पहुंचा दिया गया। वहां पहले से तिलक, दाढ़ी और लाल आंखों के साथ कुछ लोग मौजूद थे। पीटे जाते हुए मैंने वही अपशब्द सुने जो सड़क पर कहे जा रहे थे। पुलिस की नीली गाड़ी में बिठाकर मुझे थाने से होते हुए जेल भेज दिया गया, जहां मैंने बाबा साहेब को एक कोठरी में बंद देखा।

मैं हैरत में था, सो पूछ लिया। बोले- मैं तो 1950 से ही बंद हूं। अजीब सी थरथराहट के साथ सपना टूटा। मैं अपने बिस्तर पर था। सब-कुछ पहले जैसा। बस तारीख बदली थी।

आज डॉ. बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती है।

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