हाईकोर्ट में मुंह के बल गिरा गुजरात का 'एंटी लव जिहाद लॉ', अब मर्जी से शादी रोकने की अर्जी लेकर SC जाएगी सरकार
अदालत ने कहा कि अगर एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म से ताल्लुक रखने वाले से बिना जोर-जबरदस्ती, धोखाधड़ी करके या प्रलोभन देकर शादी कर लेता है तो ऐसी शादी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के तहत नहीं मानी जाएगी....
जनज्वार डेस्क। गुजरात हाईकोर्ट द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानून में सुधार की मांग करने वाली राज्य की याचिका खारिज कर दी गई है। इसके बाद राज्य के गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने 26 अगस्त को कहा कि लव जिहाद कानून हमारी बेटियों के साथ खिलवाड़ करने वाली जिहादी ताकतों को नष्ट करने के लिए हथियार के रूप में लाया गया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
गुजरात हाईकोर्ट ने नए धर्मांतरण रोधी कानून की धारा पांच पर लगी रोक को हटाने से जुड़ी राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। धर्म की आजादी (संशोधन) बिल 2021 की धारा पांच के तहत किसी भी व्यक्ति को धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के लिए धार्मिक पुजारियों को जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा जिन्होंने धर्म परिवर्तन कर लिया है, उन्हें भी एक निर्धारित प्रपत्र में जिला मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना देनी होगी।
मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी की दलीलें सुनने के बाद कहा कि हमें 19 अगस्त को दिए आदेश में बदलाव करने का कोई कारण नहीं मिला। महाधिवक्ता ने राज्य सरकार की ओर से पीठ को बताया कि अधिनियम की धारा 5 मूल कानून लागू होने यानी 2003 के बाद से थी और इसका विवाह से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कोर्ट को यह समझाने की कोशिश की कि धारा 5 पर रोक वास्तव में पूरे कानून पर रोक की तरह ही होगी और कोई भी धर्मांतरण से पहले अनुमति लेने के लिए अधिकारियों से संपर्क नहीं करेगा।
इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने 19 अगस्त को जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर पिछले हफ्ते फैसला सुनाया था। जमीयत ने इस कानून पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिका पर फैसला देते हुए उच्च न्यायालय ने 19 अगस्त को अनुच्छेद 3, 4, 4ए से 4सी, 5, 6 और 6ए पर रोक लगा दी। इस दौरान अदालत ने गैरकानूनी तरीके से हुए धर्म परिवर्तन पर भी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि अगर एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म से ताल्लुक रखने वाले से बिना जोर-जबरदस्ती, धोखाधड़ी करके या प्रलोभन देकर शादी कर लेता है तो ऐसी शादी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के तहत नहीं मानी जाएगी।
गुजरात में यह नया कानून 15 जून को अस्तित्व में आया था। इसके तहत पांच साल की सजा और अधिकतम 5 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। इसे धार्मिक स्वतंत्रता एक्ट, 2003 में संशोधन करके लाया गया था। सरकार ने इस अधिनियम में पीड़िता के नाबालिग होने पर 7 साल तक की कैद और 3 लाख रुपए तक का जुर्माने का प्रावधान किया है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के लिए भी कम से कम 7 साल की सजा का प्रावधान है।
उन राज्यों की ओर से इसी तरह के कई कानूनों को या तो पारित कर दिया गया था या फिर पारित करने की योजना बनायी जा रही थी, जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सत्ता में है, इस अधिनियम में खासतौर पर शादी के जरिये महिलाओं के 'धोखाधड़ी' के साथ धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गयी है। सीधे शब्दों में कहा जाये, तो इस अधिनियम के ज़रिये ख़ास तौर पर हिंदू महिलाओं के (लेकिन आख़िरी तौर पर नहीं) मुस्लिम पुरुषों के साथ शादी किये जाने को रोकने की कोशिश की गयी है, जब महिलाओं का शादी करने के चलते धर्मांतरण करवा दिया जाता है।
न्यायाधीशों ने हिंदुत्व के दुष्प्रचारकों की ओर से लगातार उठाये जा रहे उस हौवे पर लगाम कस दी है कि हिंदू और मुस्लिम से जुड़े सभी विवाह हिंदुओं को इस्लाम में धर्मांतरित करने की इच्छा से ही प्रेरित होते हैं। हिंदुओं और ईसाइयों के बीच होने वाले विवाह को भी इस अधिनियम के लक्ष्य के दायरे में रखा गया है।
यह गुजरात अधिनियम पहली ही नज़र में साफ़ तौर पर कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उनमें से धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (संविधान का अनुच्छेद 25) और निजता का अधिकार (अगस्त 2017 में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा बरक़रार रखा गया और ख़ास तौर पर अनुच्छेद 14, 19 और 21 से लिया गया अधिकार) शामिल हैं। निजता का अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में राज्य की ओर से किसी भी तरह की दखलंदाजी को खारिज करता है, जब तक कि उसमे सार्वजनिक सुरक्षा या अवैध गतिविधियों के सवाल शामिल न हों।