हाथरस मामला : पीड़िता की पहचान उजागर करने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई स्थगित
याचिका में कहा गया है कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, विभिन्न मीडिया घरानों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने कथित तौर पर पीड़िता से संबंधित जानकारी प्रकाशित की, जिससे उसकी पहचान का खुलासा हुआ।
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हाथरस पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के लिए मीडिया घरानों और सोशल मीडिया संगठनों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। न्यायमूर्ति डी. एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने उनके खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश देने की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए फेसबुक, ट्विटर और विभिन्न मीडिया संस्थानों को 19 मार्च तक का समय दिया है।
पिछले साल 14 सितंबर को हाथरस के एक गांव में एक पीड़िता के साथ उसके ही गांव के चार लड़कों ने कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था। पीड़िता को दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसने दम तोड़ दिया था। इसके बाद पुलिस ने कथित तौर पर जल्दबाजी में पीड़िता का उसके गांव में आधी रात को अंतिम संस्कार कर दिया था, जिसके बाद राजनीति काफी गर्मा गई थी।
याचिका में कहा गया है कि दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद, विभिन्न मीडिया घरानों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने कथित तौर पर पीड़िता से संबंधित जानकारी प्रकाशित की, जिससे उसकी पहचान का खुलासा हुआ।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा है, "उचित कार्रवाई करें, ताकि सभी उत्तरदाता किसी विशेष मामले या इसी तरह के मामलों में पीड़िता की पहचान के विवरण के संदर्भ में किसी भी सामग्री, समाचार लेख, सोशल मीडिया पोस्ट या उनके द्वारा प्रकाशित किसी भी जानकारी को साझा न कर सकें।"
कानूनी कार्रवाई के अलावा, याचिकाकर्ता ने पुलिस को कानून के तहत प्रावधानों के बारे में लोगों को जागरूक करने की बात भी कही है। याचिकाकर्ता ने पुलिस की ओर से कानूनी जागरूकता शिविर, साक्षरता शिविर, व्याख्यान, इंटरैक्टिव कार्यशालाएं, समाचार पत्र विज्ञापन, होर्डिग्स आदि के जरिए इस दिशा में जागरूकता लाने की भी मांग की है।
याचिकाकर्ता मनन नरूला ने दिल्ली पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 228ए के तहत दुष्कर्म पीड़िता की पहचान को उजागर करने के लिए आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
धारा 228 ए में नाम या किसी भी मामले को छापने या प्रकाशित करने पर रोक है, जो दुष्कर्म के आरोपी और पीड़िता की पहचान को उजागर कर सकता है। इसके लिए दो साल तक कारावास की सजा हो सकती है और पहचान उजागर करने के लिए जुर्माना भी ठोंका जा सकता है।