हांगकांग : भेड़ और भेड़िया की पुस्तक पर 5 लेखकों को देशद्रोह की सजा

सभी आरोपी मिलकर बच्चों के लिए एक चित्रों वाली पुस्तक की श्रृंखला प्रकाशित कर रहे थे, जिसमें लोकतंत्र समर्थकों को भेड़ और इसे कुचलने वालों को भेड़िया के तौर पर दिखाया गया है.....

Update: 2021-07-23 10:19 GMT

(हांगकांग में वर्ष 1997 से पिछले वर्ष 2020 के जून तक किसी को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया था)

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। हांगकांग में 5 व्यक्तियों पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जा रहा है क्योंकि वे भेड़ और भेड़िया के सचित्र किताबों के माध्यम से बच्चों को अपने देश का लोकतांत्रिक इतिहास बता रहे थे। इसमें दो पुरुष और तीन महिलायें हैं और सभी की उम्र 25 से 28 वर्ष के बीच है। सभी आरोपी हांगकांग के जनरल यूनियन ऑफ़ स्पीच थेरेपिस्ट के सदस्य हैं।

इन लोगों को हांगकांग में जून 2020 से चीन द्वारा नेशनल सिक्यूरिटी लॉ थोपे जाने के बाद गठित न्यू नेशनल सिक्यूरिटी पुलिस यूनिट ने गिरफ्तार किया है, और इनपर देशद्रोह के साथ ही सामाजिक सद्भावना बिगाड़ने, हिंसा भड़काने का प्रयास, अवैध काम करने और स्थापित कानूनों की अवहेलना का आरोप लगाया है। हांगकांग के कानून के तहत देशद्रोह का आरोप पहली बार साबित होने पर कम से कम दो वर्ष की कैद की सजा का प्रावधान है।

सभी आरोपी मिलकर बच्चों के लिए एक चित्रों वाली पुस्तक की श्रृंखला प्रकाशित कर रहे थे, जिसमें लोकतंत्र समर्थकों को भेड़ और इसे कुचलने वालों को भेड़िया के तौर पर दिखाया गया है। इसमें बताया गया है कि किसतरह से शांतिप्रिय भेड़ों के गाँव को चारों तरफ से भेदिया घेर लेते हैं, और भेड़ अपने गाँव को बचाने के लिए क्या करती हैं। पिछले महीने इस श्रृंखला की तीन पुस्तके प्रकाशित की गईं थीं, जो बाजार में आते ही बच्चों के साथ ही बड़ों में भी बहुत लोकप्रिय हैं।

श्रृंखला की पहली पुस्तक है, "Guardians of Sheep Village"। इसमें वर्ष 2019 के लोकतंत्र समर्थक देशव्यापी आन्दोलन को इसी कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। दूसरी प्रकाशित पुस्तक है – Janitors of Sheep Village। इसमें चित्रों के माध्यम से बताया गया है, कुछ भेड़िये भेड़ों के गाँव में जबरन घुस आये हैं और गाँव में यहाँ-वहां कचरा फैला रहे हैं। चारों तरफ बिखरे कचरे को देखकर भेड़ों के गाँव के सफाईकर्मी हड़ताल पर चले जाते हैं।

दरअसल पिछले वर्ष हांगकांग के स्वास्थ्यकर्मी और सफाईकर्मी कोविड 19 के कारण चीन से आने वालों पर पाबंदी लगाने की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए थे, इस पुस्तक में इसी वाकये को बच्चों के लिए चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। तीसरी प्रकाशित पुस्तक है – 12 braves of Sheep Village। इस वर्ष के शुरू में हांगकांग के 12 लोकतंत्र समर्थक एक स्पीडबोट के सहारे ताइवान तक पहुँच गए थे, पर बाद में उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया गया। तीसरी पुस्तक में इसी घटना को भेड़ और भेड़ियों के चित्रों के माध्यम से बताया गया है।

हांगकांग में वर्ष 1997 से पिछले वर्ष जून तक किसी को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया था, पर इसके बाद चीन द्वारा नेशनल सिक्यूरिटी लॉ थोपे जाने के बाद से लगभग हरेक सप्ताह देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तारियां हो रही हैं। इस मामले में मोदीमय भारत हांगकांग से सीधी टक्कर ले रहा है। यहाँ पर भी देशद्रोह और आतंकवादी आरोप के साथ लगभग हरेक सप्ताह किसी न किसी को जेल में डाला जाता है। हमारे देश में भी जानवरों के माध्यम से बच्चों को ज्ञान, परंपरा और नीति सिखाने की एक परंपरा रही है।

पंडित विष्णु शर्मा द्वारा लिखा गया पंचतंत्र हमारे जनमानस में बसा है। जरा सोचिये, पंडित विष्णु शर्मा ने "रंगा सियार" जैसी कहानी के साथ पंचतंत्र इस दौर में लिखा होता तो वे भी देशद्रोही करार दिए गए होते। इसमें एक सियार की कहानी है, जो रंगरेज के रंग के बर्तन में गिर गया, और उसके रंग हरा हो गया। इसके बाद उससे सभी जंगली जानवर डरने लगे, क्योंकि उसकी पहचान छुप गयी थी।

हरे रंग से सराबोर सियार ने सभी जंगली जानवरों को इकट्ठा किया और ऐलान किया की उसे ईश्वर ने उनकी रक्षा करने को भेजा है और ईश्वर ने कहा है कि राजपाट रंगें सियार के हवाले कर दिया जाए। ईश्वर की मर्जी सुनकर राजा शेर ने खुशी-खुशी राजपाट सियार के हवाले कर दिया। कुछ दिनों बाद एक दिन राजा की सभा चल रही थी, रात हो गयी और उस समय सभी सियार संवर स्वर में अपनी आवाजें निकाल रहे थे। इन आवाजों को सुनते ही राजा रंगा सियार भी अपनी आवाज निकालने लगा। इसके बाद उसकी असलियत सबके सामने आ गयी और फिर सभी जानवरों ने मिलकर उसे मार डाला। यह कहानी बताती है कि झूठ, फरेब, लूट इत्यादि अधिक दिनों तक छुपी नहीं रहती।

इस कहानी में आज के दौर के सत्ता की धमक स्पष्ट है, तो क्या इस कहानी पर पंडित विष्णु शर्मा को देशद्रोह की सजा नहीं होती, वे माओवादी नहीं बताये गए होते, उनके फोन टैप नहीं किये जाते, उनके लैपटॉप पर सरकार अपनी तरफ से फाइलें नहीं डलवाती? आज के दौर में देश में एक ही वक्ता हैं और एक ही लेखक भी जो फर्जी डिग्री के बाद भी महान ग्रन्थ, "एग्जाम वारियर्स" लिखते हैं।

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