ब्याज के बोझ तले दबते गरीब देश, चीन सस्ते ब्याज दर पर कर्ज देकर करता है गरीब देशों के आतंरिक और रक्षा मामलों में हस्तक्षेप
दुनिया के 88 देशों के कुल सरकारी खर्चे में से 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कर्ज उतारने में खर्च किया जा रहा है। यदि इस दर को 5 प्रतिशत पर रोका जा सके तो 3 करोड़ 33 लाख आबादी को स्वच्छता की सुविधा, 1 करोड़ 70 लाख को स्वच्छ पेयजल, 50 लाख बच्चों को बेहतर शिक्षा और 60 हजार से अधिक माताओं और शिशुओं को जीवनदान दिया जा सकता है...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Debt restructuring of poor countries has huge social and economic benefits. यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट एड्रुज और यूनिवर्सिटी ऑफ़ लिस्टर के अर्थशास्त्रियों और समाज शास्त्रियों के एक दल ने सम्मिलित तौर पर गरीब देशों पर बोझ बनते कर्जे का विस्तृत आकलन किया है। इसके अनुसार इन देशों पर लादे गए कर्जे को वसूलने की दर को कम करने की जरूरत है, तभी इन देशों में सामाजिक सुधार हो सकता है। सामाजिक और आर्थिक सुधार के नाम पर दिए कर्जों की वसूली के वर्तमान दरों के कारण इन देशों में सामाजिक और आर्थिक विकास पीछे जा रहा है। इस अध्ययन को डेब्ट जस्टिस नामक संस्था ने प्रकाशित किया है।
इस अध्ययन के अनुसार गरीब देशों से कर्ज वसूली की दर में व्यावहारिक कमी करने पर इन देशों के 50 लाख से अधिक बच्चों की शिक्षा और लगभग 1 करोड़ 70 लाख लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल का इंतजाम किया जा सकता है। इसके साथ ही 60000 से अधिक माताओं और शिशुओं की असामयिक मृत्यु को रोका जा सकता है। पिछले तीन दशकों की तुलना में वर्तमान में गरीब और विकासशेल देशों पर कर्ज का बोझ सर्वाधिक है।
इस दल के अनुसार 39 देशों में कर्ज के बोझ का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन देशों में कुल सरकारी खर्च का 22 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कर्ज उतारने में खर्च होता है। अध्ययन में कहा गया है कि यदि कर्ज के इस बोझ को कुल सरकारें खर्च के 14 प्रतिशत तक सीमित किया जा सके तो 1 करोड़ 60 लाख आबादी को स्वच्छता की सुविधा, 70 लाख को स्वच्छ पेय जल, 20 लाख बच्चों को बेहतर शिक्षा और 30 हजार से अधिक माताओं और शिशुओं को जीवन दान दिया जा सकता है।
इसी तरह दुनिया के 88 देशों के कुल सरकारी खर्चे में से 15 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कर्ज उतारने में खर्च किया जा रहा है। यदि इस दर को 5 प्रतिशत पर रोका जा सके तो 3 करोड़ 33 लाख आबादी को स्वच्छता की सुविधा, 1 करोड़ 70 लाख को स्वच्छ पेयजल, 50 लाख बच्चों को बेहतर शिक्षा और 60 हजार से अधिक माताओं और शिशुओं को जीवनदान दिया जा सकता है।
डेब्ट जस्टिस नामक एक संगठन ने बताया है कि दुनिया के गरीब देशों पर इस वर्ष ब्याज का बोझ पिछले 25 वर्षों में सर्वाधिक है। लन्दन स्थित यह संगठन आर्थिक मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करता है, और गरीब देशों द्वारा लिए जाने वाले कर्जे और फिर चुकाए जाने वाले ब्याज का आकलन करता है। दुनिया के 91 गरीब देशों द्वारा लिए गए कर्जे और व्याज के आधार पर डेब्ट जस्टिस ने बताया है कि इस वर्ष इन देशों को अपनी वार्षिक आय का औसतन 16.3 प्रतिशत हिस्सा केवल व्याज के तौर पर चुकाना होगा।
वर्ष 2011 में कुल राष्ट्रीय आय में व्याज का हिस्सा महज 6.6 प्रतिशत था, यानी वर्ष 2023 तक इसमें 150 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। कुल राष्ट्रीय आय के सन्दर्भ में ब्याज का हिस्सा वर्ष 2020 में 12.9 प्रतिशत, वर्ष 2021 में 13.4 प्रतिशत, वर्ष 2022 में 16.2 प्रतिशत, वर्ष 2023 में 16.3 प्रतिशत और वर्ष 2024 में 16.7 प्रतिशत का अनुमान है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि गरीब देश कर्ज के बोझ से पूरी तरह घिर चुके हैं।
हरेक देश तथाकथित विकास के नाम पर कर्ज लेते हैं और वैश्विक आपदा या फिर आर्थिक मंदी के दौर में कर्ज अधिक हो जाता है। हाल में ही कर्ज नहीं मिलने की सूरत में पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पड़ते प्रभाव को दुनिया ने देखा है। पिछले वैश्विक महामारी, कोविड 19, के बाद से गरीब देशों पर कर्ज का बोझ बढ़ गया है। कर्ज देना, वैश्विक स्तर पर अमीर देशों द्वारा अपनी साख बढाने का एक तरीका भी है, इस तरीके को अपनाने में चीन सबसे आगे है। चीन पहले सस्ते ब्याज दर पर कर्ज देता है और फिर उस देश के आतंरिक मामलों और रक्षा मामलों में हस्तक्षेप करता है। पहले यह काम अमेरिका और रूस करते थे, आज भी करते हैं पर चीन जितने व्यापक तरीके से नहीं करते।
डेब्ट जस्टिस की रिपोर्ट में गरीब देशों द्वारा लिए जाये कर्ज के स्त्रोतों का विश्लेषण भी है। सबसे अधिक, 46 प्रतिशत, कर्ज निजी देनदारों द्वारा लिया गया है। इसके बाद 30 प्रतिशत कर्ज विश्व बैंक या आईएमऍफ़ जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा लिए गए हैं; 12 प्रतिशत कर्ज का स्त्रोत चीन है, जबकि शेष 12 प्रतिशत कर्ज दूसरे देशों से लिए गए हैं।
डेब्ट जस्टिस के अनुसार गरीब देशों पर व्याज का बोझ चरम स्थिति में पहुँच गया है, अधिकतर देश इस बोझ से उबार नहीं पायेंगे और उनकी अर्थव्यवस्था डूब जायेगी। इस समय 144 से अधिक विकासशील देशों के कुल सरकारी खर्च का औसतन 42 प्रतिशत और जीडीपी का 8.4 प्रतिशत कर्ज उतारने में खर्च हो रहा है। यह स्थिति दुनिया के बाकी देशों के लिए भी भयावह है, और इससे चीन जैसे देशों का नियंत्रण दुनिया पर बढ़ता जाएगा।
ब्याज के बढ़ते बोझ के कारण जनता के विकास की परियोजनाओं में कटौती की जा रही, जलवायु परिवर्तन रोकने के उपायों को नजरअंदाज किया जा रहा है और पूरे दुनिया में मानवाधिकार का हनन किया जा रहा है। इस स्थिति से गरीब देशों को बाहर करने के लिए जरूरी है कि एक बार अबतक के ब्याज को पूरे तरफ से माफ़ कर दिया जाए, या फिर व्याजदर में भारी कटौती की जाए।
संदर्भ:
1. https://debtjustice.org.uk/news/debt-cancellation-could-put-5-million-more-children-in-school
2. https://www.theguardian.com/world/article/2024/jul/21/developing-countries-face-worst-debt-crisis-in-history-study-shows