फारूक अब्दुल्ला पीएजीडी के अध्यक्ष नियुक्त, बोले- हमारा गठबंधन भाजपा विरोधी है, देश विरोधी नहीं
15 अक्टूबर को मुख्यधारा की कश्मीरी पार्टियों ने पीएजीडी (पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन) पर हस्ताक्षर किया था, जिसका उद्देश्य जम्मू एवं कश्मीर में बीते वर्ष 5 अगस्त को किए गए संवैधानिक बदलाव को वापस पूर्व की स्थिति में लाने का है....
श्रीनगर। जम्मू एवं कश्मीर में मुख्यधारा की कश्मीरी पार्टियों की अगुवाई में हाल ही में अस्तित्व में आई पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन(पीएजीडी) ने शनिवार को नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला को इसका अध्यक्ष चुना।
इसके साथ ही पीडीपी की महबूबा मुफ्ती को उपाध्यक्ष, पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन को प्रवक्ता और माकपा नेता युसूफ तारागामी को कंवेनर की जिम्मेदारी सौंपी गई है। एलायंस ने पूर्व राज्य जम्मू एवं कश्मीर के झंडे को अपना चिह्न बनाया है।
अब्दुल्ला ने पत्रकारों से कहा, 'यह देशविरोधी अलायंस नहीं है, यह भाजपा-विरोधी एलायंस है। हमारा उद्देश्य यह है कि जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के लोगों के अधिकारों को बहाल किया जाए।'
15 अक्टूबर को, मुख्यधारा की कश्मीरी पार्टियों ने गुपकर घोषणा पर हस्ताक्षर किया था, जिसका उद्देश्य जम्मू एवं कश्मीर में बीते वर्ष 5 अगस्त को किए गए संवैधानिक बदलाव को वापस पूर्व की स्थिति में लाने का है।
वहीं राज्य के अलग झंडे के मुद्दे पर महबूबा मुफ्ती को अपना समर्थन देते हुए कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सैफुद्दीन सोज ने शनिवार को कहा कि महबूबा का पूर्व राज्य जम्मू एवं कश्मीर के झंडे के बारे में विचार राज्य के लोगों की इच्छा को दर्शाता है। उन्होंने कहा, 'महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर एक औसत कश्मीरी की भावना को व्यक्त किया है कि वह तबतक तिरंगे को नहीं फहराएंगी, जबतक पूर्व राज्य का झंडा नहीं मिल जाता।'
उन्होंने कहा, 'मोदी सरकार ने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण कर दिया है, यह एक सर्वविदित तथ्य है। यह छोटी बात नहीं है कि अमेरिका के नोम चोमस्की और स्पेन के जोहान गाल्टुंग जैसे विद्वानों ने मोदी सरकार द्वारा कश्मीरियों के साथ किए जा रहे व्यवहार के खिलाफ अपनी आवाज उठायी है। दोनों विद्वानों ने कहा है कि कश्मीर एक जेल में तब्दील हो गया है, जहां की पूरी आबादी कैदियों की तरह रह रही है।'
उन्होंने कहा, 'आज या कल अनुच्छेद 370 को बहाल करना होगा। नहीं तो, राज्य और केंद्र के बीच संवैधानिक संबंध संकटग्रस्त स्थिति में बने रहेंगे।'