जम्मू-कश्मीर में UAPA कोर्ट ने फार्मासिस्ट को दी जमानत, कहा उसे झूठा फंसाया

आरोपों को 'उसे झूठा फंसाने का सफल प्रयास' करार देते हुए अदालत ने कहा कि जहूर अहमद को जम्मू सेंट्रल जेल से 25,000 रूपये के साथ जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए और उसका नाम अन्य किसी मामले में नहीं है....

Update: 2020-08-29 08:08 GMT

श्रीनगर। एक विशेष यूएपीए न्यायाधीश ने जम्मू-कश्मीर कारागार विभाग को पिछले आठ महीनों से अधिक समय से सरकार के साथ कार्यरत एक फार्मासिस्ट को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि कड़े यूएपीए कानून के तहत किसी भी अपराध में उसकी संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वह आतंकवादी तक भी दवा पहुंचाने का इरादा रखता था तो वह केवल 'अपना पेशेवर कर्तव्य को निभा रहा था'।

मारवाह निवासी ज़हूर अहमद को किश्तवाड़ जिले में 6 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। जम्मू के तीसरे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुनीत गुप्ता ने कहा कि पुलिस ने उनसे कुछ दवाएं बरामद की थी और उसे यूएपीए के तहत किसी भी अपराध में शामिल नहीं किया जा सकता है।

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक आरोपों को 'उसे झूठा फंसाने का सफल प्रयास' करार देते हुए अदालत ने कहा कि जहूर अहमद को जम्मू सेंट्रल जेल से 25,000 रूपये के साथ जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए और उसका नाम अन्य किसी मामले में नहीं है।  

जम्मू-कश्मीर सरकार के स्वास्थ्य विभाग के साथ कार्यरत अहमद मारवाह तहसील के रेनिया में तैनात थे। उनके वकील फहीम शोकत बट ने कहा कि रिकॉर्ड में उनकी कोई घटिया सामग्री नहीं लायी गयी थी फिर भी उन्हें जेल में रखा गया है।

न्यायाधीश ने जमानत के खिलाफ अतिरिक्त लोक अभियोजक के तर्कों को खारिज कर दिया, जिसमें अहमद का नाम हिज्बुल मुजाहिद्दीन के नौ अन्य लोगों के साथ संपर्क, आतंकियों को सुरक्षा के बारे में जानकारी प्रदान करने और आतंकी कमांडर मोहम्मद अमीन उर्फ जहांगीर सरोरी के लिए धन की व्यवस्ता करने का दावा किया गया था। 

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न्यायधीश गुप्ता ने कहा, पूरी फाइल से गुजरते हुए मुझे एक भी गवाह नहीं मिला जिसका बयान दर्ज किया गया हो, जिसने आवेदक जहूर अहमद के खिलाफ एक भी शब्द बोला हो। उन्होंने आगे कहा, 'उनके द्वारा किए गए अपराध गैरकानूनी गतिविधियों, साजिश, आतंकवादियों को शरण देने और आतंकवादी संगठन को दिए गए समर्थन के संबंध में हैं, लेकिन इनमें से किसी भी अपराध को अभियोजन पक्ष के किसी भी गवाह ने नहीं सुना है, जिनके बयान आईओ (जांच अधिकारी) द्वारा दर्ज किए गए थे ... या यहां तक कि गवाह जिनके बयान धारा 164, सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए थे।

यूएपीए अदालत ने उल्लेख किया कि अहमद के खिलाफ कोई भी सबूत पाने में विफल रहने पर, IO ने 'एक गवाह अख़्तर हुसैन के बयान की एक कॉपी किसी अन्य मामले में धारा 13, 18, 19, 38, 39, 39 के तहत अपराधों के लिए संलग्न की थी।'

न्यायाधीश गुप्ता ने कहा, 'बयान की उक्त प्रति की ताकत जांच अधिकारी ने जहूर अहमद को झूठा फंसाने का सफल प्रयास किया है, उक्त बयान के अनुसार अहमद को किसी भी ऐसी गतिविधि में शामिल नहीं पाया गया है जिसे 'गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम' के तहत अपराध कहा जा सकता है। 

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