Monkey Pox Alert : भारत को फिर चेचक का टीका बनाने की जरूरत है?

Monkey Pox Alert : सावधानी इसलिए, क्योंकि केंद्र सरकार की गाइडलाइन में कहा गया है कि देश में अगर मंकी पॉक्स का एक भी मामला सामने आता है तो उसे महामारी की शुरुआत माना जाएगा। इसके साथ ही दुनिया के कुछ देशों की तरह भारत में इस सवाल पर बहस शुरू हो गई है कि क्या अस्सी के दशक में खत्म हो चुके चेचक के टीके का उत्पादन फिर शुरू किया जाना चाहिए...

Update: 2022-06-01 10:35 GMT

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सौमित्र रॉय की रिपोर्ट

Monkey Pox Alert : कोविड का खतरा भारत और दुनिया के लिए अभी पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुआ कि मंकी पॉक्स (Monkey Pox) का खतरा मंडराने लगा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मंकी पॉक्स के 600 से अधिक मामले दुनिया के 30 देशों में सामने आए हैं। हालांकि, भारत में अभी तक इसका कोई भी मामला सामने नहीं आया है, लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को इसकी जांच और उपचार की गाइडलाइन जारी कर दी है, साथ ही राज्यों को अधिकतम सतर्कता बरतने को कहा गया है।

सावधानी इसलिए, क्योंकि केंद्र सरकार की गाइडलाइन में कहा गया है कि देश में अगर मंकी पॉक्स (Monkey Pox) का एक भी मामला सामने आता है तो उसे महामारी की शुरुआत माना जाएगा। इसके साथ ही दुनिया के कुछ देशों की तरह भारत में इस सवाल पर बहस शुरू हो गई है कि क्या अस्सी के दशक में खत्म हो चुके चेचक के टीके का उत्पादन फिर शुरू किया जाना चाहिए? बहस इसलिए हो रही है, क्योंकि मंकी पॉक्स का वायरस चेचक से ही पैदा हुआ है और इसके टीके से बच्चों को खासतौर पर इस बीमारी के दुष्परिणामों से बचाया जा सकता है।

चेचक से कितना अलग है मंकी पॉक्स ?

मुंबई स्थित यूनिसन मेडिकेयर एंड रिसर्च सेंटर के प्रमुख ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि मंकी पॉक्स चेचक परिवार का ही वायरस है और इसमें भी वही वैक्सीनिया है, जिससे चेचक का टीका बनाया गया है। माना जाता है कि मंकीपॉक्स तब पैदा हुआ, जब 1979-80 के दौरान दुनियाभर में चेचक का खात्मा हो गया। उसके बाद चेचक के टीके का उत्पादन रोक दिया गया। परेशानी की बात यह है कि मंकी पॉक्स भी सार्स कोविड-2 की तरह जूनोटिक वायरस से बना है। कोविड की महामारी का कहर दुनिया देख चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि अकेले भारत में 47 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। गिलाडा के अनुसार, मंकी पॉक्स का उदय मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षा वनों में गिलहरियों, चूहों और बंदरों में हुआ। इस वायरस की दो प्रजातियां पश्चिम अफ्रीका और कांगो में पाई जाती हैं। अकेले कैमरून में इसकी दोनों प्रजातियों का पता चला है।

क्यों खतरा बन गया है मंकी पॉक्स ?

मंकी पॉक्स दुनियाभर में इसलिए खतरा बन गया है, क्योंकि यह अफ्रीकी देशों से बाहर निकलकर अब अमेरिका और यूरोप तक पहुंच चुका है। यूरोप एक ऐसी जगह है, जहां एक देश में उतरकर मुसाफिर 19 अन्य देशों में घूम सकते हैं। फिर इन देशों की यात्रा कर स्वदेश आने वाले यात्रियों से मंकी पॉक्स उन लोगों में फैला, जिन्होंने यात्रा नहीं की है। यही कारण है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सभी राज्यों को हवाई अड्डों पर कड़ी निगरानी रखने को कहा है। मंकी पॉक्स संक्रमित व्यक्ति से तरल स्राव या श्वसन तंत्र से निकलने वाली बूंदों से एक सीमित क्षेत्र में फैल सकता है। इसके संक्रमण से तेज बुखार, शरीर में फफोले जैसे दाने आने और शरीर के अंगों में सूजन, चक्कर आने, कमजोरी या थकान जैसे लक्षण उभर सकते हैं, जो 5 से 21 दिन तक रहते हैं। इसकी जांच दो स्तरों पर होती है। शरीर के द्रव्यों या नाक के रास्ते से नमूने इकट्ठा कर पहले तो चार तरह के चेचक वायरस की जांच होती है और इनमें से किसी भी एक वायरस के मिलने पर मंकी पॉक्स की जांच पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

मास्क को क्यों भूलते जा रहे हैं लोग?

कोविड संक्रमण (Covid Infection) से बचाव में 95% तक कारगर चेहरे के मास्क को भारत में लोग पुराने मुश्किल दिनों की याद के रूप में भूलते जा रहे हैं, क्योंकि देश में कोविड संक्रमण के मामले बहुत कम हैं। कोविड के दोनों टीकों के बाद अब बूस्टर डोज भी उपलब्ध हैं। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने बयान में कहा है कि मंकी पॉक्स के फैलने का एक बड़ा कारण संक्रमित व्यक्ति के शरीर से निकले तरल पदार्थ हैं, जो छींक के रूप में नाक या खांसते समय मुंह से निकलते हैं। इनसे बचने के लिए मास्क सबसे सुरक्षित उपाय है। लेकिन मंकी पॉक्स पर रोकथाम के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी करते हुए इस सबसे पहले बचाव, यानी मास्क पर ज्यादा जोर नहीं दिया है। इसके अलावा मंकी पॉक्स जानवरों से इंसानों में भी फैल सकता है। अगर संक्रमित जानवर से इंसान को कोई खरोंच भी आती है तो वायरस का संक्रमण हो जाता है। जिन परिवारों में पालतू जानवर हैं, उन्हें इससे ज्यादा खतरा है।

मंकी पॉक्स को कितना रोक सकता है शरीर ?

जिन वयस्कों ने 80 के दशक में चेचक का टीका लगाया है, उनके शरीर में मंकी पॉक्स के प्रति प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता कायम है। लेकन 20-40 साल की आबादी को मंकी पॉक्स से सबसे ज्यादा जोखिम है, क्योंकि 1980 में चेचक के टीके का उत्पादन बंद होने के बाद उन्हें टीका नहीं लगा है। गिलाडा कहते हैं कि जिन्हें चेचक का टीका लगा है, उन्हें मंकी पॉक्स से 85% तक बचाव मिल जाता है। इसीलिए यह बहस शुरू हुई है कि मंकी पॉक्स के वायरस के फैलाव को देखते हुए भारत समेत दुनियाभर में चेचक के टीके का उत्पादन शुरू होना चाहिए। चेचक ने 220 साल तक दुनियाभर में कहर ढाया है। लेकिन जब 1980 के बाद भी कुछ साल तक चेचक का कोई वैश्विक मामला नहीं दिखा तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसके टीके का उत्पादन रोकने को कहा था। फिर भी चेचक के टीके दुनिया के कई देशों में अभी भी उपलब्ध हैं, क्योंकि चेचक के वायरस का उपयोग जैविक युद्ध के रूप में भी होने की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसी टीके का उपयोग रैबिडपॉक्स, मंकी पॉक्स समेत चेचक के दूसरे स्वरूपों के इलाज में भी किया जाता है।

सरकार का क्या कहना है ?

अब जबकि अमेरिका और यूरोपीय देशों में मंकी पॉक्स की रोकथाम के लिए चेचक के टीके की मांग तेज हो रही है, पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की निदेशक प्रिया अब्राहम ने साफ कर दिया कि यह कोविड की तरह फैलने वाला वायरस नहीं है, इसलिए इसके लिए एक बड़ी आबादी के टीकाकरण की जरूरत नहीं है और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में कोई चिंता जताई है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश के 734 जिलों में से केवल 397 जिलों में इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलांस प्रोग्राम (IDSP) के तहत ऐसे केंद्र बने हैं, जहां मंकी पॉक्स की जांच हो सकती है। बाकी जिलों के बारे में सरकार भी मौन है।

केंद्र सरकार की गाइडलाइन इस सवाल पर भी खामोश है कि अगर किसी में मंकी पॉक्स के लक्षण उभरें तो वह कहां और किससे जांच करवाए। जांच के लिए वही आरटीपीसीआर किट का उपयोग किया जाएगा, जिससे कोविड की जांच होती है, लेकिन उसमें प्राइमर मंकी पॉक्स के लिए होगा। यह प्राइमर देश के कितने जिलों में उपलब्ध है, इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है।

कोविड ने हमें सिखाया है कि रोकथाम ही सबसे पहला पुख्ता निवारण उपाय है। मास्क और टीके (Mask And Vaccine) ने भारत में करोड़ों जिंदगियां बचाई हैं। ऐसे में अगर चेचक के टीके पर देश में बहस शुरू हुई है तो सरकार को इस बारे में विशेषज्ञों की राय जरूरत लेनी चाहिए। आखिर बचाव में ही भलाई है।

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