Sardar Udham : सिर्फ फिल्म नहीं, हमारा इतिहास भी है, पर इस बात की ..

Sardar Udham Singh :फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सरदार उधम को एकेडमी पुरस्कारों के लिए भारत की तरफ से आधिकारिक एंट्री के लिए चयनित नहीं किया। शायद सबको डर है कि यह फिल्म ऑस्कर के लिए भेजने के बाद इंग्लैंड भारत से नाराज हो जाएगी..

Update: 2021-10-26 05:34 GMT

फिल्म रिव्यू : सरदार उधम सिंह।

सरदार उधम सिंह फिल्म पर हिमांशु जोशी की टिप्पणी

Sardar Udham Review : फिल्म सरदार उधम (Sardar Udham) कहानी के अंत में एक सवाल उठाती है कि अंग्रेजों के शासन के दौरान भारत में लाखों लोग मारे गए, उसमें जलियांवाला बाग कांड में मारे गए लोग भी शामिल थे, पर उसके बारे में इंग्लैंड ने आज तक कोई माफी नही मांगी है। इंग्लैंड ने यह माफी क्यों नही मांगी, इसका जवाब भी हमें फिल्म रिलीज के कुछ दिनों बाद ही मिल गया। फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सरदार उधम को एकेडमी पुरस्कारों के लिए भारत की तरफ से आधिकारिक एंट्री के लिए चयनित नहीं किया। शायद सबको डर है कि यह फिल्म ऑस्कर के लिए भेजने के बाद इंग्लैंड भारत से नाराज हो जाएगा। फिल्म ऑस्कर के लिए भेजी जाती तो शायद इंग्लैंड अपने उस कृत्य के लिए भारत से माफी भी मांगता और जलियांवाला बाग कांड में मारे गए लोगों के परिजनों के साथ-साथ करोड़ों भारतीयों को भी संतुष्टि मिलती, पर इस बात की फिक्र किसे है!

फिल्म की बात की जाए तो यह सिर्फ एक फिल्म ही नहीं, ओटीटी पर उतरा हमारा इतिहास भी है। बड़े पर्दे पर इसे देखना और भी ज्यादा सुखद होता, फ़िर भी यह अब तक कि सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। फिल्म आने का वक्त भी बिल्कुल सही है। मोहम्मद शमी को 'मोहम्मद' होने की वजह से ताने दिए जा रहे हैं। शाहरुख खान को उनके बेटे की वजह से निशाने पर लिया जा रहा है। उधम सिंह के 'राम मोहम्मद सिंह आजाद' बनने की वजह को भुला दिया गया है।

सरदार उधम सिंह बने विक्की कौशल और निर्देशक शूजित सरकार को अब अपनी किसी पुरानी फिल्म की जगह सरदार उधम की वजह से जाना जाएगा। विक्की कौशल का बोलता चेहरा उनके अभिनय की खासियत है तो फिल्म का छायांकन अद्भुत है। अविक मुखोपाध्याय ने अपनी छायांकन कला से फिल्म में जान डाल दी है। हमें सीधे अंग्रेजी शासन की छवि का अनुभव दिया है। फिल्म के संवाद लिखते रितेश शाह ने सोचा भी नहीं होगा कि वह हिंदी सिनेमा के कुछ सबसे बेहतरीन संवाद लिख रहे हैं।

वीरा कपूर ईई ने भविष्य के कॉस्ट्यूम डिजाइनरों के लिए एक चुनौती रख दी है कि कैसे कोई उनकी तरह ब्रिटिश शासन काल के कॉस्ट्यूम फिर से डिजाइन करके दिखाए। विंटेज कार, पुरानी आलीशान इमारतें और अंग्रेजों का सेना कैम्प सब कुछ वैसा ही है, जैसा तब होता होगा।

फिल्म का पहला हाफ आपको बिना आउट करे किसी बैटिंग पिच पर जमने का मौका देता है, फिल्म किसी एक कालक्रम में नही बनी है। यह आपको कभी भारत के दृश्य दिखाती है तो कभी इंग्लैंड, जो हो रहा है उसकी वजह आपके सामने आती रहेंगी।

फिल्म में सरदार उधम की अपनी बहन से थोड़ी सी मुलाकात फिर रूस की बर्फीली जगह से गुजरना अच्छे दृश्य हैं। अब आपको एक ब्रिटिश अभिनेत्री किर्स्टी एवर्टन भी दिखती हैं जो आयरिश स्वतंत्रता युद्ध में शामिल होती हैं, वो उधम का साथ देती है।

भगत सिंह का भाषण फिल्म के कुछ बेहतरीन दृश्यों की शुरुआत भर है। उधम सिंह का 'भगत सिंह के बारे में मत बोल' वाला दृश्य देख अभी तक चुप्पी साधे विक्की कौशल का इंजन स्टार्टर है।

उधम सिंह जेल की चारदीवारी में टॉर्चर होने के बाद तेजी से सांसें लेते हैं, जिसकी वजह से आपको फिल्म के साउंड का भी लोहा मानना पड़ता है। साथियों और उधम सिंह को टॉर्चर करने के अलग-अलग तरीके दिल को दहलाना शुरू कर देते हैं।

ओ ड्वायर के घर में काम करते उधम सिंह वाले दृश्य में विक्की कौशल और शॉन स्कॉट का अभिनय देखने योग्य है। 'भगत सिंह के बाद इंग्लैंड में बड़ा करना है जिससे अंग्रेज डर जाएं' वजह स्पष्ट कर देता है कि उधम सिंह ने इंग्लैंड में ओ ड्वायर को क्यों मारा?

फ्री स्पीच देने के लिए बनाई गई एक जगह पर खड़े होकर विक्की ने जंग और स्वतंत्रता पर जो संवाद बोले हैं, उसके लिए फिल्म को देखना जरूरी है। विक्की के डिटेक्टिव बने स्टीफन होगन को बोले शब्द 'प्रोटेस्ट को मर्डर या मर्डर को प्रोटेस्ट मानेगा आपका ब्रिटिश लॉ' याद रखने लायक हैं।

उधम सिंह की मूक प्रेमिका बनी बनिता संधू के पास करने के लिए जितना भी है, उसे जीवंत बनाने में वह सफल हुई हैं, फ़िल्म में जिसने भी अभिनय किया है, सबने अपने-अपने किरदार के साथ न्याय किया है।

कोर्ट रूम के दृश्य की शुरुआत होते ही फिल्म उस स्तर पर पहुंच जाती है, जिस वजह से मैंने इसे शुरुआत में सर्वश्रेष्ठ फिल्म कहा था। ठीक से पढ़िए, यह सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म ही नहीं सर्वश्रेष्ठ फिल्म है।

हीर-रांझा की किताब पर हाथ रख सच बोलने की कसम खाने के बाद अपना नाम पूछे जाने पर शूट मी चिल्लाना और खुद को राम मोहम्मद सिंह आजाद कहना पसंद करेंगे। विक्की ने अपने अभिनय से ऐतिहासिक फिल्म में भी एक नया इतिहास लिखने का काम किया है। कोर्ट रूम के दृश्य देख आपकी सांसे तेज होने लगेंगी। हर संवाद, यहां नहीं लिखा जा सकता, पूरे अभिनय पर यहां चर्चा सम्भव नहीं है।

फांसी की सजा और इंकलाब जिंदाबाद नारों के बाद खाने के बर्तन वाला दृश्य कमाल करता है, बस बर्तन खिसका कर ही फिल्म की टीम आपको रोमांचित करती रहती है। जबरदस्ती मुंह में पाइप डाल उधम सिंह की भूख हड़ताल तुड़वाने वाले दृश्य में विक्की आपको बिस्तर पर लेटे-लेटे ही सुन्न कर देंगे। बैकग्राउंड संगीत पर शांतनु मोइत्रा प्रभावित करते रहते हैं।

अब आपकी सांसे थोड़ी सामान्य होंगी और फिल्म अब आपको लौटा कर फिर भारत पहुंचाएगी। रौलेट एक्ट को खत्म करने के लिए अंग्रेजों की जो रणनीति बन रही है। उसे देख आप सोचेंगे कि अब भी क्या कुछ बदला है!

जलियांवाला बाग कांड जहां से बाहर निकलने की सिर्फ एक पतली गली है वहां खड़े हो जनरल डायर ने फायर का आदेश दिया। गोली से आधा लटकता पैर या गेट पकड़ते हुए हाथ का गोली लगने के बाद कटा पंजा, निर्देशक ने उस कांड का हर सेकेंड आपको फिर से दिखाया है।

जान बचाने के लिए कुंए में कूदते लोग, भगदड़ में दबते बच्चे, घायल तड़पते लोग, हर दृश्य आपकी आंखों को झपकने नहीं देगा। इस बीच 'मुंह सूखा हो, होंठ सूखे हों.. वाली पंक्ति कहते विक्की कौशल ने उधम सिंह का दर्द हमारे सामने रखा है।

जलियांवाला बाग कांड के बाद देर से उठे उधम जब जलियांवाला बाग दीवार फांद पहुंचते हैं तो उसके बाद का हर दृश्य पचासों बार देखने वाला है। लाशों पर मक्खियां भिनभिनाने की आवाज फिर आपको फिल्म के हर मजबूत तकनीकी पक्ष की याद दिलाता है।

घायलों की मदद करते उधम के किरदार को विक्की ने अमर बना दिया है। अस्पताल के खून से सने फर्श वाले दृश्य हों या लाशों के ऊपर मंडराते चील कव्वों और ठेलों से घायलों को ले जाने वाले दृश्य, शूजित हिंदी सिनेमा के सबसे काबिल निर्देशक बन कर सामने आए हैं। जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की लाशों के ढेर वाला दृश्य जिस तरह से दिखाया गया है वह आपको जलियांवाला बाग कांड की क्रूरता को फिल्म खत्म होते-होते कभी न भुलने वाली याद दे जाएगा।

फिल्म पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए जा रहे हैं, पर सिनेमा इतिहास पढ़ाने के लिए नहीं बनाई जाती, उसका उद्देश्य होता है सकारात्मक संदेश देना और वह यह उद्देश्य देने में सफ़ल भी हुई है।

फिल्म याद दिलाती है कि हमें आजादी यूं ही नहीं मिल गई उसके लिए इन क्रांतिकारियों द्वारा की गई सालों की मेहनत और कुर्बानी जिम्मेदार थी। वो आजादी न किसी एक राम की थी न मोहम्मद और न ही किसी एक सिंह की, वो आजादी एक ही के लिए थी जो था 'राम मोहम्मद सिंह आजाद'।

निर्देशन - शूजित सरकार

पटकथा - शुबेंदु भट्टाचार्य

निर्माता - रॉनी लहिरी, शील कुमार

छायांकन - अविक मुखोपाध्याय

संवाद - रितेश शाह

कॉस्ट्यूम डिज़ाइन - वीरा कपूर ईई

अभिनय - विक्की कौशल, बनिता संधू, स्टीफन होगन, शॉन स्कॉट

संगीत - शांतनु मोइत्रा

ओटीटी प्लेटफॉर्म - अमेजन प्राइम वीडियो

रेटिंग ❌✋✅ -- ✅

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