Terror Funding Kya Hai? क्या होती है आतंकी फंडिंग, कहीं आप भी तो नहीं है इसकी गिरफ्त में, जानिए हर बारीक बात
Terror Funding Kya Hai? देश और दुनिया में होने वाले बड़े-बड़े आतंकी हमले के पीछे पैसो की फंडिंग कैसे होती है। आखिर कौन होता है जो आतंकियों को पनपने के लिए पैसों की बारिश करता है। दुनिया के ताकतवर देश भी आखिर इन आतंकियों को होने वाली फंडिंग को क्यों नहीं रोक पाते हैं। ये ऐसे सवाल हैं जिन्हें हर कोई जानना चहता है।
मोना सिंह की रिपोर्ट
Terror Funding Kya Hai? देश और दुनिया में होने वाले बड़े-बड़े आतंकी हमले के पीछे पैसो की फंडिंग कैसे होती है। आखिर कौन होता है जो आतंकियों को पनपने के लिए पैसों की बारिश करता है। दुनिया के ताकतवर देश भी आखिर इन आतंकियों को होने वाली फंडिंग को क्यों नहीं रोक पाते हैं। ये ऐसे सवाल हैं जिन्हें हर कोई जानना चहता है।
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका पर 9/11 वाले आतंकी हमले के बाद टेरर फंडिंग रोकने की बड़ी कवायद हुई थी। साल 2001 में अमेरिका ने पहली बार आतंकी संगठनों को मिलने वाली फंडिंग को रोकने की कोशिश की थी। लेकिन आज 21 साल बाद भी अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से हुए संयुक्त प्रयासों के बावजूद आतंकी फंडिंग कम होने के बजाय बढी ही है।
वर्तमान में आतंकी संगठनों की संख्या और ताकत 1990 के दशक से कई गुना बढ़ चुकी है। साल 2011 में अमेरिका ने 14 बैंक खातों से आतंकियों के 140 मिलियन यूएस डॉलर जब्त किए थे। जबकि इस्लामिक स्टेट (ISIS) की कुल संपत्ति लगभग 1.7 बिलियन डॉलर के लगभग मानी जा रही थी। जिससे साफ हुआ कि टेरर फंडिंग पर काबू पाना उतना आसान नहीं है जितना सोचा जा रहा है। इसके पीछे क्या वजह है। आइए जानते हैं।
कैसे होती आतंकी फंडिंग
आतंकी संगठनों को मिलने वाले पैसे में सबसे अहम हिस्सा चैरिटी का होता है। यह किसी खास शख्स या देश की ओर से दिया जाने वाला दान हो सकता है। काफी समय तक सऊदी अरब आतंकी संगठनों को दी जाने वाली फंडिंग का मुख्य स्रोत था। आतंकी संगठन अलकायदा ने 9/11 के हमले के लिए सऊदी अरब के लोगों द्वारा की गई चैरिटी का उपयोग किया था। साल 2004 में आतंकी फंडिंग पर काम करने वाली अमेरिका की स्पेशल टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2002 में सऊदी अरब में अलकायदा और दूसरे आतंकी संगठनों को फंडिंग करने वालों पर कार्रवाई करने के लिए कहा था। लेकिन इसके बावजूद सऊदी अरब से की जाने वाली आतंकी फंडिंग में कमी नहीं आई है।
गैरकानूनी धंधों से फंडिंग
आतंकवादी संगठनों की आय का मुख्य स्रोत ड्रग्स, अफीम और दूसरे नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त और बड़े पैमाने पर हथियारों की तस्करी है। सबसे ज्यादा पैसा ड्रग्स तस्करी के जरिए कमाया जाता है। भारत में आतंकी फंडिंग की बात तब सामने आई जब 2010 में 26 /11 के मुंबई हमले के मुख्य आरोपियों में से एक और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी डेविड कोलमैन हेडली से पूछताछ की गई। हेडली ने आतंकी फंडिंग के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के तरीके का खुलासा किया था और कहा था कि पाकिस्तान का मुख्य भारत को नुकसान पहुंचाना है। पाकिस्तान श्रीलंका के रास्ते भारत में ड्रग्स भेज रहा है। उसका उद्देश्य केरल, तमिलनाडु के लोगों को आतंकी गतिविधियों में शामिल कराना है। 10 जुलाई 2019 को भारतीय खुफिया एजेंसी की चेतावनी के बाद श्रीलंका के पोर्ट से 50 किलो हेरोइन बरामद की गई थी।
इसमें पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का हाथ था। इसके अलावा 21 मई 2019 को भारतीय तटरक्षक बलों द्वारा 218 किलोग्राम हीरोइन कराची रजिस्टर्ड पाकिस्तानी नाव से गुजरात के कच्छ में बरामद की गई थी। सितंबर 2021 में गुजरात में अडानी पोर्ट में जब्त 3000 करोड़ की ड्रग्स भी अफगानिस्तान से ही यहां आई थी।
अफीम की खेती
आतंकियों के पैसे के स्रोत पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, अफगानिस्तान अफीम की खेती के मामले में दुनिया में पहले नंबर का देश है। और यहां अफीम की खेती के 90% हिस्से पर आतंकी संगठनों का कब्जा है। रिपोर्ट के अनुसार, अफीम की खेती के मुनाफे से मुनाफे से लगभग 3000 अरब रुपये यानी कि 65 अरब डॉलर आतंकी संगठनों को मिलते हैं। अफीम के खरीदार दुनिया के हर कोने में मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र के ऑफिस यूएनओडीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि, अफगानिस्तान का अफीम व्यापार प्रमुख रूप से पाकिस्तान और ईरान के माध्यम से पूरी दुनिया में फैला हुआ है।
आतंकियों के वैध धंधे
साल 2001 में आतंकी फंडिंग के विरुद्ध अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई के बाद कई आतंकी संगठनो ने वैध तरीके से कमाई के रास्ते भी अपनाए। इसमें खेती, सार्वजनिक निर्माण क्षेत्र में निवेश इत्यादि शामिल है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान और मिडिल ईस्ट की कई रिटेल शहद की दुकानों का मालिक था। हालांकि, शहद की शिपमेंट के दौरान उसमें हथियारों और ड्रग्स की भी तस्करी होती थी। आतंकियों ने अपना पैसा क्रिकेट और सिनेमा पर भी लगाना शुरू कर दिया है, क्योंकि इसमें वे ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
आतंकी फंडिंग के नए तरीके
इंटरनेट की सुविधा के बाद आतंकियों ने पैसे कमाने के लिए ऑनलाइन हैकिंग, बैंक खातों की निजी जानकारी चुराकर ऑनलाइन फ्रॉड जैसी गतिविधियों के जरिए भी पैसा कमा रहे हैं। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे आतंकियों को साइबर जिहादी का नाम दिया गया है।
आतंकी संगठनों की फंडिंग में चैरिटी महत्वपूर्ण क्यों है?
आतंकी संगठन खुद को आतंकी कहलाने के बजाय खुद को लोगों के सामने इस्लाम के रक्षक, इस्लाम का विस्तार करने वाले बदहाल इस्लामी कौम का उत्थान करने वाले जिहादी, और मस्जिदों के रक्षक के रूप में लोगों के सामने रखते हैं। ऐसे में जब कोई व्यक्ति इन्हें उनके नजरिए से समझने की कोशिश करता है तो वह इनके सम्मोहन जाल में फंस जाता है। पढ़े-लिखे और पैसे वाले इस्लामिक तबके के लोग भी इनके झांसे में आकर इन्हें इस्लामी या जिहादी मानकर पैसा दे देते हैं। जब भारत सरकार ने जमात-ए-इस्लामी नाम के अलगाववादी संगठन की संपत्ति जब्त की तो खुलासा हुआ कि संगठन ने अपना पैसा मस्जिद निर्माण, मदरसों और स्कूलों में लगाया था। और संगठन वैध तरीके से कमाए हुए इन पैसों को आतंकियों को मुहैया कराता था। इस प्रकार की चैरिटी में मिले पैसे आतंकी फंडिंग का मुख्य जरिया हैं।
आतंकी संगठन कैसे करते हैं पैसे ट्रांसफर
आतंकी संगठन एक दूसरे को बैंकों के जरिए पैसे ट्रांसफर करने की बजाए एक दूसरे को पूरी कंपनी का अधिकार ही बेच देते हैं। इस खरीद-फरोख्त की कागजी कार्रवाई इतनी कठिन होती है कि इसे फ्रॉड साबित करने में ही सालों का समय लग जाता है। इंग्लैंड यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के सीनियर लेक्चरर बिल टैपमैन ने आतंकी फंडिंग पर लिखी किताब में बताया है कि दुनिया की जीडीपी का 10 परसेंट पैसा आतंकी गतिविधियों में खर्च होता है। आतंकी दुनिया भर के देशों के नियम कानूनों को खंगालते हैं और 2 देशों के नियमों के बीच थोड़ी सी भी गुंजाइश होने पर सरकारी नियमों को धता बताते हुए सबके सामने से पैसे निकाल कर ले जाते हैं। और सरकारी कंपनियां देखती रह जाती हैं। चैरिटी करने वाले लोग थोड़ी-थोड़ी रकम कई खातों में डालकर आतंकियों तक पैसा पहुंचाते हैं ताकि सरकार और धन शोधन कंपनियों की नजर में ना आए।
भारत में टेरर फंडिंग
भारत में टेरर फंडिंग 1990 में शुरू हुई थी। जमात-ए-इस्लामी पर बैन के बाद पता चला कि यह समूह जम्मू-कश्मीर से टेरर फंडिंग कर रहा है। 2018 में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और पंजाब में 25 जगह छापेमारी कर 12 लोगों को गिरफ्तार किया था। इन लोगों पर टेरर फंडिंग का आरोप था। अप्रैल 2022 में जांच एजेंसी (NIA) ने दिल्ली, अनंतनाग, हरियाणा में रेड डाली थी। इसमें कुछ लोगों के लिंक बरामद हुए जिन्हें पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से फंडिंग हो रही थी। इस रेड में लैपटॉप, मोबाइल सिम कार्ड और अन्य दस्तावेज जब्त किए गए। साथ ही तकनीकी सबूतों और बैंकिंग लेनदेन के जरिए दिल्ली से तीन लोग हरियाणा से एक और अनंतनाग से दो लोगों को आतंकी फंडिंग मामले में शामिल पाया गया था। NIA ( राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की विशेष अदालत 18 अप्रैल 2022 को अलगाववादी नेता यासीन मलिक के खिलाफ आतंकी फंडिंग मामले में आरोप तय करने वाली है।
क्या है ग्रे और ब्लैक लिस्ट
अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद के टेरर फंडिंग के मामलों में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की (FATF) की भूमिका प्रमुख हो गई है। टेरर फंडिंग में आतंकियों को धन या वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है। FATF के पास अधिकार है कि वो पैसों को फ्रीज कर सकता है। इसके अलावा हथियारों के उपयोग पर रोक लगाने के साथ यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा सकता है। इसमें दो प्रकार की लिस्ट होती हैं। ब्लैक लिस्ट में वो देश शामिल किए गए हैं, जो टेरर फंडिंग या मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों का खुलकर समर्थन करते हैं।
जबकि दूसरी ग्रे-लिस्ट है। इस लिस्ट में उन देशों को शामिल किया गया है जो मनी लॉन्ड्रिंग या टेरर फंडिंग के लिए सुरक्षित जगह माने जाते हैं। ग्रे लिस्ट में डाले जाने वाले देश को चेतावनी होती है कि वह न सुधरने की स्थिति में ब्लैक लिस्ट में डाला जा सकता है। FATF समय समय पर मूल्यांकन करता रहता है। पाकिस्तान 2018 से लगातार ग्रे लिस्ट में है।
इसके अलावा रिकी गार्डन, तुर्की, जार्डन और माली भी ग्रे लिस्ट में शामिल हैं। ग्रे लिस्ट में शामिल देशों को आईएमएफ, विश्व बैंक और एडीबी से आर्थिक सहायता मिलने पर भी प्रतिबंध है। इन देशों को विश्व बैंक और एडीबी से ऋण प्राप्त करने में समस्या का सामना करना पड़ता है। ग्रे लिस्ट में शामिल देशों को अंतरराष्ट्रीय बहिष्कार और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में कमी का सामना करना पड़ता है।
क्या होती है टेरर फंडिंग की सजा?
टेरर फंडिंग में शामिल व्यक्ति अगर भारत में या किसी विदेशी देश में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी व्यक्ति या संगठन को वैध या नाजायज स्रोत से धन उपलब्ध कराता है, तो उसे सजा देने का प्रावधान है। अगर ऐसे धन का उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिए किया जाता है तो उस व्यक्ति को आजीवन या कम से कम 5 वर्ष की जेल और जुर्माना दोनों लगाया जा सकता है।