मोदी सरकार ने पार की बेशर्मी हदें, संसद में कहा- नहीं है प्रवासी मजदूरों के मौत का आंकड़ा, न ही कोई मुआवजा देंगे

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने सोमवार को लोकसभा में बताया है कि प्रवासी मजदूरों की मौत पर सरकार के पास आंकड़ा नहीं है, ऐसे में मुआवजा देने का 'सवाल नहीं उठता है'.

Update: 2020-09-15 08:55 GMT

जनज्वार। सोमवार को लोकसभा में केंद्रीय श्रम मंत्रालय (union labour ministry) ने बताया कि प्रवासी मजदूरों की मौत (migrant labour deaths data) पर सरकार के पास आंकड़ा नहीं है, ऐसे में मुआवजा देने का 'सवाल नहीं उठता है'. दरअसल, सरकार से पूछा गया था कि कोरोनावायरस लॉकडाउन में अपने परिवारों तक पहुंचने की कोशिश में जान गंवाने वाले प्रवासी मजदूरों के परिवारों को क्या मुआवजा दिया गया है? सरकार के जवाब पर विपक्ष की ओर से खूब आलोचना और हंगामा हुआ. श्रम मंत्रालय ने माना है कि लॉकडाउन के दौरान 1 करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर देशभर के कोनों से अपने गृह राज्य पहुंचे हैं.

कोरोनावायरस के बीच हो रहे पहले संसदीय सत्र में मंत्रालय से पूछा गया था कि क्या सरकार के पास अपने गृहराज्यों में लौटने वाले प्रवासी मजदूरों का कोई आंकड़ा है? विपक्ष ने सवाल में यह भी पूछा था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि इस दौरान कई मजदूरों की जान चली गई थई और क्या उनके बारे में सरकार के पास कोई डिटेल है? साथ ही सवाल यह भी था कि क्या ऐसे परिवारों को आर्थिक सहायता या मुआवजा दिया गया है?

इसपर केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने अपने लिखित जवाब में बताया कि 'ऐसा कोई आंकड़ा मेंटेन नहीं किया गया है. ऐसे में इसपर कोई सवाल नहीं उठता है.इसपर कांग्रेस नेता दिग्विजिय सिंह ने कहा कि 'यह हैरानजनक है कि श्रम मंत्रालय कह रहा है कि उसके पास प्रवासी मजदूरों की मौत पर कोई डेटा नहीं है, ऐसे में मुआवजे का कोई सवाल नहीं उठता है. कभी-कभी मुझे लगता है कि या तो हम सब अंधे हैं या फिर सरकार को लगता है कि वो सबका फायदा उठा सकती है.'

बता दें कि मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देशभर में लॉकडाउन लगने का ऐलान किया था, जिसके बाद लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर बेघर और बिना रोजगार वाली स्थिति में आ गए थे, कइयों को उनके घर से निकाल दिया गया, जिसके बाद वो अपने गृहराज्य की ओर निकल पड़े थे. कुछ जो भी गाड़ी मिली, उससे आ रहे थे तो कुछ पैदल ही निकल पड़े थे. ये मजदूर कई दिनों तक भूखे-प्यासे पैदल चलते रहे. कइयों ने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था.

विरोध और विपक्ष की आलोचनाओं के बाद केंद्र ने राज्यों से बॉर्डर सील करने को कहा और उसके बाद मजदूरों के लिए श्रमिक ट्रेनें चलाई गईं. हालांकि, श्रमिक ट्रेनों को लेकर इतनी अव्यवस्था थी कि मजदूरों की पैदल यात्रा या रोड के जरिए यात्रा जारी रही और इस दौरान कई मजदूरों की रोड हादसों में जान चली गई.

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