19 बच्चों की तस्करी कर प्राइवेट बस में​ बिहार से लाया जा रहा था दिल्ली, 9 तस्कर गिरफ्तार

एसपी क्राइम अशोक कुमार वर्मा ने कहा कि मानव तस्करी एक संगठित अपराध है और यह जांच का विषय है कि उनका नेटवर्क कितना बड़ा है, अभी 9 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है....

Update: 2020-08-18 06:55 GMT

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मानव तस्करी विरोधी इकाई (एएचटीयू) ने उन्नीस नाबालिगों को तस्करों से बचाया है। साथ ही 9 मानव तस्करों को गिरफ्तार किया है। एएचटीयू इंस्पेक्टर अजीत प्रताप सिंह के अनुसार, 'बचपन बचाओ आंदोलन के उप्र के राज्य समन्वयक सूर्य प्रताप मिश्रा की टिप से पता चला कि बच्चों को एक बस में बिहार के अररिया से दिल्ली ले जाया जा रहा है। तब हमने सोमवार को यह ऑपरेशन शुरू किया।'

'पुलिस ने खोराबार पुलिस स्टेशन की सीमा के तहत जगदीशपुर क्षेत्र को घेर लिया। बिहार से आने वाली बसों की जांच के दौरान पुलिस ने नौ मानव तस्करों को पकड़ा और 19 बच्चों को बचाया। इन बच्चों को चाइल्ड लाइन को सौंप दिया गया है।'

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सभी नौ आरोपियों के खिलाफ धारा 370 के तहत मामला दर्ज कर जेल भेज दिया गया है। एसपी क्राइम अशोक कुमार वर्मा ने कहा, 'मानव तस्करी एक संगठित अपराध है और यह जांच का विषय है कि उनका नेटवर्क कितना बड़ा है। अभी 9 तस्करों को गिरफ्तार किया गया है और उनसे छुड़ाए गए 19 बच्चों की काउंसलिंग की जा रही है।' पकड़े गए तस्करों में मोहम्मद हाशिम, मोहम्मद जाहिद, इश्तियाक, श्मशाद, मुर्शिद, मारूफ, नूर हसन, शाहिद और हसीब हैं। ये सभी बिहार के अररिया के हैं।

बता दें कि भारत में काम करने वाली कुछ गैर सरकारी संस्थाओं ने जून के महीने मां बाल तस्करी बढ़ने की आशंका जताई थी। इसको लेकर इन संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी डाली थी। फिर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर बाल तस्करी के लिए कदम उठाने के लिए कहा था।

तब अपनी याचिका में बचपन बचाओ आंदोलन ने कहा कि उसे विश्वसनीय जानकारी मिली है कि लॉकडाउन खुलने के साथ बाल तस्करी के मामले बहुत ज़्यादा बढ़ जाएंगे। कई स्रोतों से जानकारी मिली है कि तस्कर सक्रिय हो गए हैं, संभावित पीड़ितों और परिवारों से संपर्क कर रहे हैं और कई परिवारों को एडवांस पेमेंट भी कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया था कि लाखों प्रवासी मज़दूरों, दिहाड़ी मज़दूरों के लिए लॉकडाउन आफ़त बनकर टूटा। हज़ारों पैदल ही अपने गांवों को लौटे। हालांकि ये हृदयविदारक सच्चाई है कि वहां भी ग़रीबी और भूख उनका इंतज़ार कर रही थी, क्योंकि गांव में काम ना मिलने की वजह से ही तो वो शहरों की तरफ़ गए थे। कईयों को भारी ब्याज दरों पर क़र्ज़ लेना पड़ेगा।

'जो मज़दूर शहरों में ही फँसे रह गए, उनके लिए स्थितियां और ख़राब होंगी। ना पैसा, ना सुरक्षा और ना खाना। कोरोना से खड़े हुए आर्थिक संकट ने असुरक्षा और ग़रीबी बढ़ाई है। बाल तस्कर, संघर्ष कर रहे परिवारों की स्थितियों का फ़ायदा उठाने की कोशिश करेंगे। कृषि संकट से जूझ रहे किसान परिवारों के बच्चों को भी शिकार बनाया जाएगा।'

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