इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो साल में 120 में से 94 आदेश किए रद्द, 41 गोकशी से जुड़े केस जिसमें लगायी गयी रासुका

आंकडे़ बताते हैं कि जब रासुका को लागू करने की बात आती है गौहत्या के मामले पहले नंबर पर हैं। इन मामलों की संख्या 41 है जो कि उच्च न्यायालय में पहुंचे कुल मामलों के एक तिहाई से अधिक हैं....

Update: 2021-04-07 06:24 GMT

जनज्वार डेस्क। जनवरी 2018 से दिसंबर 2020 के बीच इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत 120 बंदियों की याचिकाओं पर फैसला सुनाया। 94 केसों में से कोर्ट ने 32 जिलों में डीएम के आदेशों को रद्द कर दिया और बंदियों की रिहाई का आदेश दिया।

आंकडे़ बताते हैं कि जब रासुका को लागू करने की बात आती है गौहत्या के मामले पहले नंबर पर हैं। इन मामलों की संख्या 41 है जो कि उच्च न्यायालय में पहुंचे कुल मामलों के एक तिहाई से अधिक हैं। गौर करने की बात ये है कि सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्राथमिकी के आधार पर उन पर गौहत्या का आरोप लगाया गया था।

इन मामलों में से 30 मामलों (करीब 70 फीसदी से अधिक) को हाईकोर्ट ने यूपी प्रशासन द्वारा लगाए गए रासुका के आदेशों को रद्द कर याचिकाकर्ता की रिहाई के लिए कहा।

यहां तक कि बाकी के 11 गौहत्या के मामलों में जहां इसने नजरबंदी को बरकरार रखा (एक को छोड़कर) निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने बाकी आरोपियों को यह कहते हुए जमानत दे दी कि उनकी न्यायिक हिरासत की आवश्यकता नहीं थी।

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इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि 11 मामलों में अदालत ने आदेश पारित करते हुए डीएम द्वारा "दिमाग का सही इस्तेमाल नहीं करने" का हवाला दिया है। 13 मामलों में अदालत ने कहा कि हिरासत में लिए गए शख्स को रासुका को चुनौती देने के लिए सही ढंग से प्रतिनिधित्व करने का अवसर से वंचित किया गया था। जबकि 7 केस में अदालत ने कहा कि ये मामले "कानून और व्यवस्था" के दायरे में आते हैं और रासुका लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यही नहीं एफआईआर में एक जैसी बात या कहें कट कॉपी पेस्ट जैसी चीजें भी सामने आई हैं।

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