भारतीय किसान यूनियन ने अब कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

याचिका में यह भी कहा गया है कि ये तीन कृषि कानून संसद में बिना पर्याप्त चर्चा के जल्दबाजी में पारित किए गए हैं। राकेश टिकैत ने कहा है कि सरकार अगर हमारी 15 में 12 मांगे मानने को तैयार है तो इसका मतलब है कि उनका कानून गलत है...

Update: 2020-12-12 04:52 GMT

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत।

जनज्वार। किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे प्रमुख किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन ने केंद्र सरकार द्वारा संसद के मानसून सत्र में पारित कराए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि इन कृषि कानूनों से खेती का पेशा निगमीकरण की भंेंट चढ जाएगा। याचिका में कहा गया है कि किसानों को सुरक्षा कवच मुहैया कराने वाली कृषि उपज विपणन समितियों एपीएमसी के बिना बाजार बहुतराष्ट्रीय कंपनियों के लालच की भेंट चढ जाएगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को किसानों की स्थिति की नहीं बल्कि अपने लाभ की चिंता है।

इस याचिका में कहा गया है कि इन कृषि कानूनों के मौजूदा स्वरूप में लागू होने से किसान समुदाय के लिए संकट पैदा होगा। इससे एक समानांतर बाजार खुलेगा, जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा, जिसमें किसानों के शोषण की पूरी संभावना होगी।

याचिका में यह भी कहा गया है कि ये तीन कृषि कानून संसद में बिना पर्याप्त चर्चा के जल्दबाजी में पारित किए गए हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता व प्रवक्ता राकेश टिकैट ने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों पर स्टैंड पर भी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि अगर केंद्र सरकार हमारी 15 में 12 मांगें मानने को तैयार है, तो इसका मतलब है कि यह कानून सही नहीं है। ऐसे में इन्हें क्यों नहीं रद्द करना चाहिए?

किसान संगठन सरकार से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार उसे वापस लेने को तैयार नहीं है। वह सिर्फ उसमें संशोधन करने के लिए राजी है। किसान संगठनों की चिंता है कि इस कानून की वजह से एपीएमसी एक्ट निष्प्रभावी हो जाएगा। कृषि के पेशे में और कृषि उपज खरीदने में कार्पाेरेट का दखल बढेगा और फिर वे उसे महंगी कीमत पर बेचेंगे। किसानों की चिंता है कि ये कृषि कानून उन्हें खेतों के मालिक से मजदूर बना देंगे।

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