भाजपा नेता पढ़ा होता इतिहास तो अलीगढ़ विश्वविद्यालय में खिलाफत आंदोलन पर हुई चर्चा की नहीं करता शिकायत

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 13 अगस्त को 'भारत, टर्की एवं खिलाफत आंदोलन' विषयक एक वेबिनार का आयोजन किया गया था, इसे लेकर बीजेपी नेता ने शिकायत की है...

Update: 2020-08-18 16:28 GMT

अलीगढ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गत गुरूवार को भारत-टर्की एवं खिलाफत आंदोलन को लेकर हुए वेबीनार का विरोध शुरू हो गया है। भाजपा नेता व यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र निशित शर्मा ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की जांच कर कार्रवाई करने को कहा है।

अमुवि के पूर्व छात्र नेता और भाजपा नेता निशित शर्मा ने कहा 'अमुवि में 13 अगस्त को एक बेबीनार आयोजित की गई, जिसका विषय था-भारत, टर्की एवं खिलाफत आंदोलन। इसकी अध्यक्षता खुद अमुवि केे वीसी कर रहे थे। इसमें टर्की यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर को विचार रखने के लिए बुलाया गया था। उन्होंने कहा कि यह टर्की वह मुल्क है जो भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के समर्थन का काम करता है।'

बीजेपी नेता ने कहा 'आतंकियों के लिए फंडिंग का भी टर्की काम करता है। यह खिलाफत आंदोलन वह है, जिससे भारत का विभाजन हुआ था और सैकडों लोग असमय ही मौत के मुंह में चले गए। यह आंदोलन दोबारा जीवित हो, इसलिए एक तंत्र काम कर रहा है। अमुवि में इस तरह की गतिविधियां कर खिलाफत 2.0 की तैयारियां शुरू की जा रही हैं।'

उन्होंने कहा कि आमिर खान टर्की के शासक से मिले। उन्होंने आमिर खान की तुलना जाकिर नाइक से करते हुए कहा कि दोनों की गतिविधियां अलग नहीं हैं, आमिर खांन तो जाकिर नायक का साफ्टवर्जन है। उन्होंने इस मामले में एमएचआरडी को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की जांच करने की मांग की है, साथ ही यह भी कहा कि वह इन मामले के आरोपियों को दंडित करें।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार खिलाफत आंदोलन की शुरुआत तुर्की से हुई थी। 1912 ईस्वी में तुर्की-इतालवी तथा बाल्कन युद्धों में ब्रिटेन तुर्की के विपक्ष में था। इसे इस्लामी संस्कृति और सभ्यता पर प्रहार समझकर भारतीय मुसलमान भी ब्रिटेन के प्रति उत्तेजित हो उठे थे, जो देश में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रोष में परिवर्तित हो गया। उसके बाद यहां भी खिलाफत आंदोलन की शुरुआत हुई थी।

यह आंदोलन मार्च 1919 से जनवरी 1921 के बीच चला था। अभी तुर्की एक विकसित देश बन चुका है और इस्लामी राष्ट्रों में अग्रणी की भूमिका में है। 1920 के कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में महात्मा गांधी ने दूसरे नेताओं को इस बात के लिए मना लिया था कि खिलाफत आंदोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आंदोलन शुरू करना चाहिए।

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