अस्पताल का बिल न चुका पाने पर दंपती को एक लाख रुपये में बेचना पड़ा मासूम

अस्पताल प्रबंधन ने कहा है कि बच्चे को खरीदा-बेचा नहीं गया है, बल्कि दंपती उसे छोड़ कर चला गया तो गोद लिया गया है। वहीं, आगरा के डीएम ने इसे गंभीर मामला बताते हुए जांच कराने की बात कही है...

Update: 2020-09-01 04:16 GMT

(ओडिशा में पैदा होते ही अस्पताल में नवजात शिशु का बन जाएगा आधार कार्ड)

जनज्वार। उत्तर प्रदेश के आगरा में रहने वाली 36 वर्षीया बबिता ने बीते 24 अगस्त एक बच्चे को जन्म दिया था। उसकी डिलीवरी ऑपरेशन से हुई। अस्पताल वालों ने उसे सर्जरी के 30, 000 रुपये और दवाओं के 5, 000 रुपये समेत 35 हजार रुपये का बिल थमा दिया। परिवार के पास अस्पताल का बिल भरने को रुपये नहीं थे जिसके चलते उन्हें अपने मासूम को एक लाख रुपये में बेच देना पड़ा।

गौरतलब है कि बबिता के पति 45 वर्षीय शिवचरण रिक्शा चलाकर परिवार पालते हैं। उनके पास इतने रुपये नहीं थे की वह इतने रुपये का बिल चुका सकें। दंपती का आरोप है कि अस्पताल वालों ने उनसे कहा कि बिल चुकाने के लिए अपने बच्चे को एक लाख रुपये में बेच दें। दंपती का यह पांचवां बच्चा है।

दंपती आगरा स्थित शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में रहते हैं। रिक्शा चलाकर शिवचरण की रोज बमुश्किल 100 रुपये की आमदनी हो पाती है। यह आमदनी भी रोज नहीं होती है। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।

बबिता का कहना है कि एक आशा वर्कर उनके घर आई। उसने कहा कि वह उसकी डिलेवरी फ्री में करवा देगी। शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं है लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी। जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया। अस्पताल वालों ने उन लोगों को बिल थमाया। शिवचरण ने कहा, मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं। हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया। हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर भी नहीं दिए गए। उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपये में खरीद लिया।

हालांकि अस्पताल ने सभी आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा है कि बच्चे को दंपती ने छोड़ दिया था। उसे गोद लिया गया है, खरीदा या बेचा नहीं गया है। हम लोगों ने उन्हें बच्चे को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया। ट्रांस यमुना इलाके के जेपी अस्पताल की प्रबंधक सीमा गुप्ता ने बताया, मेरे पास माता-पिता के हस्ताक्षर वाली लिखित समझौते की एक प्रति है। इसमें उन्हें खुद बच्चे को छोड़ने की इच्छा जाहिर की है।

बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने कहा कि अस्पताल के स्पष्टीकरण से उनका अपराध नहीं कम होता। हर बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ने निर्धारित की है। उसी प्रक्रिया के तहत ही बच्चे को गोद दिया और लिया जाना चाहिए। अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है, उसका कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने अपराध किया है।

मामले में डीएम आगरा प्रभुनाथ सिंह ने कहा, 'यह गंभीर मसला है। इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी'। नगर निगम के वॉर्ड पार्षद हरि मोहन ने कहा कि वह जानते हैं कि दंपती को अस्पताल के बिलों का भुगतान नहीं करने के कारण अपने बच्चे को बेचना पड़ा। उन्होंने कहा कि शिवचरण गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे।

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