यूपी : मिर्जापुर में नियम विरुद्ध तरीके से कोटे की दुकान चयन को लेकर दलित महिलाओं का कलेक्ट्रेट में प्रदर्शन
आरोप है कि कुछ खास गिने चुने लोगों की उपस्थिति में गोतवां गांव में कोटे के दुकान का चयन गुपचुप तरीके से किया गया। जिसकी भनक तक अन्य ग्रामीणों और समूह की महिलाओं को लगने नहीं दी गई....
मिर्जापुर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद के मझवां विकास खंड के गोतवां गांव में सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान चयन में पारदर्शिता तथा कायदे कानून को ताक पर रखकर पहुंच वाले लोगों को लाभ देने का आरोप लगाते हुए स्वयं सहायता समूह की दलित महिलाओं ने कलेक्ट्रेट परिसर में प्रदर्शन करते हुए जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा है। महिलाओं ने आरोप लगाया है कि पूर्व में पारित प्रस्ताव तथा अधिकारियों के निर्देश के बाद भी समूह की दलित महिलाओं को नजरअंदाज कर मनमाने तरीके से संबंधित अधिकारियों ने बिना उन्हें सूचना दिए दूसरे को लाभ पहुंचते हुए कोटे की दुकान का चयन कर दिया, जो नियम विरुद्ध है।
जिलाधिकारी से मिलने आई मझवां विकास खंड के गोतवां गांव स्थित शिव गुरु स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने जिलाधिकारी प्रवीण कुमार लक्षकार को सौंपे गए ज्ञापन में बताया है कि गांव स्थित रिक्त उचित दर विक्रेता की दुकान चयन के संबंध में 27 जुलाई 2020 को हुई बैठक के संबंध में खंड विकास अधिकारी मझवां के आदेश के क्रम में नियमानुसार पुलिस की मौजूदगी में बैठक संपन्न संपन्न हुआ था। जिसमें तीन समूहों ने प्रतिभाग किया था। जिसमें जांच उपरांत शिव गुरु स्वयं सहायता समूह का सर्वसम्मति से चयन किया गया था। समूह के पक्ष में प्रस्ताव पास होने के बाद इसकी जानकारी जिलाधिकारी सदर मिर्जापुर को भी प्रेषित कर दी गई थी, महिलाओं ने आरोप लगाया है कि लंबा समय बीत जाने के बाद भी अभी तक इस संबंध में समूह के नाम कोई भी अभिलेख प्रस्तुत करने की कोई सूचना उन्हें नहीं दी गई।
जबकि शासन का स्पष्ट निर्देश है कि समूह का चयन रिक्त कोटे की दुकान जहां है किया जाय, समूह एक संस्था है समूहों को वरीयता प्रदान किया जाए, लेकिन यहां ठीक इसके विपरीत हो रहा है। महिलाओं ने शासनादेश का हवाला देते हुए बताया कि शिव गुरु स्वयं सहायता समूह की सभी महिलाएं एक वर्ग (दलित) जाति की महिलाएं हैं, शासन के आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि 50% एक जाति की महिला को लाभ प्रदान किया जाय, यानी जिसकी (समूह) ज्यादा भागेदारी और समूह पुराना होने के साथ ही क्रियाशील हो उन्हें लाभांन्वित किया जाए। जबकि गोतवां गांव में शिव गुरु स्वयं सहायता समूह की दलित महिलाओं की हिस्सेदारी 100% मानको को पूरा कर रही हैं, बावजूद उन्हें नजर अंदाज कर दिया गया है। जिलाधिकारी से मिलकर ज्ञापन सौंपने वालो में कुंती देवी, चंदा, शांति, प्रेमा, सीमा, सुखा देवी, अमरावती, निशा, चंदा, गीता, राधा देवी इत्यादि महिलाएं तथा प्रशांत पाठक आदि ग्रामीण शामिल रहे हैं। हालांकि इस संदर्भ में जिलाधिकारी ने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के पत्र पर गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए जांचपरांत कार्रवाई का भरोसा दिलाया है।
आरोप है कि कुछ खास गिने चुने लोगों की उपस्थिति में गोतवां गांव में कोटे के दुकान का चयन गुपचुप तरीके से किया गया। जिसकी भनक तक अन्य ग्रामीणों और समूह की महिलाओं को लगने नहीं दी गई। गांव के प्राथमिक विद्यालय गेट पर पुलिस फोर्स तैनात होने के कारण ग्रामीण चाहकर भी अंदर नहीं जा सके थे। ग्रामीण प्रशांत पाठक ने आरोप लगाया कि जिस समूह के नाम कोटे का आवंटन हुआ है उस समूह में पूर्ण पारदर्शिता नहीं बरती गई है। उसमें एक ही परिवार के सभी सदस्य जो दबंग तथा सरहंग किस्म के भी हैं जिनकी जांच तक नहीं की गई। जबकि शासन की मंशा है कि गरीब लोगों को लाभ दिया जाए, लेकिन यहां सबसे संपन्न समूह को ब्लॉक के कर्मचारियों की मिली भगत से प्रस्ताव पास कर दिया गया। जो शासनादेश संख्या-448/38-6-2020-14 (नरेगा)/2020 ग्राम्य विकास अनुभाग - 6 लखनऊ, 26 अक्टूबर 2020 के विपरीत है।
बताते चलें की नये समूह अगर राशन की दुकान आवंटन के लिए आवेदन करते हैं तो मिशन निदेशक उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का पूर्वानुमोदन आवश्यक होगा और आवेदन में सबसे गरीब समूह को आवंटन होना चाहिए, लेकिन उस के विपरीत जाकर सबसे संपन्न समूह को गोतवां गांव में राशन की दुकान आवंटित कर दिया गया है। जिस पर ग्रामीणों ने आपत्ति दर्ज कराते हुए शासनादेश का खुला उल्लंघन करार दिया है तथा जांच कराकर कोटे की दुकान को निरस्त करा कर नए सिरे से कोटे की दुकान चयन कि मांग की है।
मोहरा-मुखौटा बनी समूह की महिलाएं
गौरतलब है कि शासन की मंसा है कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई महिलाओं को गांव के विकास में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कोटे की दुकानों से भी जोड़कर उन्हें लाभान्वित किया जाए, ताकि वह गांव के विकास में अपनी समग्र भूमिका का निर्वहन करने के साथ ही साथ अन्य महिलाओं को भी प्रेरित और जागरुक करें, लेकिन देखा जाए तो महिलाओं को लाभान्वित कौन करे उल्टे संबंधित अधिकारी "गवई" राजनीति का हिस्सा बन कर पद-पैसे और प्रभावशाली लोगों को लाभान्वित करने का काम कर रहे हैं। जिससे ना केवल गांवों में विवादों का जन्म हो रहा है, बल्कि महिलाएं मुखौटा और मोहरा बनकर सीमित रह जा रही हैं।
शिव गुरु से सहायता समूह से जुड़ी हुई तथा स्वच्छताग्रही सीमा देवी का आरोप था कि "उनके साथ गलत किया गया है, स्वयं सहायता समूह के अधिकारियों ने भी उन्हें अंधेरे में रखते हुए दूसरों को लाभ पहुंचाने का काम किया है।" वह सवाल दागती है कि " क्या हम महिलाएं दलित समाज की हैं, इसलिए हमें उपेक्षित रखते हुए गुमराह किया जाता रहा?
गोतवां गांव के ही सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत पाठक आरोप लगाते हुए कहते हैं कि "नियम नियमावली तथा शासनदेश के विरूद्ध कराए गए प्रस्ताव को जब तक निरस्त नहीं किया जाएगा वह इस अन्याय पूर्ण विधि के खिलाफ लड़ाई जारी रखेंगे। उन्होंने आरोप लगाते हुए 12 जनवरी 2020 को गांव में कोटे के दुकान चयन पर सवाल खड़े करते हुए कई गंभीर आरोप लगाए। कहा है कि पारदर्शिता को नजरअंदाज करते हुए पुलिस के बलबूते ग्रामीणों खासकर समूह की महिलाओं को दूर रखकर कोटे की दुकान का चयन चोरी चुपके करा लिया गया है।