DDU News Today: डीडीयू के कुलपति ने जिन विषयों की शुरू कराई पढ़ाई तीन वर्ष बाद मिली उसकी मान्यता

DDU News Today: यूपी के गोरखपुर स्थित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्र आंदोलन के राह पर है, तो बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए तीन वर्ष बाद एक राहत भरी खबर है।

Update: 2021-12-29 05:24 GMT

DDU गोरखपुर में नैक ग्रेडिंग के लिए हजारों फेक ID बनाने का कुलपति प्रो. राजेश सिंह पर बड़ा आरोप, विवि प्रशासन ने दी सफाई

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

DDU News Today: यूपी के गोरखपुर स्थित दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्र आंदोलन के राह पर है, तो बिहार के पूर्णिया विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए तीन वर्ष बाद एक राहत भरी खबर है। दोनों शहरों की दूरी 544 किलोमीटर है। इसके बाद भी दोनों के मौजूदा हालात के लिए एक व्यक्ति से गहरा नाता है। हम बात कर रहे हैं दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह की। प्रो. सिंह पूर्णिया विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर प्रथम कुलपति के रूप में पदस्थापित रहे। जिन्होने पीजी की कक्षाएं तो शुरू करा दी,पर शासन से इसकी अनुमति नहीं ली। लिहाजा तीन वर्ष तक परेशान रहे छात्रों को अब जाकर विषयों की मान्यता मिलने पर राहत मिली है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर के कुलपति हैं,तो स्वाभाविक रूप से कुछ विशिष्टता तो होगी ही।बिहार में पूर्णिया विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद पहला कुलपति बनने का प्रो. राजेश सिंह को गौरव प्राप्त है। उनके ही कार्यकाल में स्नतकोत्तर के तमाम विषयों की पढ़ाई शुरू हुई व परीक्षा भी होती रही तथा छात्र उत्तीर्ण व अनुतीर्ण घोषित भी होते रहे। लेकिन इन विषयों की मान्यता नहीं थी।लिहाजा डिग्री के औचित्य पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इस बीच प्रो.राजेश सिंह को नई तैनाती के रूप में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय की कमान मिल गई।जहां के छात्र व शिक्षक अब आंदोलन की राह पर हैं और इनकी अब सबसे प्रमुख मांग यहां से कुलपति को हटाने की है।

फिलहाल पूर्णिया विश्वविद्यालय से जुड़़ी ताजा खबर परेशान करनेवाला नहीं है,बल्कि छात्रों को राहत देनेवाली है।वर्षों से आंदोलित यहां के छात्रों की मांग पूरी हो गई है। विश्वविद्यालय में जिन विषयों का शिक्षण कार्य चल रहा था,उसकी मान्यता शासन ने दे दी है।जिसकी पढ़ाई शासन से अनुमति लिए बिना तत्कालीन कुलपति प्रो.राजेश सिंह ने शुरू की थी।

इसके पूरे प्रकरण के संबंध में विस्तार से जानने पर यह बात सामने आती है कि पूर्णिया विश्वविद्यालय में पीजी की पढ़ाई बगैर राज्य सरकार के मान्यता के ही शुरु कर दी गयी थी। इस बीच कक्षाएं और परीक्षाएं हुई, मगर मान्यता नहीं होने के चलते परीक्षा विभाग ने रिजल्ट जारी नहीं किया। टीआर के माध्यम से पास व फेल की सूचना परीक्षार्थियों को दी गयी। अंकपत्र वर्ष 2021 में राज्य सरकार से पीजी की मान्यता मिलने के बाद ही परीक्षार्थियों को दिया गया। इस बीच पीजी के परीक्षार्थियों ने कई बार आंदोलन किया।

हालांकि मान्यता मिलने के बाद सीनेट की पहली बैठक में पीजी विभाग को लेकर कई प्रस्ताव अनुमोदित हुए। इसके तहत पीजी के प्रत्येक विभाग में एक प्रोफेसर, दो एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के चार पद होगें। वहीं प्रत्येक पीजी विभाग में सात शिक्षक देने की योजना है। इसके अलावा प्रत्येक विभाग में दो ऑफिस असिस्टेंट और तीन चतुर्थवर्गीय कर्मी का पद सृजित करने का प्रस्ताव अनुमोदित किया गया है। वहीं विषयों की आवश्यकता के मुताबिक लैब इंचार्ज का पद होने की बात सीनेट में कही गयी है। वहीं पीजी के 22 विभागों में कैमिस्ट्री बॉटनी, जूलॉजी, फीजिक्स, गणित, कॉमर्स, अंग्रेजी, हिन्दी,उर्दू, मैथिली, संस्कृत, पॉलिटिकल सायंस, हिस्ट्री, इकोनोमिक्स, सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी जियोग्राफी, बांग्ला, पर्सियन, म्यूजिक और होम सायंस विषय पर प्रस्ताव अनुमोदित किये गये।

28 माह रहा पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यकाल

पूर्णिया विश्वविद्यालय की स्थापना मार्च 2018 में हुई तथा पहले कुलपति के रूप में प्रो.राजेश सिंह की तैनाती हुई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रो.राजेश सिंह की केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के विधायक पुत्र से करीबी रही है। प्रो.सिंह का 28 माह का कार्यकाल काफी विवादों में रहा। बिहार के एमएलसी डा.संजीव कुमार सिंह की माने तो उन्होंने कुलपति के खिलाफ कुलाधिपति से कई बार लिखित शिकायत की थी। जिसमें स्थापित नियमों के विपरित काम कर विश्वविद्यालय में अराजकता फैलाने का आरोप था। कुलपति पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में अनियमितता बरतने का आरोप लगा। इसके अलावा बायोटेक्नोलॉजी और मैनेजमेंट सीटों के निर्धारण में राज्य सरकार की अनुमति न लेने का आरोप भी रहा। रोक के बावजूद तृतीय व चतुर्थ श्रेणी में भर्ती करने,बिना राजभवन से अनुमति लिए मनमाना शुल्क तय कर पीएचडी पाठयक्रम संचालित करने,जैसे आरोप लगे।

एमएलसी की शिकायतों पर शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सतीश चंद्र झा के जवाबतलब करने की प्रक्रिया चल ही रही थी कि सितंबर 2020 में यहां से कार्यमुक्त करते हुए यूपी में दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर जैसे बड़े विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया गया। हालांकि ं प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ लोकायुक्त बिहार द्वारा कराई गई विजिलेंस जांच में धन उगाही और वितीय अनियमितता के आरोप बाद में सिद्ध हुए। जिस पर फरवरी 2021 में एफआइआर दर्ज करने के आदेश हुए ।

विवादों में रहा है डीडीयू में अब तक के 14 माह का कार्यकाल

सितंबर 2020 में प्रो.राजेश सिंह ने दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय का कार्यभार संभाला। अब तक उनके कार्यकाल का 14 माह से अधिक वक्त गुजर चुका है। इनकी तैनाती यहां तीन वर्ष के लिए की गई है। इस बीच यहां भी नियमों की अनदेखी करने व भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर ये लगातार विवादों में हैं। जिसको लेकर छात्र से लेकर शिक्षक तक आंदोलन की राह पर हैं। हिन्दी विभाग के प्रो.कमलेश गुप्ता ने कुलपति को हटाने की मांग को लेकर जनअभियान शरू कर दिया है। पहले सांकेतिक आंदोलन के रूप में सत्याग्रह की शुरूआत की।जिसके बाद उनके समर्थन में छात्र भी सड़क पर उतर आएं।जिसका नतीजा रहा कि शिक्षकों ने विभिन्न रूपों में आंदोलन के प्रति अपनी एकजूटता जाहिर करते हुए कुलपति का विरोध शुरू कर दिया है। इन सबका नतीजा रहा कि लखनऊ से आए कुलाधिपति के ओएसडी यहां दो दिनों तक शिक्षकों व छात्रों से वार्ता कर पूरे हालात का मंथन किया। जिसकी रिपोर्ट वे कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल को सौंपेंगे।उधर इस बीच विश्वविद्यालय में शीतावकाश हो जाने से प्रो. कमलेश गुप्ता समेत अन्य शिक्षकों ने जन अभियान शुरू कर दिया है। लोगों से संपर्क कर विश्वविद्यालय के हालात व कुलपति के अनैतिक कार्यों से अवगत कराते हुए सहयोग की अपील कर रहे हैं।साथ ही इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। इसके बाद 3 जनवरी को कैंपस खुलने पर आंदोलन की अगली रणनीति तय करने का शिक्षक संगठन ने निर्णय लिया है।

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