लाल फीताशाही के मकड़जाल में उलझी गरीब-लाचार बुजुर्ग की फाइल, खुद को 'जिंदा' साबित करने की चुनौती

कबीर दास बिंद का नाम पूर्व में आवास योजना की सूची के क्रमांक संख्या 8 पर अंकित था, आरोप है कि इसे प्रधान, सेक्रेटरी व खंड विकास अधिकारी की मिलीभगत से आवास सूची से बाहर कर दिया गया और उन्हें 'मृतक' दिखाया गया....

Update: 2020-12-01 09:08 GMT

संतोष देव गिरी की रिपोर्ट

मिर्जापुर। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में व्यवस्था इतनी पंगु हो चुकी है कि एक जीवित बुजुर्ग को कागजों में मृतक बता दिया गया ताकि वह आवास योजना के लाभ से वंचित हो जाए। पीड़ित बुजुर्ग को खुद को जीवित साबित करने के लिए अधिकारियों के दर पर फरियाद लगानी पड़ रही है लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। पीड़ित की फाइल लाल फीताशाही के मकड़जाल में उलझी हुई शासन प्रशासन की त्वरित न्याय व्यवस्था को मुंह चिढ़ाने का काम कर रही है।

यह मामला मिर्जापुर जिले के जिगना थाना क्षेत्र के विकास खंड छानबे के तहत बौता गांव का है। 72 वर्षीय कबीरदास बिंद को ग्राम सभा में भ्रष्टाचार और ग्राम प्रधान के कार्य व संपत्तियों की जांच कराना मंहगा पड़ गया है। उन्हें कागजों में मृतक बता दिया। अब वह खुद को जीवित दिखाने के लिए गुहार लगाते फिर रहे हैं।

कबीर दास बिंद का नाम पूर्व में आवास योजना की सूची के क्रमांक संख्या 8 पर अंकित था। आरोप है कि इसे प्रधान, सेक्रेटरी व खंड विकास अधिकारी की मिलीभगत से आवास सूची से बाहर कर दिया गया और उन्हें 'मृतक' दिखाया गया। कबीर दास का आरोप है कि तत्कालीन सेक्रेटरी व प्रधान के द्वारा 30,000 लेकर अपात्र व धनी व्यक्तियों का आवास बनवाया गया, उनसे भी यही डिमांड की गई जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि वह आवास से तो वंचित हुए ही, साथ ही उन्हें मृतक भी बता दिया गया।

ग्रामसभा में 44 आवास बनवाए गए हैं। उनका आरोप है कि 44 आवास में से 35 आवास गलत तरीके से बनवाए गए हैं। महज 9 आवास ही सही बनवाए गए हैं। प्रधान की 'कृपा' किसी पर बूंद भर भी नहीं बरसी है तो किसी पर भरपूर बरसी है। आलम यह है कि किसी के घर में 4 आवास, किसी के घर में 3 आवास, किसी के घर में 2 आवास बनवाए गए हैं। यही नहीं जिसका बेटा सेना में है, जिसके पास पक्का मकान, गाड़ी मोटर, खेत खलिहान, दो चक्का और हार्डवेयर मशीन हैं, उन लोगों का आवास भी बनवाया गया है।

जिन लोगों का नाम पिछले वर्ष भी आवास योजना की सूची में शामिल था, उनका दोबारा आवास बनवाया गया है। इसकी शिकायत करते हुए खण्ड विकास अधिकारी को 14 अगस्त 2019 व 14 सितंबर 2019 को प्रार्थना पत्र दिया जा चुका है जिस पर न तो जांच हुई न कोई कार्यवाही। 

चौंकाने वाली बात यह है कि ब्लॉक से ही बैठे-बैठे प्रधान द्वारा रिपोर्ट दे दी जाती है। प्रधान की जांचे नहीं हुई तो इसकी शिकायत मिर्जापुर के मुख्य विकास अधिकारी से की गई। इस संबंध में क्रमश: 14 मई 2018, 20 अगस्त 2018, 19 सितंबर 2018, 30 अक्टूबर 2018, 9 जनवरी 2019, 27 मई 2019, 3 जून 2019, 24 अक्टूबर 2019 व 14 सितंबर 2020 को प्रार्थना पत्र दिया गया। फिर 9 जनवरी 2019 व 27 मई 2019 को रजिस्ट्री कर प्रार्थना पत्र देने के बावजूद मुख्य विकास अधिकारी मिर्जापुर द्वारा आज तक न तो कोई जांच करने की जहमत उठाई गई और न ही कोई कार्रवाई की गई।

कबीर दास ने मिर्जापुर सदर के उपजिलाधिकारी लेकर दिवस की तहसील, मिर्जापुर के जिलाधिकारी के यहां भी फरियाद लगाई लेकिन लालफीताशाही में उलझी पंगु व्यवस्था का हाल देखें आज तक न कोई आदेश, न कोई जांच और न ही कोई कार्रवाई हुई। मिर्ज़ापुर के जिलाधिकारी के बाद विंध्याचल मंडल मिर्जापुर के उपायुक्त के यहां भी प्रार्थना पत्र दिया गया, लेकिन सभी से निराशा ही हाथ लगी। 

इसके बाद कबीर दास जनसुनवाई पर भी शिकायत करते रहे। पीड़ित ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1076 पर शिकायत की, लेकिन यहां से भी निराशा ही हाथ लगी। कबीरदास के पौत्र शीतला प्रसाद बिंद कहते हैं कि ग्राम प्रधान की जांच होती है या गरीबों की फरियाद को ऐसे ही दबा दिया जाता है। वह कहते हैं, 'माननीय मुख्यमंत्री योगी जी बड़े-बड़े वादे करते है, बड़े-बड़े वादे पूरे भी करते हैं, लेकिन अब देखना यह है कि हम गरीब के साथ मुख्यमंत्री द्वारा न्याय कब किया जाता है।'

उनका आरोप है कि गांव में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार, घोटाला किया गया है। आवास, शौचालय, चकरोड़, नाली इन्टरलिंकिंग, ग्राम पंचायत में सोलर लाईट आदि से लगाय प्रधान पति द्वारा जितने भी कार्य कराए गए हैं जिसकी सही जांच कराई गई तो सबकुछ स्वत: ही सामने आ जाएगा। उन्होंने गांव में हुए कामों में व्याप्त भ्रष्टाचार, संम्पत्ति की जांच कराने की जब ठानी तो ग्राम प्रधान कृष्णावती देवी के पति द्वारा शिकायतकर्ता को जान से मार देने की धमकी दी जाने लगी। उन्हें पुलिस थाने तक गलत मुकदमा लगा परेशान किया जाता रहा है।



 


मिर्जापुर जनपद के विकास खण्ड छानबे के अंतर्गत ग्राम सभा बौता विशेषर सिंह बिंद बाहुल्य गांव हैं। कुछेक परिवार को छोड़ दिया जाय तो यह गांव पूरी तरह से बिंद (पिछड़ी जाति) बाहुल्य गांव है। जहां प्रधान भी बिंद बिरादरी से चुना जाता है। मौजूदा प्रधान महिला कृष्णा देवी हैं जो कहने मात्र को प्रधान हैं, यूं कहें कि वह केवल एक मुखौटा हैं, सारा ग्राम प्रधान का काम पीछे से प्रधानपति भीमराज बिंद मास्टर जी ही संभालते हैं। जबकि कृष्णा देवी घरमें चूल्हा चौका तक ही सीमित हैं। 

हमने जब ग्राम सभा बौता विशेषर सिंह का दौरा कर प्रधान से मिलकर कबीर दास प्रकरण में उनका पक्ष जानना चाहा तो बताया गया कि 'मास्टर साहब' नहीं हैं। जब बताया गया कि हमेंं मास्टर साहब नहीं प्रधान जी से मिलना है तो फिर वही बात दोहराई गई कि मास्टर साहब से मिलिए। अब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव का विकास कैसे व किसके जरिए किया जाता होगा?

सुधार के बजाए प्रधान और सिक्रेट्री अपने हट पर अडिग

कबीर दास बिंद के कुल पांच पुत्र हैं। सभी मेहनत मजदूरी के साथ ही खेती-किसानी कर अपने अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। हैरानी की बात यह है कि कबीर दास के बड़े बेटे लालजी को आर्मी में दिखाया गया है। अब इसे घोर लापरवाही कहा जाए या घर बैठे की गई कार्रवाई, लेकिन इसमें ब्लॉक कर्मियों की उदासीनता और मनमानी साफ उजागर हुई है।


कबीरदास प्रकरण में ग्राम प्रधान और ब्लॉक के अधिकारियों, कर्मचारियों की मनमानी का आलम यह रहा है कि कबीर दास प्रकरण को सुलझाने के बजाय इसे उलझाये ही रखा। परियोजना निदेशक जिला ग्राम विकास अभिकरण द्वारा जिलाधिकारी मिर्जापुर को प्रेषित पत्रांक संख्या -2594/ जनसुनवाई /2017-18, दिनांक 2-11-2018 में कबीर दास के बेटे लाल जी को सेना की नौकरी में दिखाया गया है। इसी प्रकार कबीर दास की बेटे छोटेलाल को वर्ष 2018 में आवास का लाभ दिया जाना बताया गया है जबकि कबीरदास को 'स्वर्गीय' दिखा देना आवास सर्वे के दौरान लिपकीय त्रुटिमात्र कहकर अपना बचाव किया गया है।

पत्र में ग्राम प्रधान एवं पंचायत सचिव द्वारा कबीरदास को 'मृतक' नहीं दिखाया गया है का उल्लेख करते हुये सर्वे के समय त्रुटिवश ऐसा होना बताते हुये उच्चाधिकारी को साफतौर पर गुमराह किया गया है। मजे कि बात है कि इस पत्र में ग्राम पंचायत अधिकारी धीरेंद्र गुप्ता को दोषी भी बताया गया है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है जब धीरेंद्र गुप्ता दोषी है तो फिर उन पर कार्रवाई क्या सुनिश्चित की गई? आखिरकार वह कैसे लंबे समय से वहां डटे हुए हैं? यदि यह सब कुछ सर्वे में त्रुटि वश हुआ है तो इस त्रुटि को सुधारा क्यों नहीं गया? ऐसे कई अनगिनत चुभते हुए सवाल जनमानस को कचोट रहे हैं जिस पर ना तो आलाधिकारी ध्यान दे पा रहे हैं और ना ही मातहत ब्लॉक अधिकारी और कर्मचारी इस मामले का निस्तारण करने में रूचि ले रहे हैं।

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