UP में अपराध को पहली दफा इस डॉन ने दिखाई थी एके-47, खौफ ऐसा की CM की भी ले ली सुपारी

यूपी का एक डॉन जिसका खौफ ऐसा की कई एक विधायकों-सांसदों को निपटाने के बाद सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री तक की सुपारी ले ली। मारने की पूरी योजना बन गई। मौजूदा सरकार को जब पता चला तो कुर्सियों तक में सिहरन दौड़ गई....

Update: 2021-03-18 06:48 GMT

जनज्वार, लखनऊ। उत्तर प्रदेश का एक डॉन जिसका एक जमाने में दशकों तक सिक्का चला। खौफ ऐसा की कई एक विधायकों-सांसदों को निपटाने के बाद सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री तक की सुपारी ले ली। मारने की पूरी योजना बन गई। मौजूदा सरकार को जब पता चला तो कुर्सियों तक में सिहरन दौड़ गई। यूपी का वो डॉन जिसे खत्म करने के लिए तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार को सूबे की पुलिस में एसटीएफ यानी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करना पड़ा था। 

उत्तर प्रदेश में जब-जब बदमाशों का नाम लिया जाता है तो उसमें श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सबसे ऊपर आता है। 25 साल के इस युवा बदमाश श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर जिले के ममखोर गांव में हुआ था। श्रीप्रकाश के पिता एक स्कूल में शिक्षक थे। श्रीप्रकाश ने पहली बार 1993 में अपनी बहन पर छिंटाकशी करने वाले शख्स को बीच बाजार में गोली मार दी थी। इस कांड के बाद श्रीप्रकाश बैंकॉक भाग निकला था और वहां से वापस पर उसने बिहार के मोकामा में सूरजभान का गैंग ज्वाइंन कर लिया था।

श्रीप्रकाश ने साल 1997 में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही को लखनऊ में दिन दहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना के बाद से यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया। इसके बाद उसने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर, बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही फिल्मी अंदाज में गोलियों से भून दिया था। उसने इस घटना में एके-47 राइफल का इस्तेमाल किया था। श्रीप्रकाश देश का पहला बदमाश था, जिसने हत्या के लिए उस समय एके-47 राइफल का प्रयोग किया था।

इन तमाम घटनाओं के बाद 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने मुख्यमंत्री कार्यालय से मिले आदेशों के बाद 50 बेहतरीन जवानों को छांटकर स्पेशल टास्क फोर्स (STF) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण था कि श्रीप्रकाश ने उस समय सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली थी। बताया जाता है कि यह सौदा 5 करोड़ में तय हुआ था। श्रीप्रकाश शुक्ला की एक प्रेमिका भी थी जो दिल्ली में रहती थी। एसटीएफ को इस बात की भनक मिल चुकी थी।

23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। जैसे ही उसकी कार इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ ने उसे घेर लिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वह नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया। श्रीप्रकाश की मौत के बाद उसका खौफ भले ही खत्म हो गया था लेकिन जयराम की दुनिया में उसके आज भी बड़े चर्चे होते हैं।

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