कानपुर गेस्ट हाउस कांड में BJP को कोसते सपा नेता भूल गये मनोज सिंह उनके ही राज में पनपा
कानपुर गेस्ट हाउस कांड में BJP के लिए विधवा विलाप कर रहे सपा नेता भूल गए कि मनोज सिंह उनकी ही सत्ता में पनपा था....
जनज्वार, कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित नौबस्ता में हुआ गेस्ट हाउस कांड मजे की सुर्खियां पा गया है। प्रदेश का मुख्य विपक्ष यानी समाजवादी पार्टी के लोग पानी पी-पीकर भाजपा नेताओं कि अपराधिक सांठगांठ पर विधवा विलाप कर रहे हैं, लेकिन सपा नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए की हिस्ट्रीशीटर मनोज सिंह अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में ही पनपा था।
अखिलेश यादव के कार्यकाल में 2016 के दौरान मनोज सिंह समाजवादी पार्टी का जिला सचिव रहा है। 2017 में जब सपा सिमटी तो मनोज सिंह पाला बदलकर भाजपा नेताओं के संपर्क में आ गया था। सत्ता, सिस्टम और कुर्सी की यही विडंबना रहती है कि दोष हमेशा सामने या दूसरे में ही नजर आता है।
2017 में सपा का किला ढ़हने के बाद मनोज सिंह ने भाजपा में एंट्री मारने के लिए ऐसे नेताओं को चुना जिनका अपराध से भी किसी ना किसी रूप में नाता रहा था। कानपुर से सपा विधायक इरफान सोलंकी ने एक न्यूज चैनल से बातचीत करते हुए कहा कि 'जिसकी लाठी-उसकी भैंस' यानी कल लाठी उनकी थी तो भैंसे उनकी थीं, आज लाठी भाजपा की तो भैंस भाजपा की। कल को फिर लाठी हाथ में आते ही विधायक जी सिर के बल खड़े होकर सारी भैंसें बांध लेंगे।
इसके अलावा सपा के कई नेता जो इस बात को जानते हैं प्रकरण पर चुप्पी साधकर बैठ गए थे। छोटे से लगाकर बड़े तक किसी नेता की जुबान से चूँ तक नहीं निकली, क्योंकि उसके पीछे का कारण यह था जो आप पढ़ रहे हैं। गुंडों माफियाओं और राजनितिज्ञों का चोली दामन का साथ होता है, जो वक्त पड़ने पर सामने आता रहता है।
आज प्रदेश स्तर की किसी भी पार्टी का इम्यूनिटी सिस्टम इतना मजबूत है क्या जो सामने आकर भाजपा का विरोध कर सके? जवाब है नहीं। क्योंकि राजनैतिक हमाम में सभी नंगे हैं। कुछ कम तो कुछ ज्यादा। जिसकी सरकार उसके गुंडे और अपने मुताबिक उनका इस्तेमाल करने की कला जनता फिल्मों से लेकर आम जिंदगी में देखती रहती है।
अब की राजनीति में सुचिता की कोई जगह नहीं बची है। विधायक मंत्री बन जाईये, अपना घर भर लीजिए। बेटे-बेटी भाई बंधुओं तक का कुनबा फल और फूल जाता है। आलीशान घर और कांच की दीवारों से जनता की चित्कार सुनाई देनी बंद हो जाती है। वोट देकर सत्ता की मलाई तक पहुँचाने वाली जनता नेताजी से उम्मीद की आस में दम तोड़ देती है, नेताजी घर जाकर ढांढस बंधाते हैं, बाद में सबकुछ भूल जाया जाता है क्योंकि यही नियती है।