किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे मासूम बच्चे, किसानों को दान किए अपने गुल्लक
चारों बच्चों को गाजीपुर बॉर्डर पर लाने वाले विकास सरकारी नौकरी करते हैं, उन्होंने कहा कि, 'किसान हमारे भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं, वहीं चारों बच्चे यहां इनका प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए आए हैं। हम सब किसानों को सहयोग करते हैं....
गाजीपुर बॉर्डर। राजधानी दिल्ली की सीमा पर पिछले कई दिनों से पंजाब, हरियाणा और कुछ दूसरे राज्य के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में किसानों के समर्थन में मासूम बच्चे भी उतर चुके हैं। वहीं महीनों से बच्चों ने जो अपनी गुल्लक में पैसा इकट्ठा किया था, उसे भी किसानों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए सौंप दिया है। दरअसल प्रदर्शन कर रहे किसान अध्यादेश के जरिए बनाए गए तीनों नए कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
गाजीपुर बॉर्डर पर उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहें हैं, वहीं सोमवार शाम मेरठ से 4 बच्चों टिया मालिक, देव मालिक, प्रिंस चौधरी और अवनी चौधरी ने आकर किसानों को अपना समर्थन दिया। इतना ही नहीं बीते 4-5 महीनों से अपनी गुल्लक में जो पैसा इकट्ठा किया था, उसे भी किसानों को सौंप दिया।
बॉर्डर पर सोमवार को किसान नेताओं ने भूख हड़ताल रखी थी, शाम 5 बजे इन्ही चारों बच्चों ने जूस पिलाकर किसानों का अनशन तुड़वाया।
दरअसल ये चारों बच्चे मेरठ के निवासी हैं, वहीं दूसरी, छवीं और आंठवी क्लास में पढ़ाई कर रहे हैं। प्रिंस चौधरी ने आईएएनएस को बताया, 'हम सभी किसानों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए मेरठ से यहां आए हुए हैं। मैं 6 महीनों से अपनी गुल्लक में पैसा इखट्टा कर रहा था। जिसे मैंने किसानों को दे दिया है।'
चारों बच्चों को गाजीपुर बॉर्डर पर लाने वाले विकास सरकारी नौकरी करते हैं। उन्होंने कहा कि, 'किसान हमारे भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं चारों बच्चे यहां इनका प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए आए हैं। हम सब किसानों को सहयोग करते हैं।'
विकास के साथ आए इन चारों बच्चों की उम्र लगभग 7 साल से लेकर 13 साल तक है। दरअसल किसानों को राजनीतिक पार्टियों का भी समर्थन मिला हुआ है। वहीं इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई बार बातचीत हुई, लेकिन अब तक कोई नतीजा नहीं निकल सका।
हालांकि किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की भी मुलाकात हुई, फिर भी कोई रास्ता नहीं निकल सका। बॉर्डर पर बैठे किसान तीनों कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
दोनों ही पक्ष अपने रुख में बदलाव करने के लिए तैयार नहीं दिख रहे हैं। हालांकि सरकार यह दावा कर रही है कि नए कानूनों से किसानों का कोई नकुसान नहीं होगा।