Jyoti Murder Case: फोन पर ज्योति की चीखें सुनना चाहता था हत्यारा पियूष, 45 गवाह, 560 तारीखों के बाद इस तरह हुआ न्याय
Jyoti Murder Case: कानपुर का सबसे चर्चित हत्याकांड ज्योति। 27 जुलाई 2014 की वो तारीख जब इस हत्याकांड को दबाने के लिए वैगन आर में रूपये रखकर शहर के पत्रकारों को खरीदा जा रहा था। लेकिन हर किसी पत्रकार ने बिकने से इनकार कर दिया। उसपर मामले का ट्रायल कर दिया गया...
Jyoti Murder Case: कानपुर का सबसे चर्चित हत्याकांड ज्योति। 27 जुलाई 2014 की वो तारीख जब इस हत्याकांड को दबाने के लिए वैगन आर में रूपये रखकर शहर के पत्रकारों को खरीदा जा रहा था। लेकिन हर किसी पत्रकार ने बिकने से इनकार कर दिया। उसपर मामले का ट्रायल कर दिया गया। 8 साल के लंबे वक्त में 560 तारीखें पड़ीं। और मामले में 45 गवाह थे। सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद भी 20 महीने का लंबा वक्त लगा। बावजूद इसके ज्योति के पिता शंकरलाल नागदेव ने हार नहीं मानी।
जनज्वार से बात करते हुए शंकरलाल नागदेव की आंखों में आंसू थे। उन्होने हमसे कहा कि उन्हें अदालत के फैसले से तसल्ली है। वे इस फैसले के बाद अबिभूत हैं, और फैसले का सम्मान करते हैं। शंकरलाल नागदेव के वरिष्ठ अधिवक्ता दामोदर मिश्रा ने भी हमसे बात की। उन्होने कहा कि वे शुरू से ही इस मामले को देख रहे हैं। उनके पास आरपियों के खिलाफ सभी साक्ष्य मौजूद थे। जिस आधार पर सभी को दोषी करार दिया गया है।
दाखिल हुई 2700 पेज की केस डायरी
जघन्य ज्योति हत्याकांड की विवेचना के लिए मुख्य विवेचक राजीव द्विवेदी के साथ 6 सह विवेचकों की बड़ी टीम लगाई गई थी। विवेचना के बाद लगभग 2700 पेज की केस डायरी अदालत में दाखिल की गई। ADGC धर्मेंद्र पाल सिंह ने बताया कि दाखिल केस डायरी में 109 गवाह बनाये गये थे। कोर्ट में अभियोजन की तरफ से 37, बचाव पक्ष की तरफ से पांच व कोर्ट साक्षी के रूप में तीन गवाह पेश किये गये थे।
पुलिस जांच में झूठी निकली पियूष की कहानी
27 जुलाई 2014 की रात थाना सिवरूप नगर पहुँचे पियूष ने पुलिस को कहानी तो सटीक सुनाई थी। कुछ हद तक उसकी कहानी पर भरोसा भी किया गया। लेकिन परिस्थितियों और कहानी में विरोधाभास से संदेह पैदा हुआ। पुलिस ने पड़ताल की तो मामला कुछ और ही निकला। पुलिस ने पड़ताल के बाद खुलासा किया कि पियूष और उसके घर के बगल में रहने वाली केसर पान मसाला कारोबारी की बेटी मनीषा मखीजा के बीच प्रेम संबंध थे। जिसको लेकर ज्योति को रास्ते से हटाने की साजिश रची गई थी।
ज्योति की चीखें सुनना चाहता था पियूष
पियूष श्यामदसानी ने भाड़े के हत्यारों से कहा था कि, 'मुझे ज्योति की चीखें सुननी हैं।' इस बात का खुलासा खुद पियूष ने कस्टडी रिमांड में किया था। पूछताछ में उसने कबूला था कि भाड़े के हत्यारों ने उससे पहले ही तय कर लिया था, कि हत्या के दौरान अपना फोन चालू रखे। ताकि वह ज्योति की चीखें सुन सके। पियूष ने पुलिस को बताया था कि जब हत्यारों ने ज्योति को चाकू मारा तब वह चिल्ला रही था, 'पियूष मुझे बचा लो।' लेकिन पत्थरदिल पियूष को जरा भी रहम नहीं आया।
मैं पत्नी नहीं...पत्नी जैसी हूँ
1 सितंबर 1988 को मध्यप्रदेश के जबलपुर में जन्मीं ज्योति की शादी 28 नवंबर को पांडुनगर निवासी पियूष के साथ हुई थी। छानबीन में ज्योति की एक डायरी पुलिस के हाथ लगी थी। उस डायरी में घटना से चंद रोज पहले ज्योति ने लिखा था, 'दुनिया की निगाह में मैं पियूष की पत्नी हूँ किससे और कैसे कहूँ कि मैं पत्नी नहीं..पत्नी जैसी हूँ। उसने मुझे कभी पत्नी का दर्जा नहीं दिया। वह मुझे समझता ही नहीं है। ना जाने क्यों वह मुझसे नफरत करता है। लेकिन परिवार की बदनामी के डर से यह बात मैने किसी को नहीं बताई और हमेंशा पत्नी की भूमिका निभाती रही। पियूष मुझे मानसिक रूप से परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ता।'
सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं...
अदालत का फैसला आने के बाद ज्योति के पिता शंकरलाल नागदेव भावुक हो गये। आठ साल के लंबे वक्त तक ज्योति को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहे शंकरलाल नागदेव पत्रकार वार्ता के दौरान अपने आंसू नहीं रोक पाए। उन्होने कहा कि उनको भरोसा था कि सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। अदालत के इंसाफ पर उन्हें भरोसा था। जनज्वार से बात करते हुए शंकरलाल नागदेव ने कहा कि वे अदालत के फैसले से अभिभूत और गदगद हैं।
इस तरह साबित हुए गुनहगार
सबूत नं.1 - ज्योति को डायरी लिखने की आदत थी। हत्या के बाद पुलिस को ज्योति की डायरी मिली। जिसमें उसने पियूष से अपने रिश्तों की कड़वाहट का जिक्र किया था। डायरी में ज्योति ने यहां तक लिखा था कि विदेश में हनीमून के दौरान भी पियूष काफी समय किसी दूसरी लड़की से फोन पर बात करता था। बाद में ज्योति की डायरी को सबूत के तौर पर अदालत में भी पेश किया गया था।
सबूत नं.2 - घटना के दिन ज्योति को खाना खिलाने के लिए पियूष रेस्टोरेंट ले गया था। पुलिस ने रेस्टोरेंट के CCTV फुटेज खंगाले जिसमें ज्योति को अंदर छोड़कर पियूष किसी से मिलने बाहर आया था। इसके अलावा हत्याकांड में इस्तेमाल चाकू जिस मॉल से खरीदा गया उसके फुटेज भी पुलिस के हाथ लगे थे। इन फुटेज की सीडी भी कोर्ट में चलाई गई थी। बाद में यह सबूत भी अहम साबित हुआ।
सबूत नं.3 - हत्या में इस्तेमाल चाकू को विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया था। चाकू पर लगे खून और ज्योति के खून का मिलान हो गया था। प्रयोगशाला की रिपोर्ट और चाकू को कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया था।
सबूत नं.4 - पुलिस ने ज्योति, पियूष, मनीषा, अवधेश, रेनू, सोनू व आशीष के अलावा पियूष के घरवालों तथा पियूष की फैक्ट्री के कुछ कर्मचारियों की कॉल डिटेल रिपोर्ट खंगाली थी। बातचीत के आदार पर कड़ियां जोड़ीं और खुलासा किया।
कब क्या हुआ?
27 जुलाई 2014 को ज्योति की चाकू से गोदकर हत्या की गई थी।
30 जुलाई 2014 को पियूष को जेल भेजा गया था।
7 सितंबर 2017 को पियूष की पहली जमानत याचिका हाईकोर्ट से खारिज हुई।
31 जुलाई 2019 को पियूष की दूसरी जमानत याचिका खारिज हुई।
15 अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट ने पियूष को जमानत दे दी थी।
8 अक्टूबर 2020 को फर्जी सिम से धोखाधड़ी मामले में हाईकोर्ट से उसे जमानत मिल गई थी।
20 अक्टूबर 2022 को पियूष उसकी प्रेमिका मनीषा सहित 6 को दोषी करार दिया गया।