कानपुर स्टांप फर्जीवाड़े में एक और खुलासा, पकड़े गए दो आरोपियों के पास से बरामद हुए 70 साल पुराने स्टांप
धोखाधड़ी के इस खेल में साल के हिसाब से स्टांप की कई गुना कीमत वसूल की जाती है। जितने साल पुराना स्टांप होता है, उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होती है। 100 रुपये के स्टांप की बिक्री हजारों में होती है।
जनज्वार, कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में दो अधिकृत वेंडर को गिरफ्तार कर जाली स्टांप और नकली नोटरी टिकट के सहारे संपत्तियां हथियाने वाले गिरोह का खुलासा होने के बाद अब इनका एक और कारनामा सामने आया है। खुलासे में आरोपियों के पास से 70 साल पुराने स्टांप पेपर बरामद हुए हैं। पुलिस को आशंका है कि इनसे कई पुरानी संपत्तियां भी खरीदी गई हैं।
इन पूरे फर्जीवाड़े में शक जताया जा रहा है कि ट्रेजरी के कुछ कर्मचारी भी शामिल रहे हैं। एसपी साउथ दीपक भूकर की टीम ने गुरुवार को दो वेंडर मोहम्मद शीजान और रंजीत कुमार को गिरफ्तार कर जाली स्टांप पेपर और नकली टिकट बेचने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया था। पूछताछ में आरोपियों ने पांच हजार करोड़ से अधिक की विवादित संपत्तियों में जाली स्टांप पेपर उपयोग में लाने की बात कबूली थी।
कानपुर पुलिस ने शुक्रवार, 15 जनवरी को जब बरामद स्टांप पेपरों की जांच की तो कुछ और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पुलिस का दावा है कि आरोपियों के पास साल 1952 तक के स्टांप पेपर मौजूद थे। आरोपी जालसाजों को वर्षों से विवादित जमीनों, मकानों में वसीयतनामा तैयार करने के लिए मुंहमांगे दामों पर बेच रहे थे।
एसपी साउथ दीपक भूकर ने बताया कि प्राथमिक जांच में पता चला है कि पकड़े गए आरोपियों के संपर्क ट्रेजरी विभाग के कर्मचारियों से भी थे। पुराने स्टांप की खरीद फरोख्त रजिस्टर पर अंकित होती थी, जो साल के अंत में ट्रेजरी में जमा हो जाता है। पुलिस अब आरोपियों से बरामद मोबाइल के जरिये ट्रेजरी कर्मचारियों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गई है। साथ ही आरोपियों के मोबाइल की कॉल डिटेल भी निकलवाई जा रही है।
एसपी साउथ का कहना है कि पकड़े गए आरोपियों ने शहर के अलावा आसपास के जिलों लखनऊ, गोरखपुर, देवरिया, प्रयागराज, वाराणसी, मुगलसराय समेत अन्य जिलों में भी स्टांप बेचने की बात कबूली है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि आरोपी इस स्टांप को दोबारा प्रयोग में लाने के लिए बेचते थे।
इससे पहले वह ट्रेजरी से पुराने रजिस्टर हासिल कर उसमें बैक डेट में एंट्री भी कराने का काम करते थे। आरोपियों ने ट्रेजरी विभाग के कुछ कर्मचारियों के बारे में बताया है। इसकी पड़ताल की जा रही है। दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
अधिवक्ता दुर्गेश मणि त्रिपाठी ने जनज्वार को बताया कि मरे हुए व्यक्तियों से संबंधित पुराने दस्तावेज तैयार करने में पुराने स्टांप इस्तेमाल होते हैं। धोखाधड़ी के इस खेल में साल के हिसाब से स्टांप की कई गुना कीमत वसूल की जाती है। जितने साल पुराना स्टांप होता है, उसकी कीमत उतनी ही ज्यादा होती है। 100 रुपये के स्टांप की बिक्री हजारों में होती है। जमीन जायदाद संबंधित दस्तावेज तैयार करने के अलावा बड़ी-बड़ी कंपनियों व फर्मों आदि में लेन देन की लिखापढ़ी में भी पुराने स्टांप का इस्तेमाल कर फर्जीवाड़ा किया जाता है। अपंजीकृत वसीयत, दानपत्र, बंध पत्र, समझौतानामा, इकरारनामा, ट्रस्ट डीड आदि दस्तावेज इन फर्जी स्टांप के माध्यम से तैयार कर करोड़ों की संपत्तियों पर कब्जा करने का खेल चलता है।
एसपी साउथ दीपक भूकर ने बताया, 'आरोपियों पास से बरामद मोबाइल की कॉल डिटेल निकलवाई जा रही है। जिसके उनके और साथियों का पता लगाकर पूछताछ की जा रही है। जल्द ही और आरोपी पुलिस की गिरफ्त में होंगे'।