मुश्किलों में फंसी मायावती की राजनीति, अखिलेश और चंद्रशेखर आजाद की दोहरी चुनौती

उत्तरप्रदेश में सवा साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दीं। इस क्रम में सभी दल अपने-अपने खेमे को मजबूत करने में जुटे हैं। ऐसे में मायावती के लिए अखिलेश यादव व चंद्रशेखर आजाद दोहारी चुनौती बनते नजर आ रहे हैं...

Update: 2020-10-31 04:20 GMT

दलित लीडरशिप को खत्म करने के आरोप लगते रहे हैं मायावती पर (file photo)

जनज्वार। उत्तरप्रदेश की राजनीति में मायावती की राजनीति मुश्किलों में फंसती हुई दिख रही है। मायावती के सामने अखिलेश यादव एवं चंद्रशेखर आजाद दोहरी चुनौती हैं। उन्हें यूपी की सबसे बड़ी भाजपा से अधिक इनकी रणनीतियों से लड़ना होगा। अखिलेश यादव ने बसपा के विधायक दल में सेंध लगायी है जिसके बाद मायावती ने सात विधायकों को बाहर कर दिया। इसके अलावा भी कई नेता समाजवादी पार्टी के समर्थन में हैं।

अपने विधायक दल में टूट के बाद मायावती ने समाजवादी पार्टी को हराने के लिए किसी को भी यहां तक की भारतीय जनता पार्टी को भी समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। हालांकि इसके बावजूद अखिलेश यादव ने रणनीतिक चुप्पी साध रखी है। मायावती के इस बयान में सपा का राजनीतिक लाभ ही नीहित है। मुसलिम वोटों का सपा की ओर से मजबूत धु्रवीकरण होगा और मायावती का इस पर दावा कमजोर होगा।

फरवरी-मार्च 2020 में होने वाले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर यूपी की विभिन्न प्रमुख पार्टियां अपनी रणनीति को धार देने लगी हैं। बसपा के कई नेताओं ने गोपनीय रूप से अखिलेश यादव से मुलाकात की है और संभावना है कि आने वाले दिनों में बसपा छोड़ कर कई लोग सपा में शामिल होंगे।

बसपा प्रमुख मायावती के ओएसडी रह चुके गंगाराम अंबेडकर भी अखिलेश यादव से मिल चुके हैं। गंगाराम मिशन सुरक्षा परिषद नाम से अपना संगठन चलाते हैं जो दलितों को एकजुट करने के लिए काम करती है। अगर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष किसी भी तरह से सपा से 2022 के चुनाव के लिए जुड़ते हैं तो यह मायावती के लिए नुकसानदेह होगा।

सपा को लगता है कि मायावती ने खुद ही भाजपा को समर्थन का ऐलान कर उन्हें राजनीतिक रूप से लाभ की स्थिति में ला दिया है। इसलिए पार्टी अब इस मुद्दे पर कोई ऐसा बयान नहीं दे रही है जिससे मायावती के प्रति किसी तरह से लोगों की राजनीतिक सहानुभूति हो।

चंद्रशेखर आजाद की चुनौती

सपा को लेकर मायावती के नए स्टैंड से जहां उनका मुसलिम वोट बैंक दरकने का खतरा है, वहीं भाजपा के उनके समर्थन के ऐलान के बाद चंद्रशेखर आजाद भी इसका राजनीतिक लाभ लेने को तैयार हैं। चंद्रशेखर आजाद मायावती के तीखे और तल्ख अंदाज के बाद भी उन पर कभी राजनीतिक हमला नहीं करते और न ही उनकी सार्वजनिक निंदा करते हैं। बल्कि बुआ कह कर उनके प्रति गहरा सम्मान प्रकट करते हैं। उनकी रणनीति उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए उनके दलित आधार को खुद की पार्टी के लिए ट्रांसफर करने की है।

मायावती ने हाल में जब सपा के खिलाफ भाजपा तक को समर्थन का ऐलान कर दिया तो आजाद ने ट्वीट कर कहा कि प्रदेश के राजनीतिक हालात से आप सब वाकिफ हैं, मुझे किसी की आलोचना करने की जरूरत नहीं है, लेकिन बाबा साहेब आंबेडकर व कांशीराम के सपनों को सच करना चाहते हैं वे हमारे दलित मूवमेंट से जुड़ें।


चंद्रशेखर आजाद जिस तरह दलितों के मुद्दे पर जमीन पर उतर कर संघर्ष कर रहे हैं, उससे उनकी स्वीकार्यता लगातार बढ रही है। 

चंद्रशेखर आजाद बिहार विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव की पार्टी से गठजोड़ कर कूद हैं और यूपी उचुनाव में मैदान में उतरे हैं। अगर उन्हें इन दोनों चुनावों में वोट प्रतिशत व सीटों का आंशिक लाभ भी होगा तो उनकी छवि मजबूत होगी और वे और अधिक मजबूती से दलित वोटों पर दावा कर सकेंगे।

इससे मायावती के मुसलिम व दलित आधार और कम होने का खतरा बढेगा। चुनाव दर चुनाव मायावती के वोट प्रतिशत व सीटों में गिरावट भी उनकी राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं है।

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