19 साल निर्दोष जेल काटने वाले विष्णु के लिए मानवाधिकार आयोग आया सामने, 6 सप्ताह में रिपोर्ट तलब

बीते दिनों विष्णु को हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दिया था। वह 19 साल से जेल में थे। इस अवधि में उनके माता-पिता सहित दो भाईयों की मौत हो गई। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से विष्णु अपने केस में पैरवी नहीं कर पाए थे।

Update: 2021-03-07 12:53 GMT

जनज्वार ब्यूरो/आगरा। उत्तर प्रदेश के ललितपुर निवासी विष्णु तिवारी को निर्दोष होते हुए भी दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में 19 साल तक जेल में रहना पड़ा। अब इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। आगरा के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस की शिकायत पर मुख्य सचिव और डीजीपी उत्तर प्रदेश को पत्र लिखा गया है। इसमें दोषपूर्ण विवेचना पर विवेचक पर कार्रवाई और पीड़ित को मुआवजा दिलाने के लिए कहा गया है। साथ ही आयोग ने छह सप्ताह में रिपोर्ट तलब की है।

आगरा के रहने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने अपने पत्र में लिखा कि ललितपुर के थाना महरौली के गांव सिलावन के रहने वाले 46 वर्षीय विष्णु पुत्र रामेश्वर के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। वर्ष 2003 में आरोपी को केंद्रीय कारागार आगरा में स्थानांतरित किया गया था।

बीते दिनों विष्णु को हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दिया था। वह 19 साल से जेल में थे। इस अवधि में उनके माता-पिता सहित दो भाईयों की मौत हो गई। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से विष्णु अपने केस में पैरवी नहीं कर पाए थे। बाद में विधिक सेवा समिति की ओर से मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा था।

मानवाधिकार कार्यकर्ता के पत्र में बासौनी के पति-पत्नी को हत्या के मामले में जेल भेजने का भी जिक्र किया गया है। वह पांच साल से जेल में बंद थे। एक महीने पहले दोनों निर्दोष पाए गए। कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों को बच्चों के लिए भटकना पड़ा। बमुश्किल उन्हें बच्चे मिल पाए थे। बच्चों को अनाथालय में रहना पड़ा था। नरेश पारस ने पत्र में गलत तरीके से चार्जशीट लगाने वाले पुलिसकर्मी पर कार्रवाई की मांग की है। इसके साथ ही कहा है कि पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए। धनराशि विवेचना में लापरवाही करने वाले पुलिसकर्मियों से ली जाए।

नरेश पारस ने बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने विष्णु प्रकरण में डीजीपी और मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। इसमें छह सप्ताह में जवाब मांगा है। आदेश किए हैं कि दोषपूर्ण विवेचना करने वाले विवेचक पर कार्रवाई की जाए। पीड़ित को मुआवजा दिया जाए। इसकी वसूली विवेचक से की जाए। वहीं 14साल जेल में रहने के बावजूद आचरण को देखते बंदी को नहीं छोड़ने पर भी सवाल उठाए हैं।

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