शिवपाल यादव भतीजे अखिलेश यादव के साथ जाने को फिर तैयार, बोले, '2022 के लिए यह जरूरी'

अखिलेश यादव व शिवपाल यादव को यह समझ में आ गया है कि दोनों अलग-अलग राजनीति कर भाजपा की ताकत से मुकाबला नहीं कर सकते हैं। इसलिए भतीजे व चाचा दोनों का तेवर एक-दूसरे के प्रति नरम हो रहा है...

Update: 2020-08-16 04:21 GMT

शिवपाल यादव इस सीट से लड़ेंगे चुनाव अखिलेश यादव के साथ हुआ सीटों पर फैसला

जनज्वार। समाजवादी पार्टी छोड़ कर अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव एक बार फिर भतीजे अखिलेश यादव के साथ जाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा है, 'मैं चाहता हूं कि सभी समाजवादी नेता एकजुट हों। उन्होंने कहा कि मैं पहले ही यह कह चुका हूं कि हर कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं'। 

शिवपाल यादव ने कहा कि जनता के फैसले के आधार पर हम 2022 का उत्तरप्रदेश विधानभा चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि सभी समाजवादी एकजुट हो जाएं, ऐसा नहीं हुआ तो जनता फैसला लेगी। शिवपाल ने कहा है कि जनता जो फैसला लेगी वह उसका सम्मान करेंगे।

शिवपाल यादव स्वतंत्रता दिवस के दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने इटावा पहुंचे थे, वहीं उन्होंने ये बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने कहा कि 2022 की चुनावी लड़ाई के लिए सबकुछ त्याग करने को उन्होंने कह दिया है।

2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान चाचा शिवपाल व भतीजे अखिलेश यादव के रिश्तों में दरार पड़ गई थी। बाद में शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली। भतीजे व चाचा ने अलग-अलग राजनीतिक करके देख ली और इससे दोनों को विधानसभा व लोकसभा चुनाव में नुकसान ही हुआ। ऐसे में दोनों एक साथ आने को तैयार हैं।

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चाचा के प्रति तेवर नरम करने का संकेत दिया है। सपा ने पिछले दिनों जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक शिवपाल यादव की सदस्यता खारिज करने की मांग को लेकर विधानसभा अध्यक्ष को दी गई याचिका को वापस ले लिया है। शिवपाल ने इसके लिए समाजवादी पार्टी को धन्यवाद भी दिया है। यह संकेत है कि अब दोनों खेमा एकजुट होने को तैयार है।

2018 में शिवपाल यादव ने बनायी थी पार्टी

2017 के जनवरी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने नई पार्टी बनाने का एलान किया था। हालांकि 2017 का विधानसभा चुनाव उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ही जसवंतनगर से लड़ा। इसके बाद उन्होंने 2018 में पार्टी का गठन किया। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतने के बाद अलग पार्टी गठन करने को लेकर ही उनकी सदस्यता को रद्द करने की मांग सपा ने की थी।

2017 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठजोड़ के बावजूद सपा की सीटें 47 तक सीमित हो गईं थी। लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। उधर, शिवपाल यादव भी अपनी पार्टी के जरिए संतोषजनक चुनावी प्रदर्शन नहीं कर सके। 

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