UP : बांदा में अवैध खनन माफियाओं की पौ-बारह, मुख्यमंत्री के पास भी नहीं जिसका इलाज

खनन कम्पनी ने स्थानीय मजदूरों को काम न देकर खनन डीड में शर्तो की अनदेखी करते हुए नदी में पोकलैंड मशीनों से बालू निकासी शुरू कर दी है, जो यूपी उप खनिज नियमावली 41-ज की खुली अवमानना हैं....;

Update: 2020-10-12 12:47 GMT
UP : बांदा में अवैध खनन माफियाओं की पौ-बारह, मुख्यमंत्री के पास भी नहीं जिसका इलाज
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बांदा। उत्तर प्रदेश के बांदा में खनन माफियाओं की पौ-बारह हो रही है। खनिज अधिकारी व पुलिसिया सांठगांठ की बदौलत बदौसा,नरैनी सहित चिल्ला क्षेत्र में ताबड़तोड़ अवैध खनन चल रहा है। खदाने अभी भले ही शुरू नहीं हो सकी हैं, लेकिन बाँदा में यहां बारिश थमने के बाद से लेकर 365 रातोंदिन अवैध खनन का काला साम्राज्य फल-फूल रहा है। सत्ताधारी दल के नरैनी विधायक पर मानपुर के ग्रामीणों ने अवैध खदान संचालन के आरोप लगाए हैं। बताया जा रहा है कि विधायक का भतीजा अवैध खनन का काम करवा रहा है, जो विधायक की सरपरस्ती में चलता है।

अतर्रा के महुआ और बदौसा में गाटा संख्या 6261, 6262, 6478, 6497, 6569, 6597, 6598 में रेत उत्खनन कार्य के लिए 24.71 एकड़ में उपखनिज की मात्रा 50,000 टन है। जिसमें 1 अक्टूबर 2020 से 31 मार्च 2021 तक शिवम कांस्ट्रक्शन एंड सप्लायर श्रीमती रामसवारी पत्नी श्रीराम कृष्ण पांडेय निवासी 211 बबुरा त्रिवेणी नगर थाना नैनी तहसील करछना जिला प्रयागराज को खनन अनुज्ञापत्र प्रारूप 3 में शामिल शर्तो के साथ दी गई है। उधर खनन कम्पनी ने स्थानीय मजदूरों को काम न देकर खनन डीड में शर्तो की अनदेखी करते हुए नदी में पोकलैंड मशीनों से बालू निकासी शुरू कर दी है, जो यूपी उप खनिज नियमावली 41-ज की खुली अवमानना हैं।

बदौसा के उसरापुरवा और क्योटन पुरवा में भी नदी पर अवैध खनन चल रहा हैं। बाँदा में अवैध खनन को सर्वाधिक बदनाम क्षेत्र नरैनी के मानपुर में सत्तारूढ़ दल का विधायक व उसके करीबी संलिप्त हैं। विधायक की हनक ऐसी बताई जाती है कि विरोधियों पर तमाम संगीन धाराओं सहित एससी/एसटी एक्ट के फर्जी मुकदमे तक खाकी की सरपरस्ती में लिखाए गए हैं। वहीं सरकार में बैठे माननीयों में चुप्पी हैं। जनपद के खनिज अधिकारी तो पार्टी की ड्यूटी में मुस्तैद हैं, काश उन्हें गिरवां, नरैनी, बदौसा की नदियों में अभी खदान पूरी तरह शुरू न होने के बावजूद यह अवैध खनन पोकलैंड मशीनों से दिखता।

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हाल यह हैं कि बारिश की बंदी तक में भी ई-रिक्शा वालों की ढाल में अब छुटभैये ठेकेदार तक बालू कारोबार करा रहे हैं। या यूं कहें गांव से शहर तक बालू और सिर्फ बालू की लूट का व्यापार चरम पर है। वह भी तब जब दावा ज़ीरो टॉलरेंस भ्रस्टाचारियों से मुक्त व्यवस्था बहाली का किया जाता हो। बता दें कि अक्टूबर माह से बाँदा में शुरू होने वाली खदान की कार्यवाही से पूर्व यह अवैध खनन सफेदपोश और सत्तारूढ़ लोग करा रहे हैं। वहीं वैध पट्टेधारक नदी तक रास्ता बनवाने में जुटे हैं। कहीं किसानों की सहमति से खेत से रस्ते का अनुबंध हुआ है, तो कहीं विरोध की सूरत हैं। मसलन बेंदा घाट के अमलीकौर क्षेत्र में चार खंडो पर सफेदपोश खदान पाए बाहरी लोगों की रीढ़ का बल बनकर खड़े हो चुके है।

भाजपा से हमीरपुर विधायक, बाँदा के सपा सरकार में सिंडिकेट चलवाने वाले सिंह साहेब बच्चन की मधुशाला लेकर कुछ किसानों के विरोध के बावजूद उनके खेतो से रस्ता निकासी नदी तक कर रहे है। यहां किसान भारत सिंह का बर्बाद होता खेतिहर खेत। इस किसान के मुताबिक पिछले सीजन में भी उसका आठ बीघा खेत खदान वालों ने दूसरे एरिया में रौंद डाला हैं, जो अब बंजर पड़ा हैं। किसान का कहना हैं कि रसूखदार विधायक, नेताओं ने बेंदा क्षेत्र में खदान चलवाने का ठेका लिया है जबकि खनन कम्पनी बाहरी हैं। ऐसा कम्पनी इसलिए करती हैं ताकि स्थानीय गांवदारी,किसानों पर दबदबा बनाया जा सके। यमुना नदी से लगा जंगल तक उजाड़ करके खदान संचालन की योजना है।

फिलहाल बाँदा के खनिज अधिकारी सुभाष मौजूदा डीएम साहेब की आंख में धूल डालकर अपनी छुटपुट कार्यवाही के साथ सत्ता समर्थित माफियाओं को अभयदान देकर नदियों की उजाड़लीला का लेखाजोखा लिखवाना शुरू कर चुके हैं। बाँदा में बेदम नदियों को मृत्युदंड देने और स्थानीय मजदूरों को पलायन करवाकर बाहरी कम्पनियों, नेताओं को मालामाल करने की यह सरकारी नीति जनपद समेत केन की सहायक नदियों पर भारी पड़ रही है। अलबत्ता इसका माकूल समाधान तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास भी नहीं है। आखिर राजस्व की कमाई भी तो नदियों की कोख से निकलती है। भले ही वैध हो या अवैध। 

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