UP Election 2022: विधानसभा चुनाव 2022 में बुंदेलखंड में क्या रहेगा सबसे बड़ा मुद्दा, सियासी दल कैसे साधेंगे समीकरण
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 के रण में बुन्देलखण्ड क्षेत्र बेहद अहम साबित होने वाला है। बुन्देलखण्ड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से के सात जिलों में विधानसभा की 19 सीटें हैं और सभी इस समय भाजपा के खाते में हैं।
लक्ष्मीनारायण शर्मा की रिपोर्ट
UP Election 2022: उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 के रण में बुन्देलखण्ड क्षेत्र बेहद अहम साबित होने वाला है। बुन्देलखण्ड के उत्तर प्रदेश वाले हिस्से के सात जिलों में विधानसभा की 19 सीटें हैं और सभी इस समय भाजपा के खाते में हैं। वैसे तो 403 सीटों वाली विधानसभा में यह संख्या बहुत निर्णायक नहीं लगती है लेकिन जब पश्चिम में किसानों ने भाजपा को खुली चुनौती दे रखी है और पूर्वी उत्तर प्रदेश के समीकरण भाजपा को टेंशन दे रहे हैं तो ऐसे माहौल में इस समय उत्तर प्रदेश के जिस अंचल में भाजपा को सबसे कम चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, वह बुन्देलखण्ड है। बुन्देलखण्ड से भाजपा को अभी भी सबसे अधिक उम्मीदें हैं। ऐसे में इस बात का आंकलन बेहद जरूरी है कि इस क्षेत्र में विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा क्या होगा।
घोषणापत्रों में होते हैं बुन्देलखण्ड के सवाल
आमतौर पर राजनीतिक दलों के कागजी घोषणापत्र और मंचीय भाषण में प्रदेश के अन्य हिस्सों के सियासी ऐलानों से अलग बुन्देलखण्ड को खास तौर पर रेखांकित कर यहां की समस्याओं के प्रति खुद को सम्बद्ध दिखाने की कोशिश सभी दलों की ओर से होती है। बुन्देलखण्ड की भौगोलिक और आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सभी दलों के एजेंडे में इस क्षेत्र की प्रमुख समस्याओं का प्राथमिकता के आधार पर उल्लेख और उनके समाधान के दावे होते हैं। बुन्देलखण्ड में पेयजल संकट, सिंचाई के साधनों की कमी, रोजगार के साधनों की कमी के कारण पलायन, किसानों की खुदकुशी जैसे प्रमुख मुद्दे राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल होते रहे हैं। यह अलग बात है कि चुनावी समय में चलने वाली प्रदेशव्यापी और देशव्यापी लहर इस क्षेत्र के मतदाताओं के व्यवहार को भी काफी हद तक प्रभावित करती है।
आम लोगों की आमदनी में आई है गिरावट
सामाजिक कार्यकर्ता और जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ संजय सिंह कहते हैं कि बुन्देलखण्ड में इस समय सबसे बड़ा मुद्दा है गवर्नेंस। प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंचा। दूसरा बड़ा मुद्दा है पलायन। मनरेगा में भ्रष्टाचार के कारण लोगों को काम नहीं मिला और बड़ी संख्या में लोगों का पलायन पहले की ही तरह जारी रहा। पांच साल में बुन्देलखण्ड में कई बड़ी परियोजनाएं आईं लेकिन अभी तक इनसे आम लोगों को किसी भी तरह का लाभ नहीं हुआ है। डिफेंस कॉरिडोर, बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे और केन बेतवा लिंक जैसी बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत हुई लेकिन इन सबसे यहां के आम लोगों के जीवन पर अभी तक किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ा है। इस क्षेत्र के लोगों की प्रति व्यक्ति आय घटी है। आर्थिक विपन्नता बढ़ी है। मुफ्त खाद्यान्न के सहारे एक बड़ी आबादी अपना पेट भर ले रही है लेकिन उसके जीवन स्तर में कहीं से कोई बदलाव नहीं हुआ।
सरकार के प्रति लोगों में है नाराजगी
डॉ संजय सिंह मानते हैं कि मतदान के समय बुन्देलखण्ड के लोगों के असली सवाल गायब हो जाते हैं। कभी जातीयता तो कभी धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे चुनाव के समय मतदाता को प्रभावित करते हैं और बड़ी आबादी उन मुद्दों से प्रभावित होकर वोट कर देती है। वर्ष 2007 से 2012 तक के मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान मूर्ति-पार्क निर्माण, मंत्रियों का भ्रष्टाचार और सवर्णों का उत्पीड़न एक बड़ा मुद्दा बना था जिसके बाद उस सरकार की विदाई हुई और सपा सत्ता में काबिज हुई। वर्ष 2012 से 2017 के सपा के कार्यकाल में अखिलेश यादव सरकार ने विकास की बातें की लेकिन कानून-व्यवस्था और गुंडागर्दी को मुद्दा बनाकर भाजपा ने हिंदुत्व के पिच पर सरकार बनाई जिसमें दलित, ओबीसी, सवर्ण सबने उसका साथ दिया। इस बार भाजपा हिंदुत्व और कानून-व्यवस्था के मसले पर चुनाव मैदान में होगी। वर्तमान समय में लोगों में बड़े पैमाने पर सरकार के प्रति नाराजगी है। यदि सपा इसे अपने पक्ष में कर पाने में सफल साबित होती है तो चुनाव में उसके लिए संभावना बन सकती है।
भाजपा को विकास के सहारे जीत की उम्मीद
भारतीय जनता पार्टी के नेता और बबीना विधानसभा क्षेत्र के विधायक राजीव सिंह पारीछा कहते हैं कि बुन्देलखण्ड में हमारी पार्टी पिछले पांच सालों में हुए विकास कार्यों के आधार पर चुनाव मैदान में होगी। बुन्देलखण्ड में 60 सालों में जितना काम नहीं हुआ था, उतना काम हमारी सरकार ने 5 सालों में करके दिखाया है। विपक्षी दल जब यहां सत्ता में रहे तो उन्होंने मुद्दों को बनाये रखा। उनके समाधान के लिए कोई प्रयास नहीं किया। इस क्षेत्र में पानी के संकट, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति जैसी समस्याओं को हमारी सरकार ने खत्म कर दिया। विपक्ष पूरी तरह से मुद्दा विहीन हो चुका है और हम बुन्देलखण्ड में 2017 का इतिहास दोहराने जा रहे हैं।
बेरोजगारी और पलायन है विपक्ष का बड़ा मुद्दा
भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के राष्ट्रीय संयोजक और बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के विद्यार्थी अभिषेक प्रताप कहते हैं कि किसी भी सरकार ने इस क्षेत्र के पिछड़ेपन पर ध्यान नहीं दिया। इस क्षेत्र के युवाओं की आधे से ज्यादा आबादी नौकरी के लिए दिल्ली-मुम्बई जैसे शहरों की ओर पलायन कर चुकी है। कोविड के समय पलायन के आंकड़ों की सच्चाई सामने आई जब पूरे देश से बुन्देलखण्ड के कामगार पैदल चलकर पैरों में छाले लिए वापस अपने-अपने गांव तक पहुंचे। पूरे बुन्देलखण्ड में सिर्फ झांसी में औद्योगिक इकाइयां हैं जो लगातार बन्द होती जा रही हैं। डिफेंस कॉरिडोर की तीन बार आधारशिला रखी गई लेकिन यहां अभी तक एक भी उपक्रम की शुरुआत नहीं हुई है। इस क्षेत्र के युवाओं को बेहतर शैक्षणिक व्यवस्था, रोजगार प्रशिक्षण और रोजगार के साधनों की आवश्यकता है। चुनाव में जातिगत और धार्मिक मुद्दे मतदान के समय असर जरूर दिखाते हैं लेकिन 22 से 28 साल का युवा जब घर में बेरोजगार बैठा होता है तो लोगों को सच्चाई का अहसास होता है। इस बार बुन्देलखण्ड के लोग अपनी समस्याओं को चुनाव का मुद्दा बनाएंगे।
By Laxmi Narayan Sharma