यूपी में गौवध कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है : इलाहाबाद हाइकोर्ट

अदालत ने कहा कि यह कानून निर्दाेष लोगों के उत्पीड़न का माध्यम बन गया है। अधिकतर मामलों में मांस को जांच के लिए लैब नहीं भेजा जाता है और लोग ऐसे अपराध में जेल में रहते हैं जो उन्होंने किया ही नहीं है।

Update: 2020-10-27 08:55 GMT

जनज्वार। उत्तरप्रदेश में गौ हत्या रोकने के लिए बनाए गए कानून पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए कहा कि इसका गलत उपयोग हो रहा है। अदालत ने कहा कि बिना जांच किए लोगों को इस कानून के तहत सीधे जेल भेजा जा रहा है। अदालत ने यह टिप्पणी शामली के रहमुद्दीन की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने कहा, गौ हत्या के लिए बने कानून के तहत कई मामलों में आरोपी के पास से जब्त मीट की जांच प्रयोगशाला में नहीं होती है। पुलिस आरोपी को पकड़ने के बाद उसे सीधे जेल भेज देती है। उन्होंने कहा कि बिना लैब में उसकी जांच किए यह कैसे पता चल सकता है कि अमुक व्यक्ति के पास जब्त मीट बीफ ही है। अदालत ने इस मामले में रहीमुद्दीन को जमानत भी दे दी। रहीमुद्दीन को गौ हत्या के मामले में शामली में पुलिस ने अरेस्ट किया था और पांच अगस्त को उन्हें जेल भेज दिया गया था।

अदालत ने कहा कि यह कानून निर्दाेष लोगों के उत्पीड़न का माध्यम बन गया है। अधिकतर मामलों में मांस को जांच के लिए लैब नहीं भेजा जाता है और लोग ऐसे अपराध में जेल में रहते हैं जो उन्होंने किया ही नहीं है।

मालूम हो कि गौ वध के अपराध में अधिकतम 10 साल की सजा व पांच लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल 19 अगस्त तक एनएसए के तहत यूपी में गिरफ्तार किए गए 139 लोगों में से आधे से अधिक 76 की गिरफ्तारी गौ हत्या के आरोप में हुई है।

अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए प्रदेश में गायों की स्थिति पर चिंता जतायी। अदालत ने कहा कि गौशालाओं में बेहतर सुविधा नहीं है और वे केवल दूध देने वाली गायों को रखने में रुचि लेते हैं। बीमार, बूढी गायों को सड़कों पर छोड़ देते हैं। लोग इन्हें नहीं रखते, इसलिए ये सड़क दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं। इससे किसानों की फसलें भी बर्बाद हो रही हैं। पहले किसान सिर्फ नील गायों से परेशान थे, अब इन गायों से भी परेशान हैं।

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