गंगा में अतिक्रमण कर मंदिर बनाने वाले चिदानंद के खिलाफ जंगल लूट मामले में मुकदमा दर्ज

ढाई एकड़ जमीन के अतिक्रमण और इस पर निर्माण के मामले में मुनि चिदानन्द सरस्वती के विरुद्ध इंडियन फारेस्ट ऐक्ट 1927 की धारा 26 के तहत केस दर्ज कराया गया है...

Update: 2020-07-26 02:30 GMT

उत्तराखण्ड के ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला के पास गंगा नदी में अतिक्रमण कर बनाया गया चिदानंद का आश्रम और घाट

जनज्वार। राजाजी नेशनल पार्क से जुड़े वन्य भूमि के कथित अतिक्रमण और निर्माण को लेकर एक केस दर्ज  किया गया है। इस केस में परमार्थ आश्रम के प्रमुख चिदानन्द स्वामी को पहला प्रतिवादी बनाया गया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्देश के बाद यह केस दर्ज कराया गया है।

यह वही चिदानंद हैं जिन्होंने गंगा में अतिक्रमण कर मंदिर बनाया है।

वन विभाग के अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार पौड़ी गढ़वाल निवासी अर्चना शुक्ला द्वारा उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका पर हाईकोर्ट के 6 जुलाई और 15 जुलाई को दिए गए निर्देशों के आलोक में यह कार्रवाई की गई है।

मुख्य वन संरक्षक (PCCF) जय राज ने बताया कि ढाई एकड़ जमीन के अतिक्रमण और इस पर निर्माण के मामले में मुनि चिदानन्द सरस्वती के विरुद्ध इंडियन फारेस्ट ऐक्ट 1927 की धारा 26 के तहत केस दर्ज कराया गया है।

DFO ने कुछ दिनों पूर्व हाईकोर्ट में एक शपथपत्र दायर कर जानकारी दी थी कि इस मामले में अबतक क्या कार्रवाई की गई है और आगे क्या कार्रवाई की जाएगी। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को शपथपत्र दायर करने का निर्देश दिया था।

इस मामले की जानकारी रखने वाले वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाईकोर्ट का निर्देश विगत दिसंबर माह में प्राप्त हुआ था। इसके बाद गत मार्च में हमने उस ढाई एकड़ भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। हाईकोर्ट ने विगत 6 जुलाई और 15 जुलाई को अपने आदेश में पूछा है कि उसके बाद आगे हमने क्या कार्रवाई की है।

उन्होंने कहा 'हमने स्वामी चिदानन्द सरस्वती के विरुद्ध इंडियन फारेस्ट ऐक्ट 1927 की धारा 26 के तहत केस दर्ज कर लिया है। एक जांच समिति भी बनाई है। ऋषिकेश के रेंज ऑफिसर को जांच पदाधिकारी बनाया गया है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर पता चलेगा कि वह भूमि कितने दिनों तक अतिक्रमित रही है उसपर क्या जुर्माना लगाया जाएगा और उसका कितना मुआवजा प्राप्त किया जाएगा।'

इंडियन फारेस्ट ऐक्ट की धारा 26 सुरक्षित वन्य क्षेत्र में आग जलाने, पेड़ों के काटने, वहां पत्थर लाने, वन्य भूमि की सफाई और कटाई, वन्य भूमि पर निर्माण आदि को प्रतिबंधित करती है।

चिदानंद सरस्वती की ओर से इस केस को देख रहे विनय कुमार कहते हैं कि उस भूमि का कुछ भाग ग्रामीणों द्वारा दान में दिया गया था तो कुछ हिस्सा वर्ष 2005 के पहले ग्रामीणों से ही खरीदा गया था। 'वह जमीन करीब 1 हेक्टेयर है। हमने वहां एक गुरुकुल बनाया था। वहां एक स्कूल भी बनाने की योजना थी। जैसे ही हमें पता चला कि वह वन्य भूमि है, हमने तुरंत उस भूमि को लीज पर लेने के लिए आवेदन दिया। वह आवेदन अभी भी लंबित है। जैसे ही हाइकोर्ट में केस किया गया, हमने तत्काल गुरुकुल को बंद कर दिया और उस जमीन को वन विभाग को सौंप दिया।

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