Uttarakhand News: हाई कोर्ट में इंटरार्क कंपनी प्रबंधन को एक बार फिर मिली नाकामी, मशीनों को बाहर कर कंपनी बन्द करने की साजिश पर लगी रोक

Uttarakhand News: रुद्रपुर इंटरार्क कंपनी सिडकुल पन्तनगर व किच्छा के प्रबंधन द्वारा मशीनों को बाहर शिफ्ट करने को लेकर की गई विशेष अपील पर मैनेजमेंट को न्यायालय में कामयाबी न मिल सकी।

Update: 2022-08-22 16:15 GMT

Uttarakhand News: हाई कोर्ट में इंटरार्क कंपनी प्रबंधन को एक बार फिर मिली नाकामी, मशीनों को बाहर कर कंपनी बन्द करने की साजिश पर लगी रोक

Uttarakhand News: रुद्रपुर इंटरार्क कंपनी सिडकुल पन्तनगर व किच्छा के प्रबंधन द्वारा मशीनों को बाहर शिफ्ट करने को लेकर की गई विशेष अपील पर मैनेजमेंट को न्यायालय में कामयाबी न मिल सकी। गई कोर्ट ने प्रबंधन को लताड़ लगाते हुए मजदूरों/यूनियन से वार्तालाप करने का रास्ता सुझाया है। कोर्ट ने कहा कि बातचीत से ही समस्या का समाधान होता है। मनमर्जी से समस्या बढ़ती है। कोर्ट के इस रुख से कंपनी प्रबंधन को कंपनी से मशीनों को बाहर शिफ्ट कर कंपनी की मिलबन्दी कर कंपनी का उत्तराखंड से बाहर पलायन करने की साजिश को परवान चढ़ाने में कामयाबी न मिली।

कंपनी प्रबंधन द्वारा कंपनी बन्द कर कंपनी का उत्तराखंड से बाहर पलायन करने की अपनी उक्त साजिश को परवान चढ़ाते हुवे वर्तमान में कुछ ही दिनों के भीतर 63 परमानेंट मजदूरों को झूठे आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया था। अब तक 95 परमानेंट मजदूरों को नौकरी से बर्खास्त अथवा निलंबित किया जा चुका है। इसी क्रम में कंपनी से मशीनों को शिफ्ट करने की साजिश रची जा रही है। लेकिन उच्च न्यायालय द्वारा कंपनी प्रबंधन की उक्त साजिश को भांपते हुवे कंपनी से मशीनों को बाहर शिफ्ट करने पर स्टे लगा रखा है, लेकिन इसके बाद भी कंपनी प्रबंधन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।

खुद को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ऊपर समझकर पुलिस प्रशासन की मदद से कंपनी से मशीनों को बाहर शिफ्ट करने की हरकतें निरन्तर कर रहा है। लेकिन हाइकोर्ट उत्तराखंड ने एसएसपी को कंपनी से मशीनों को शिफ्ट न करने को दिये अपने उक्त आदेश की पालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा उच्च न्यायालय के आदेश को ठेंगे पर रखकर कंपनी प्रबंधन को मशीनों को कंपनी से बाहर शिफ्ट करने में भरपूर मदद की जा रही है।


पुलिस अधिकारी पुलिस बल के साथ कंपनी गेट पर आकर इंटरार्क कंपनी प्रबंधन के साथ में मिलकर मशीनों को कंपनी से बाहर शिफ्ट कर प्रबंधन की भरपूर मदद कर रहे हैं जिसे फेसबुक पर शेयर भी किया जाता रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यदि पुलिस प्रशासन स्वयं ही उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना करने में इंटरार्क कंपनी प्रबंधन की मददगार बन जाये तो मजदूर कहाँ जाएंगे। इसी क्रम में कंपनी प्रबंधन द्वारा कंपनी से मशीन शिफ्ट न करने देने का आरोप लगाकर 9 अगुवा मजदूरों का पूरा वेतन /निलबंन भत्ता काटकर उच्च न्यायालय के उक्त आदेश की सरेआम अवमानना की गई है। लेकिन एसएसपी द्वारा अभी इस प्रकरण में प्रबंधन के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की गई है जो बताता है कि इंटरार्क कंपनी प्रबंधन और पुलिस प्रशासन खुद को उत्तराखंड हाईकोर्ट से ऊपर समझता है।उपश्रमायुक्त के तमाम निर्देशों के पश्चात भी कंपनी प्रबंधन द्वारा उक्त 63 मजदूरों का निलंबन समाप्त कर कार्यबहाली न करना भी इसी कड़ी का हिस्सा है कि कंपनी प्रबंधन खुद को भारत के कानूनों से ऊपर समझते हैं।

सुनवाई के दौरान तालाबंदी के दौरान मजदूरों के वेतन की वसूली एवं मामले की अगली सुनवाई के लिए 5 सितंबर की डेट निर्धारित की गई है। तालाबंदी के दौरान के मजदूरों के वेतन की वसूली को हाईकोर्ट द्वारा जल्दी सुनवाई को नियत करना भी मजदूरों के लिये राहत भरी खबर है।

इंटरार्क मजदूरों की यूनियन की याचिका पर कंपनी में ठेका मजदूरों की गैरकानूनी भर्ती पर रोक लगाने हेतु उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर श्रमायुक्त महोदय उत्तराखंड के आदेश पर इंटरार्क कंपनी सिडकुल पन्तनगर व किच्छा में छापेमारी की कार्यवाही हुई थी और कंपनी प्रबंधन और ठेकेदारों की गैरकानूनी गतिविधियां संज्ञान में आई थी। श्रम विभाग ने कंपनी प्रबंधन व ठेकेदारों के खिलाफ कार्यवाही भी की थी। इस दौरान कुछ समय के लिये ठेका मजदूरों को कंपनी ने ब्रेक देकर उक्त गैरकानूनी काम को रोक दिया था। लेकिन मामला ठंडा होते ही वर्तमान समय में कंपनी द्वारा खुलेआम ठेका मजदूरों की भर्ती कर उन्हें खतरनाक मशीनों एवं मुख्य उत्पादन गतिविधियों में नियोजित कर जान से खिलवाड़ किया जा रहा है जबकि कंपनी भारी इंजीनियरिंग उद्योग है ।जिससे आये दिन मजदूर विकलांग हो रहे हैं। मामला हाईकोर्ट उत्तराखंड में सुनवाई के लिए गतिमान होने के बाद भी कंपनी प्रबंधन बेखौफ होकर शासन प्रशासन, श्रम विभाग की शह पर बेखौफ होकर मजदूरों के जानमाल से खिलवाड़ कर रहा है।

इससे पहले डीएलसी द्वारा मजदूरों के जानमाल की रक्षा को दिनाँक 2 फरवरी 2018 को आदेश जारी कर कंपनी में फिक्स टर्म प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि कंपनी भारी इंजीनियरिंग उद्योग है। किंतु वर्तमान समय में कंपनी में भारी तादाद में फिक्स टर्म के मजदूरों को भर्ती कर खतरनाक मशीनों और मुख्य उत्पादन क्षेत्रों में नियोजित कर साबित किया जा रहा है कि कंपनी प्रबंधन की नज़रों में भारतीय कानूनों की रत्ती भर सम्मान व परवाह नहीं है वह खुद को भारतीय कानूनों ऊपर समझता है। ऐसे में शासन प्रशासन को कंपनी प्रबंधन के विरुद्ध तत्काल कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए।

मजदूरों के ऊपर हो रहे शोषण व अत्याचार पर रोक लगाने, कंपनी की मिलबन्दी कर उत्तराखंड से बाहर पलायन कर मजदूरों की छंटनी करने की साजिश पर रोक लगाने को अब मजदूरों ने आर पार का संघर्ष करने का मन बना लिया है। सितंबर माह 2022 को दोनों मजदूरों की सामुहिक हड़ताल करने और कंपनी के किच्छा प्लांट के मजदूरों के धरनास्थल पर मजदूर किसान महापंचायत के आयोजन की योजना पर तेजी से काम हो रहा है।

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