मासा की दो दिवसीय कार्यशाला अहमदाबाद में सम्पन्न , देशभर से जुटे मज़दूर प्रतिनिधि, मजदूरों के हितों में उठीं तमाम मांगें...
जनज्वार, अहमदाबाद। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA) की राष्ट्रीय कार्यशाला 22-23 दिसंबर अहमदाबाद (गुजरात) के गुजरात विद्यापीठ सभागार में सम्पन्न हुई।
कार्यशाला में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा मजदूर वर्ग पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ 3 मार्च 2019 को श्रम कानून में मज़दूर विरोधी बदलाव का विरोध, 25000 रुपये न्यूनतम मजदूरी और ठेका और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का मुद्दा सहित 17 सूत्रीय श्रमिक मांगपत्र को लेकर दिल्ली में मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान के बैनर तले "मज़दूर अधिकार संघर्ष रैली" करने का फैसला लिया गया। विरोध प्रदर्शन के माध्यम से सरकारों, नौकरशाहों, पूंजीपतियों के समक्ष तैयार मांग पत्रों को भी प्रस्तुत किया जाएगा।
दो दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन के प्रथम सत्र में TUCI के अध्यक्ष अमरीश पटेल ने कार्यशाला में आये हुए साथियों का स्वागत किया। मासा का तीन प्रमुख मांगों, श्रम कानून में मज़दूर विरोधी बदलाव, न्यूनतम मजदूरी और ठेकाप्रथा व असंगठित मज़दूरों के मुद्दों पर अमरीश, खेमानंद, अरविंद व अमित द्वारा चर्चा किया गया। द्वितीय सत्र में 17 सूत्रीय श्रमिक मांगपत्र पर विस्तृत चर्चा की गई। मासा ने 8-9 जनवरी के अखिल भारतीय हड़ताल के सक्रिय समर्थन की भी घोषणा की।
कार्यशाला के दूसरे दिन पहले सत्र में श्रमिक मांगपत्र को व्यापक चर्चा के बाद सर्वसहमति से पारित किया गया। 3 मार्च 2019 को संसद मार्ग, दिल्ली में मासा की तरफ से 'मज़दूर अधिकार संघर्ष रैली' की रूपरेखा तैयार की गई। दूसरे सत्र में मासा के घटक संगठनों, TUCI की तरफ से अमरीश पटेल, IFTU से रासुद्दीन, ग्रामीण मजदूर यूनियन बिहार से अशोक कुमार, जन संघर्ष मंच हरियाणा से सुदेश कुमारी, मजदूर सहयोग केंद्र रुद्रपुर से मुकुल, श्रमिक शक्ति कर्नाटक से वासु, इंकलाब मजदूर केंद्र से खीमानन्द, वेस्ट बंगाल स्ट्रगलिंग वर्कर्स कॉर्डिनेशन कमेटी से आभास मुंशी, मज़दूर सहयोग केंद्र गुड़गांव से अमित ने बात रखी।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र, तेलेंगाना, हरियाणा, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओड़िसा, केरल से 100 से ज्यादा मज़दूर कार्यकर्ताओ व ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों ने कार्यशाला में जीवंत भागीदारी की। देश के अलग अलग मज़दूर संगठनों जैसे गुजरात मजदूर सभा, जनहित कामगार संघ, D.H.C., DHL मज़दूर यूनियन दिल्ली, TMKKU, हिंदुस्तान लीवर एंप्लॉई फेडरेशन, मारुति, डाइकिन, वोल्टास, महिंद्रा, नेस्ले, टाटा मार्कोपोलो, ऋचा के मज़दूर प्रतिनिधियों ने भी कार्यशाला में बातें रखीं।
विभिन्न संगठन के प्रतिनिधियों ने अपनी बातों में कहा कि मजदूरों पर बढ़ते हमले एवं पूंजीपति वर्ग के हित में केंद्र तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लागू किए जा रहे नव उदारवादी नई आर्थिक नीतियों के साथ समझौताहीन जुझारू संघर्ष व देश में मजदूर आंदोलन का एक वैकल्पिक ताकत खड़ा करने की जरूरत के लिए मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का गठन किया गया था, जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से 15 से ज्यादा घटक संगठन शामिल हैं।
नई सरकार आने के बाद मजदूर मेहनतकशों पर हमला और तेज हुआ है। पूंजीपतियों के हित में श्रम कानून में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया जाती है। नई उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर क्षेत्र में स्थाई नौकरी की जगह पर ठेका प्रथा अपरेंटिस, ट्रेनी का दबदबा बन रहा है। मजदूरों को ट्रेड यूनियन का और सामूहिक मांग पत्र पर सम्मानजनक समझौता करने के अधिकार का हनन हो रहा है। मजदूरों पर काम का बढ़ता जा रहा है पूंजीपतियों द्वारा श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
गैरकानूनी तालाबन्दी, क्लोज़र, ले-ऑफ, छंटनी, मनरेगा में वार्षिक बजट कम कर मजदूरों को बेरोजगार किया जा रहा है। मजदूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें दमन को तेज कर रही हैं। फिर भी इन हमलों के सामने देशभर में मजदूर संघर्ष जारी है।
कार्यशाला द्वारा 3 मार्च 2019 को होने वाले विरोध प्रदर्शन की तैयारी के लिए पूरे देश में विभिन्न तरीकों से प्रचार कार्यक्रम करने का फैसला लिया गया।