गोरखपुर विश्वविद्यालय के 38वें दीक्षात समारोह में स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों को किया किनारे
38वें दीक्षांत समारोह में टॉपरों की लिस्ट में स्ववित्तपोषित कॉलेजों की नाममात्र की हिस्सेदारी विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली पर खड़े करते हैं कई गंभीर सवाल...
जनज्वार, गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय का 38वां दीक्षांत समारोह परंपरागत तौर तरीके से बुधवार 23 अक्टूबर को संपन्न हो गया। इस समारोह में कुलाधिपति राज्यपाल आनंदीबेन पटेल तथा मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर धीरेंद्र पाल सिंह ने उच्च शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जताते हुए कहा कि भारत का उच्च शिक्षा तंत्र अमेरिका चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उच्च शिक्षा केंद्र है।
वक्ताओं ने कहा आज विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन वैश्विक रैंकिंग में हमारे उच्च शिक्षा परिसरों का प्रदर्शन और अंतरराष्ट्रीय शोध प्रकाशनों में हमारी भागीदारी के आंकड़े हमें निराश करते हैं।
गौरतलब है कि कि गोरखपुर विश्वविद्यालय की नीव 1 मई 1950 को रखी गई। बीएन झा पूर्वांचल के इस एकमात्र विश्वविद्यालय के पहले कुलपति नियुक्त हुए थे। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद, शायर फिराक गोरखपुरी, महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और महान संत गोरखनाथ की पवित्र भूमि पर स्थित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर की जो शैक्षिक प्रतिष्ठा अपने स्थापना काल के कई दशकों तक रही, वह आज लगातार गिरती जा रही है। इस तरह की चिंता आज विद्वत समाज द्वारा व्यक्त की जा रही है।
इस विश्वविद्यालय से संबद्ध लगभग 300 महाविद्यालय हैं, जिसमें गोरखपुर में 142, कुशीनगर में 65, देवरिया में 108 कालेज हैं। इसमें लगभग दो दर्जन महाविद्यालयों को छोड़कर शेष सभी स्ववित्तपोषित वित्तविहीन उच्च शिक्षा के केंद्र बने हुए हैं, जिनके यहां मूलभूत सुविधाओं की तो बात दूर योग्यताधारी शिक्षकों की भी कमी देखने को मिलती है। यह अलग बात है कि इनकी मान्यता पत्रावली में सभी मानक पूरे पाए जाते हैं।
इस बात का जिक्र करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि जब विश्वविद्यालय अपना 38वां दीक्षांत समारोह मना रहा हो और उसमें स्ववित्तपोषित महाविद्यालय की दमदार उपस्थित का न होना सवाल खड़ा करता है, ऐसे में चर्चा जरूरी जान पड़ती है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में कुल 54 विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक तथा 85 स्मृति स्वर्ण पदक 2019 की परीक्षा के लिए दिए गए। इसमें दो ऐसे कॉलेज हैं जो अपने शैक्षिक प्रतिष्ठा को बचाने का हरसंभव प्रयास करते हैं। एक कुशीनगर का वित्तविहीन कॉलेज भी वहां का खास कॉलेज बताया जाता है। वित्त पोषित तीन कॉलेजों को भी मेडल प्राप्त हुए। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के खाते में एक, नर्सिंग पाठ्यक्रम में गुरु गोरक्षनाथ कॉलेज आफ नर्सिंग को भी एक मेडल प्राप्त हुआ है। शेष सभी स्वर्ण पदक गोरखपुर विश्वविद्यालय परिसर छात्रों को ही प्राप्त हुए हैं।
यह एक बड़ा सवाल है कि पिछले दीक्षांत समारोह में कॉलेजों के मेधावियों की संख्या ठीक-ठाक थी, इस बार अचानक मेधावी छात्रों की संख्या में गिरावट क्यों आ गई?स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों के शिक्षा के स्तर का अंदाजा आखिर कैसे लगाया जाए, यह भी एक सवाल खड़ा होता है। आखिर कौन पढ़ाता है, क्या पढ़ाता है, परीक्षाफल तो अच्छे होते हैं और आखिर मेडल क्यों नहीं? आखिर इस बार कैसे इतना बड़ा परिवर्तन हो गया, महाविद्यालय के छात्र क्या इस लायक भी नहीं निकल रहे, जिन्हें स्वर्ण पदक मिल सके?
बीते कुछ साल पूर्व तक महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं के नाम भी मेडल पाने वालों में होते थे। एक दीक्षांत समारोह में ऐसी छात्रा का नाम मेडल पाने वालों में आया था, जो कि मेडल लेने के लिए उपस्थिति ही नहीं हुई थी। बताया गया कि वह किसी महाविद्यालय की प्राचार्य के पद पर कार्यरत भी थीं और परीक्षा की टॉपर भी।
गौरतलब है कि 2017 में सामने आये उत्तर प्रदेश के दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के बहुचर्चित टॉपर कांड में जांच समिति ने पाया था कि इस कांड की सरगना रेशमा देवी महाविद्यालय की प्रिंसिपल नीलम पांडेय हैं। प्रिंसिपल नीलम पांडेय अपना नाम बदलकर शिवांगी पांडेय बनीं और अपने ही परीक्षा केंद्र से 2016 में बीए में विश्वविद्यालय टॉप कर गोल्ड मेडलिस्ट बनीं।
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यह मामला महीनों तक स्थानीय अखबारों की सुर्खियों में था, लेकिन टॉपरों की लिस्ट में कॉलेजों की नाममात्र की हिस्सेदारी विश्वविद्यालय की परीक्षा प्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
स्ववित्तपोषित वित्तविहीन महाविद्यालय एसोसिएशन के प्रवक्ता डॉ. चतुरानन ओझा कहते हैं, विश्वविद्यालय ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए महाविद्यालयों के छात्रों को अच्छे नंबरों से पास तो करा रहा है, लेकिन वह उन्हें मेडल पाने लायक नहीं बना रहा है। उसे डर है कि कहीं कोई ऐसा हो जाए और लेने ही न आए तो बदनामी हो सकती है, क्योंकि पूर्व में ऐसी घटना हो चुकी है। स्ववित्तपोषित कालेजों में शिक्षण की स्थिति काफी बदहाल है। पठन पाठन का माहौल महज चंद कालेजों में ही है। अधिकांश कालेज प्रवेश, परीक्षा व परिणाम के कार्य में लगे हुए हैं। ये कालेज न तो अपने शिक्षकों की सूची जारी करते हैं और ना ही विश्वविद्यालय ऐसा कराता है। परीक्षाओं के समय उड़ाका दल बनाए जाते हैं। पढ़ाई के समय कोई दस्ता नहीं बनाया जाता है कि आखिर इन महाविद्यालयों में कौन पढ़ा रहा है? यह सब चीजें चिंताजनक हैं। इसे ठीक होना चाहिए, तभी उच्च शिक्षा का स्तर ऊंचा उठेगा।
ऐसी स्थितियों में 38वें दीक्षांत समारोह में जो चिंता अतिथियों ने जाहिर की है, वह वास्तविक है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय भी उनकी चिंताओं में शामिल है। शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने की जिम्मेदारी देश की सरकारों की होती है। उच्च शिक्षा समेत पूरी शिक्षा व्यवस्था जब से निजी हाथों में गई है तब से उसके शैक्षिक स्तर में गिरावट दर्ज हो रही है। ऐसी स्थिति में शिक्षा के निजीकरण की प्रक्रिया को तुरंत बंद कर उसे सरकारों को अपने हाथों में लेनी होगी तथा मुफ्त और समान शिक्षा की व्यवस्था हर छात्र को देने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी, तभी हमारे विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षा देने लायक दुनिया में बन पाएंगे।