2019 में भाजपा की लुटिया डूबने ही वाली थी कि चालाक लोमड़ की तरह मोदी ने सैनिकों की शहादत को भावनात्मक मोड़ देकर राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया और पूरे देश की जनता को फिर ठग लिया...
प्रसिद्ध रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज की टिप्पणी
2014 में मोदी जी विकास के घोड़े पर सवार होकर देश की गद्दी पर बैठे थे। स्वघोषित देश के पहले हिन्दू प्रधानमंत्री होने के ख़िताब से स्वयं को नवाज लिया था। देश की जनता विकास की लालच में इतनी अंधी हो गई थी की चुनावी जुमलों को सत्य मान बैठी थी। ग्राम पंचायत, नगर पालिका,राज्य और केंद्र सरकार में बहुमत से बिठा दिया। ऐसा जनादेश कई दशकों बाद किसी व्यक्ति या पार्टी को मिला था।
इतने बड़े जनादेश के बाद मोदी के चुनावी जुमलों की पोल खुलती गई। विकास धीरे धीरे हवा होता गया और विनाश ने महामारी की तरह देश को अपनी आगोश में ले लिया। विनाश का पहला आक्रमण नोटबंदी के भयावह रूप में हुआ। मोदी की सनक और मूर्खता एक साथ दिखीं और नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। जिस समय मोदी ने गद्दी सम्भाली थी तब जीडीपी की दर 8-9 फ़ीसदी के बीच थी और आज 4.76-5 फ़ीसदी तक रहने का अनुमान है...
2019 में लुटिया डूबने ही वाली थी कि चालाक लोमड़ की तरह मोदी ने सैनिकों की शहादत को भावनात्मक मोड़ देकर राष्ट्रवाद का नारा बुलंद किया और पूरे देश की जनता को फिर ठग लिया। उसके बाद स्वर्ग को धरती में मिला दिया और 370 के रथ पर सवार होकर राज्यों के चुनाव में उतर गए।
राज्यों की जनता ने बहुमत के शिखर से धड़ाम से गिरा दिया। सदमा इतना गहरा है कि उससे उठ पाना मुश्किल लग रहा है। अगर कर्नाटक की जनता ने साथ दिया तो सिर्फ़ यूपी बचेगा इनके पास। हाँ, सीबीआई और ईडी भी होंगे।
देश के संविधान को तार तार करने के लिए हर रोज़ एक नया बिल ला रही है मोदी सरकार। हिन्दू राष्ट्र बनाने का अंतिम खेल चल रहा है। कहीं फिर कभी बहुमत की सरकार आये या ना आये, इसका डर घर कर गया है। इसलिए एक साथ सब विध्वंस के तीर चला रही है मोदी सरकार।
दरअसल दुर्भावना सबसे पहले आपको खा जाती है। मोदी दुर्भावना की महामारी से ग्रस्त हैं। निर्माण का एक वादा उन्हें याद नहीं रहता और दुर्भावना को वो भूलते नहीं हैं। यूँ कहें की विकारी संघ और मोदी दुर्भावना के अंधे गह्वर हैं। गांधी के हत्यारे बहुमत की आड़ में संविधान को ध्वस्त कर देश को बर्बाद कर रहे हैं। राष्ट्र निर्माण का दावा करने वाले मोदी ने सिर्फ़ 68 महीनों में राष्ट्र को राष्ट्रवाद की सलीब पर चढ़ा दिया।