बीएचयू के बाद अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी वीसी की जेब में होंगे छात्रों के नुमाइंदे!
लोकतंत्र के हुक्मरानों को छात्रसंघ नहीं मंजूर, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में लोकतंत्र की नर्सरी पर तालाबंदी से उठ रहे हैं तमाम सवाल
जनज्वार, प्रयागराज। विपरीत परिस्थतियों में देश व प्रदेश की राजनीति को नया आयाम देने वाली लोकतंत्र की गौरवशाली पाठशाला शायद हुक्मरानों को मंजूर नहीं। जी हां! उत्तर प्रदेश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में निर्वाचित छात्रसंघ की जगह मनोनीत छात्र परिषद थोपना कुछ इसी ओर इशारा कर रहा है। सीधे शब्दों में कहें तो केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के युवा संघर्षी तेवरों वाली गौरवशाली परम्परा का योजनाबद्ध तरीके से गला घोंटा जा रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो अब यहां छात्रसंघ का नाम इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा।
देश के सबसे बड़े और राजनीतिक तौर पर संवेदनशील सूबे उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक छह केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं। इनमें से चार विश्वविद्यालय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़, बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, प्रयागराज शैक्षिक व राजनीतिक रूप से अहम स्थान रखते हैं। जबकि दो अन्य विश्वविद्यालय राजीव गांधी नेशनल एविएशन यूनिवर्सिटी, अमेठी और रानी लक्ष्मी बाई सेन्ट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, झांसी में कुछ चुनिंदा विषयों की पढ़ाई होती है।
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पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और अब इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज में लोकतंत्र की नर्सरी कहे जाने वाले निर्वाचित छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद या छात्र प्रतिनिधि सभा थोपी जा रही है। छात्रसंघ भवन को कल्चरल सेंटर बनाने के संकेत मिलने लगे हैं।
इविवि, एएमयू और बीएचयू से विश्व और राष्ट्रीय पटल पर अमिट पहचान बनाने वाले राजनेताओं की लंबी फेहरिस्त का संज्ञान लिए बगैर जिस छात्र परिषद को पारंपरिक स्टूडेंट यूनियन के विकल्प के रूप में स्थापित किया जा रहा है, उससे छात्र राजनीति का चरित्र ही बदल जायेगा। युवा संघर्षी तेवर के बजाय राजनीति में उन लोगों का वर्चस्व और बढ़ेगा जो बाहुबल और धनबल से राजनीति को रखैल बनाये बैठे हैं। छात्रों का यह तर्क भी जायज है कि जब शिक्षक और कर्मचारियों का निर्वाचित संगठन हो सकता है तो छात्रों का क्यों नहीं।
वीसी की जेब में होंगे छात्रों के नुमाइंदे
लिंग्दोह समिति की सिफारिशों को ढाल बनाकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन मनमाफिक जेबी छात्र परिषद बना रहे हैं। अब छात्रों के मामलों के लिए छात्र परिषद एक शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करेगा। इसकी संरचना के शीर्ष पर संरक्षक के रूप में कुलपति उसके बाद कुलपति द्वारा मनोनित विश्वविद्यालय का एक वरिष्ठ प्रोफेसर जो छात्र परिषद का अध्यक्ष होगा। फिर डीन विद्यार्थी कल्याण जो इसका पदेन उपाध्यक्ष होगा, जबकि छात्र नुमाइंदगी के नाम पर प्रत्येक संकाय से एक-एक छात्र होंगे जो संबंधित संकाय के डीन द्वारा मनोनीत किये जाएंगे।
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कुलपति जो छात्र परिषद के संरक्षक होंगे, उसे यह अधिकार होगा कि वह अपनी इच्छानुसार छात्र परिषद के स्वरूप में संशोधन कर और परिषद की संरचना का पुनर्गठन करें। कुलपति जब चाहे इसे भंग कर सकता है। अध्यक्ष छात्र परिषद का कार्यकारी प्रमुख होगा जो परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
इतना ही नहीं, छात्र परिषद सदस्यों के नामांकन संबंधी विवाद में उसका निर्णय अंतिम होगा। एक वर्ष के कार्यकाल वाले छात्र परिषद में शैक्षिक, खेल, सांस्कृतिक गतिविधियों, छात्रावास, छात्र कल्याण, स्वास्थ्य और स्वच्छता, नियम और अनुशासन, सामाजिक गतिविधि के नाम पर नौ क्षेत्रों के लिए एक-एक संयुक्त सचिव परिषद के सदस्यों के साथ परामर्श से अध्यक्ष द्वारा नामांकित किए जाएंगे। स्नातक, परास्नातक और शोध के छात्रों में से संकायवार प्रतिनिधियों का मनोनयन किया जाएगा।
इसी तरह संघटक महाविद्यालयों के प्राचार्य अपने-अपने यहां के छात्र परिषद के अध्यक्ष होंगे। कुलपति जो महाविद्यालयों में भी छात्र परिषद का संरक्षक होगा, द्वारा दो वरिष्ठ संकाय सदस्यों को इसके सदस्य के तौर पर नामित किया जाएगा। प्रत्येक विभाग से छात्रों में से एक छात्र प्रतिनिधि को प्राचार्य छात्रों की राय से मनोनीत करेगा। प्रतिनिधि छात्र सचिव के अलावे विभिन्न क्षेत्रों के नौ संयुक्त सचिव पद पर विश्वविद्यालय स्तर के शैक्षणिक, खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों को विभिन्न स्तरों के मेधावी छात्र मनोनित किये जाएंगे।
होने को है एक और शहादत
जी हां! सबकुछ ऐसे ही चलता रहा तो केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को हमेशा-हमेशा के लिए दफन कर दिया जायेगा। हक की खातिर आवाज उठाने की कला सिखाने वाले यूनिवर्सिटी में मौजूद छात्र संगठनों का वजूद अब हुक्मरानों को मंजूर नहीं। हक और इंसाफ के लिए कुर्बानी का जज्बा रखने वाली पीढ़ी अब शायद बूढ़ी हो चुकी है। मनोरंजक, रंगीली और ग्लैमरस जिन्दगी को हसरत बना बैठी छात्रों की मौजूदा पौध को बेरीढ़ वाले जीव-जन्तुओं केयुग का सूत्रपात स्वीकार करने में कोई एतराज नहीं है।
देश की दलदली राजनीतिक व्यवस्था को भी संघर्षी युवा तेवर की शायद अब कोई जरूरत नहीं, इसीलिए भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा व अन्य राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधि और छात्रनेता भी सांकेतिक तौर पर ही आंदोलन या बयानबाजी कर रहे हैं।
लोकतंत्र की इस हत्या के षडयंत्र से सभी अवगत हैं, लेकिन बात हवा में उड़ा दी गयी। केन्द्रीय विश्वविद्यालय क्या सरकार से नियंत्रित नहीं हैं? उसकी रीति नीति बनाने में विवि स्थानीय स्तर पर निरंकुश हैं? इस हत्या के षडयंत्र में कौन-कौन शामिल हैं? ऐसे तमाम प्रश्न श्मशान में दफन होने जा रही प्राथमिक जनवादी व्यवस्था समय-समय पर डरावनी आवाजों में उठायेगी और व्यवस्थागत विसंगतियों के तहलका और तूफान के थपेड़ों से जूझती जिन्दगियों के रुदन को सिर्फ कर्कश बनाकर रख देगी।
सुनियोजित षडयंत्र के साझीदारों के सोच और दृष्टि की दरिद्रता ने अपने ही पीढ़ी के लिए आत्मघाती मंसूबा रच डाला है, लेकिन जिस छात्र समुदाय के सामने लोकतंत्र की हत्या कर यह लाश दफन हो जायेगी वे भी समय के सामने बराबर के गुनहगार ठहराये जायेंगे। रुपये-पैसे की खनकती कथित वैश्विक महफिल में अपनी ही धुन में मदमस्त जवानी की दहलीज पर खड़ी पौध किस रंग में रंगेगी, डूबेगी यह वक्त बताता- दिखाता जायेगा।
लिंग्दोह समिति की मंशा
फिलहाल जिस लिंग्दोह समिति की सिफारिश के आधार पर नई व्यवस्था रचने की तैयारी है वह भी अत्यंत भ्रामक है। लिंग्दोह समिति ने छात्रसंघ पर कोई पाबंदी लगाने की सिफारिश नहीं की है, सिर्फ असामान्य परिस्थितियों में छात्र परिषद के गठन की बात कही गयी है। इसी को तोड़—मरोड़कर साजिशी ताकतों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्या का षडयंत्र रच डाला है।
लिंग्दोह समिति की सिफारिश और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक विश्वविद्यालय छात्रसंघ का चुनाव प्रतिवर्ष शैक्षिक सत्र के आरंभ के छह से आठ सप्ताह के भीतर हर हाल में करा लिये जाने चाहिए। लिंग्दोह समिति की रिपोर्ट के निर्देश 6.1.1 और 6.1.2 के अनुसार देश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में हर हाल में सामान्य निर्वाचन के तहत गठित एक छात्र प्रतिनित्व हो और केवल परिसर के माहौल के प्रतिकूल होने जबकि शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव संभव न हो, की दशा में छात्र परिषद को नामित किया जाए। छात्र परिषद के लिए होने वाले ऐसे मनोनयन में सिर्फ शैक्षिक मेरिट को ही आधार न बनाया जाए।
नयी छात्रपरिषद के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
-संरचना के शीर्ष पर संरक्षक के रूप में होंगे कुलपति
-वरिष्ठ प्रोफेसर होगा छात्र परिषद का अध्यक्ष
-डीन विद्यार्थी कल्याण होंगे पदेन उपाध्यक्ष
-प्रत्येक संकाय से एक-एक छात्र जिन्हें संबंधित संकाय का डीन मनोनीत करेगा
-अध्यक्ष छात्र परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करेगा
-परिषद के सदस्यों की राय से अध्यक्ष एक छात्र को प्रतिनिधि सचिव मनोनित करेगा
-परिषद का कार्यकाल एक वर्ष का होगा