जेएनयू और उत्तराखण्ड के बाद अब यूपी के कृषि विश्वविद्यालयों में उठी फीस वृद्धि के खिलाफ आवाज
यूपी चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्र सस्ती कृषि शिक्षा उपलब्ध कराने, लाइब्रेरी के रीडिंग रूम 24 घंटे खोलने, रजिस्ट्रेशन के समय अंडरटेकिंग के जरिये बिना शुल्क प्रवेश दिलाने और बढ़ी हुई मेस फीस वापस लेने की कर रहे हैं मांग...
हर्षित आजाद की रिपोर्ट
जनज्वार। जेएनयू और उत्तराखंड के आयुष छात्रों के बाद उत्तर प्रदेश कृषि विश्वविद्यालयों के छात्रों ने फीस कम करने की मांग की है। इसकी शुरुआत कानपुर के चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के छात्रों ने कर दी है। 21 नवंबर की देर रात करीब 9 बजे सैकड़ों छात्रों ने सीएसए के प्रशासनिक भवन पर एकत्रित होकर हल्ला बोल प्रदर्शन किया। कृषि के छात्रों ने कृषि शिक्षा सस्ती करने की पुरानी मांग को लेकर मोर्चा खोला हुआ है। बीएससी, एमएससी और पीएचडी के सैकड़ों छात्रों ने इस प्रदर्शन का हिस्सा बने।
21 नवंबर की देर रात सैकड़ों छात्रों ने कानपुर के सीएसए यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक भवन में एकत्रित होकर यूपी के कृषि विवि में अत्यधिक महंगी फीस को कम करने किये जाने के लिए प्रदर्शन किया। छात्रों ने सस्ती कृषि शिक्षा उपलब्ध कराने, लाइब्रेरी के रीडिंग रूम 24 घंटे खोलने, रजिस्ट्रेशन के समय अंडरटेकिंग के जरिये बिना शुल्क प्रवेश दिलाने और बढ़ी हुई मेस फीस वापस लेने की मांग की। तब से छात्रों का आंदोलन जारी है। आंदोलन कर रहे छात्रों का कहना है कि जब तक हमारी मांगें मान नहीं ली जाती यह आंदोलन जारी रहेगा।
छात्रों के इस आंदोलन को लेकर अखिल भारतीय कृषि छात्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ सौजन्य कहते हैं, उत्तर प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय में फीस सबसे ज्यादा है। स्नातक की एक वर्ष की कुल फीस लगभग 80 हज़ार रुपये है, वहीं परास्नातक की एक वर्ष की कुल फीस 1 लाख के लगभग है। पीएचडी की फीस 1 लाख तीस हजार तक है। उसमें भी कानपुर के सीएसए विश्वविद्यालय में इसी सत्र से मेस फीस को 33% बढ़ा दिया गया है, जिससे प्रति छात्र यह दर और अधिक पहुंच जायेगी। यही स्थिति रही तो आगे आने वाले सत्रों में कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ना IIT IIM की तरह गरीब छात्रों के लिए सिर्फ सपना बनकर रह जाएगा।'
सीएसए यूनिवर्सिटी की तृतीय वर्ष की छात्रा पारुल श्रीवास्तव कहती हैं, उनके पिता दिहाड़ी मजदूर हैं। प्रतिदिन का 200 से 300 रुपये कमाते हैं। ऐसे में प्रतिवर्ष 78 से 80 हज़ार रुपये फ़ीस भरना एक बड़ी चुनौती होती है। पारुल कहती हैं, 'प्रत्येक सेमेस्टर के बाद फीस जमा करने का समय मेरे परिवार के लिए बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण होता है। इसके बावजूद मेरे परिजन मुझे पढा रहे हैं। अगर फीस कम हो जाये तो मैं रिसर्च करना चाहती हूं, अन्यथा ऐसी स्थितियों में आगे पढ़ना मेरे लिये बड़ा मुश्किल होगा।'
गौरतलब है कि हमारे देश में एक औसत किसान परिवार के पास सभी स्त्रोतों से आय को जोड़ दिया जाये, तब भी वह 1 लाख से अधिक नहीं होती। कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले 70-80 फीसद छात्र किसान परिवारों से हैं। इन परिस्थितियों में निम्न आय वर्ग वाले किसान परिवार के बच्चों का यूनिवर्सिटी में पढ़ने का सपना महंगी फीस सामने टूट जाता है।
फ़ीस के अभाव में पढ़ाई छोड़ चुके 2018 बैच में प्रवेश पाने वाले श्याम सिंह ने भी कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना संजोया था। उसके लिए कड़ी मेहनत कर अच्छी रैंक लाकर प्रदेश के प्रतिष्ठित सीएसए यूनिवर्सिटी में दाखिला भी लिया, मगर आगे फ़ीस न भर पाने के कारण उन्हें आख़िरकार पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
हर साल अनगिनत छात्र प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक लाने के बावजूद महंगी फीस न भर पाने के कारण विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाते हैं। उनमें से कुछ छात्र अगर कर्ज़ लेकर पढ़ते भी हैं तो कई को पैसों के अभाव में डिग्री पूरी करने से पहले ही पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ती है।
प्रदेश के चार सरकारी व अन्य विश्वविद्यालयों में फीस कम करने के आंदोलन को लेकर यूपी एग्रीकल्चर एक्शन कमेटी के संयोजक सौरभ सौजन्य कहते हैं, जल्द ही हम उत्तर प्रदेश की सभी कृषि विश्वविद्यालयों में एक दिन एक साथ प्रदर्शन कर अपनी बात उठाएंगे। हम सभी कुलपतियों, राज्यपाल, सरकार के कृषि शिक्षा संबंधित विभाग को अपनी मांगे भेजेंगे। मांगें माने जाने तक हमारा विरोध जारी रहेगा।
कानपुर स्थित सीएसए पिछले दिनों तब भी चर्चा में आया था, जबकि हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं के साथ भेदभाव की खबर मीडिया में आयी थी। विश्वविद्यालय प्रबंधन ने छात्राओं के कैंपस से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगाने और किसी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग तक के लिए बाहर निकलने पर रोक लगा दी थी। विवि प्रशासन ने छात्राओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, जिसके अनुसार छात्राओं को शनिवार और रविवार को छोड़कर अन्य दिनों में कभी भी कैंपस छोड़कर जाने की इजाजत नहीं थी। हालांकि छात्राओं ने इसे तुगलकी फरमान बताते हुए मानने से इंकार कर दिया था और इसके लिए गृह विज्ञान विभाग और कुलपति कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया था।
(हर्षित आजाद भारतीय जन संचार संस्थान, दिल्ली के छात्र हैं।)