41 हजार होमगार्डों को बेरोजगार करने वाली योगी सरकार अयोध्या में दीपोत्सव पर खर्च करेगी 10 करोड़
न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को होमगार्ड का भत्ता कांस्टेबल के बराबर करने का आदेश दिया। तभी से सरकार के लिए होमगार्ड आँखों की किरकिरी बन गए और इन्हें हटाने की कवायद शुरू हो गयी...
महेंद्र पांडेय
दुनिया कितने भी आंकड़े पेश करती रहे पर हमारी सरकारें रोजगार और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर अपनी पीठ थपथपाने से बाज नहीं आतीं। इन सबके बीच सरकारी खबरें ही इन दावों को लगातार झुठलाती रहतीं हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने फण्ड की कमी का हवाला देकर दिवाली से ठीक पहले राज्य में 41000 होम गार्ड की नौकरी छीन ली है। अभी हाल में ही योगी सरकार ने बड़े और रंगीन विज्ञापनों के जरिये देश और दुनिया को बताया था कि राज्य में रामराज्य आ गया है, अब कोई दिक्कत नहीं है और रोजगार की तो कोई परेशानी ही नहीं है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में अब तक करीब 55 फीसदी होमगार्ड जवानों की ड्यूटी खत्म कर दी गई है। विभाग में करीब 76 हजार 500 जवानों के मुकाबले सिर्फ 35 हजार होमगार्डों की नौकरी बची हैं। बचे हुए करीब 41 हजार जवान अब घर बैठा दिए गए हैं। इसमें 25,000 को तो पुलिस महकमे ने हटा दिया है, तो खुद होमगार्ड महानिदेशालय ने भी ड्यूटियां कम कर दी हैं। ऐसा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दैनिक भत्ता बढ़ाने के दिए गए आदेश बाद किया गया है।
राज्य सरकार की प्राथमिकताओं की विडम्बना तो देखिये, अयोध्या के दीपोत्सव समारोह के लिए 10 करोड़ रुपये से अधिक का बजट स्वीकृत किया गया है। लाखों दिए जलाए जायेंगे और इसे दुनिया देखेगी और वाहवाही करेगी। गरीबी, लाचारी, अराजकता और बेरोजगारी से परेशान उत्तर प्रदेश की जनता के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है? पिछले वर्ष दीपोत्सव का बजट 10 करोड़ रुपये था, इस बार का पता नहीं पर पिछले बार से और भव्य आयोजन की बात की जा रही है तो जाहिर है कि बजट और ज्यादा होगा।
अब जरा होम गार्डों को बेरोजगार करने के लिए जिस फण्ड की कमी का हवाला दिया गया है, उसका भी आकलन कर लें। पहले पुलिस कांस्टेबल और होम गार्ड के दैनिक भत्ते अलग थे। कांस्टेबल को 672 रुपये मिलते थे जबकि होम गार्ड को 500 रुपये मिलते थे। यानी होम गार्ड को कांस्टेबल की तुलना में दैनिक भत्ता 162 रुपये कम मिलते थे।
इसके बाद एक याचिका के फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को होम गार्ड का दैनिक भत्ता कांस्टेबल के बराबर करने का आदेश दिया। तभी से उत्तर प्रदेश सरकार के लिए होम गार्ड आँखों की किरकिरी बन गए और इन्हें हटाने की कवायद शुरू हो गयी। यदि 25000 होम गार्ड को कांस्टेबल के समतुल्य दैनिक भत्ता दिया जाए तब खजाने पर प्रतिदिन 43 लाख रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। जिस सरकार के पास एक घंटे के दीपोत्सव में दिखावे के लिए 10 करोड़ रुपये से अधिक हैं, उसके पास 41000 युवकों के रोजगार बचाने के लिए धन नहीं है।
हाल में ही अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और इनसे पहले के विजेता अमर्त्य सेन, दोनों ही अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए रोजगार के अवसर बढाने की बातें करते हैं। पर विडम्बना यही है कि देश की केंद्र और राज्य की सरकारें अपने आप को इन सबसे बड़ा अर्थशास्त्री मान कर देश की पूरी अर्थव्यवस्था ध्वस्त कर चुकी है और बेरोजगारी के दलदल में देश को डाल चुकी है।
पहले तो नए लोगों को रोजगार की दिक्कत थी, पर अब तो हालात यहाँ तक हो गयी है कि रोजगार वालों से भी रोजगार छीना जाने लगा है। इस मामले में तो न्यायालयों को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए पर इस समय न्यायालयों का मुद्दा राम मदिर पर सिमट कर रह गया है। ऐसा लगता है कि यदि ये मुद्दा सुलझ गया तो देश वापस सोने की चिड़िया हो जायेगा।
ज़रा सोचिये बाढ़, सूखा, गरीबी और असमानता से जूझते देश में देश को दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ती की जरूरत है, भव्य दीपोत्सव की जरूरत है, नए संसद भवन की जरूरत है या फिर रोजगार और एक मजबूत अर्थव्यवस्था की जरूरत है जिससे सामाजिक सरोकार पूरे किये जा सकें।