वायु प्रदूषण बना रहा बच्चों को हिंसक, बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति

Update: 2019-10-07 05:00 GMT

एड्स, टीवी और मलेरिया को मिलाकर हर साल होती हैं जितनी मौतें, उससे 3 गुना से भी अधिक मौतें हर साल वायु प्रदूषण से...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण पहले की तुलना में एक-चौथाई कम हो गया है। इसी खुशी में उन्होंने नवम्बर में निजी वाहनों के लिए सम-विषय योजना की घोषणा कर दी, क्योंकि उनके अनुसार उस समय दिल्ली के आसपास के राज्यों के किसान अपने खेतों में कृषि अपशिष्ट जलाते हैं, जिससे दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ता है।

गर, सरकारी ज्ञान और जमीनी हकीकत में बहुत अंतर होता है। हाल में ही उपग्रह के चित्रों से स्पष्ट हुआ है कि पंजाब और हरियाणा के किसानों ने खेतों में अपशिष्ट को बड़े पैमाने पर जलाना शुरू कर दिया है। इससे इतना तो पता चलता है कि दिल्ली और केंद्र सरकार लगातार कृषि अपशिष्ट को दिल्ली के वायु प्रदूषण का पूरा जिम्मेदार बना देती है पर उसे इतना भी नहीं पता कि यह जलता कब है। दूसरी तरफ इस बार बारिश का मौसम लम्बा खिंच गया है, जिससे फिलहाल वायु प्रदूषण से राहत है और इसका भी श्रेय सरकारें ले रही हैं।

रकार तो स्वास्थ्य पर भी वायु प्रदूषण का पूरा प्रभाव मानने से इनकार करती रही है जबकि अब नए अध्ययन बता रहे हैं कि वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी प्रभावित करने लगा है। एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित एक शोध के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में चिंता, तनाव और यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृत्ति भी पनपती है।

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स अध्ययन को सिनसिनाटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर में किया गया है। यहीं पर किये गए दूसरे अध्ययन में, जिसे एनवायर्नमेंटल रिसर्च नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है, के अनुसार रोड के ठीक किनारे के स्कूलों के बच्चों में वायु प्रदूषण के कारण तनाव और अवसाद की समस्या अधिक होती है।

स अध्ययन पर दिल्ली सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि यहाँ के स्कूलों में हैप्पीनेस के बारे में बताया जा रहा है। इस पाठ्यक्रम के साथ ही यह भी देखना आवश्यक है कि स्कूल ऐसे जगह तो नहीं स्थित हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर अधिक रहता है। यदि ऐसा है तो हैप्पीनेस के बारे में पढ़ने के बाद भी बच्चे अवसाद से ही घिरे रहेंगे।

यूनिसेफ द्वारा जून 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में लगभग सभी जगहों पर वायु प्रदूषण निर्धारित सीमा से अधिक है, जिससे बच्चे सांस के रोगों, फेफड़ों के रोगों, दमा और अल्प विकसित मस्तिष्क के शिकार हो रहे हैं। पांच वर्ष के कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से से दस प्रतिशत से अधिक का कारण साँसों की बीमारियाँ है जो वायु प्रदूषण के कारण होती हैं।

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यूनिसेफ के अनुसार विश्व में 2 अरब बच्चे खतरनाक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते है, जिनमे से 62 करोड़ बच्चे दक्षिण एशियाई देशों में हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली के एक-तिहाई बच्चों के फेफड़े सामान्य काम नहीं करते। यूनिसेफ द्वारा दिसम्बर 2017 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अधिकतर बच्चों के मस्तिष्क की कार्य-प्रणाली वायु प्रदूषण के कारण प्रभावित हो रही है।

र्नल ऑफ़ एनवायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में प्रकाशित एक शोध के अनुसार अल्प अवधि के लिए भी बढे हुए वायु प्रदूषण के स्तर में रहने पर वयस्कों और बच्चों का भी व्यवहार हमलावर और हिंसक हो जाता है। इस अध्ययन को कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स, एटमोस्फियरिक साइंस और स्टेटिस्टिक्स विभागों ने संयुक्त तौर पर किया है।

स अध्ययन के लिए एफबीआई से हरेक दिन के अपराध के आंकड़े और वर्ष 2006 से 2013 के बीच के हरेक दिन के वायु प्रदूषण के आंकड़े लिए गए। वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 और ओजोन के स्तर के सन्दर्भ में अपराधों के आंकड़ों का मिलान किया गया।

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ब पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर की बढ़ोत्तरी होती है तब अपराध की दर में 1.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है, और ओजोन के स्तर में 0.01 पीपीएम की बढ़ोत्तरी से हिंसक वारदातों में 0.97 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जाती है। स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण केवल स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि इससे मस्तिष्क और सोच भी बदल जाती है और व्यवहार में हिंसा का समावेश हो जाता है।

वायु प्रदूषण की समस्या भारत और चीन में सबसे अधिक है, और इस देशों में इसके कारण जितनी मृत्यु होती है वह आंकड़ा पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का 51 प्रतिशत से अधिक है। चीन में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण कोयले का जलना, उद्योग, घरों में जैविक इंधन का जलना और कृषि अपशिस्ट को खेतों में खुले में जलाना है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण कोयले का अत्यधिक उपयोग और घरों में लकड़ी, उपले या इसी प्रकार के जैविक इंधनों का उपयोग है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाये है और वहाँ प्रदूषण के स्तर में साल दर साल कमी आती जा रही है। इसके विपरीत वर्ष 2010 से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है।

वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के बारे में यह कोई पहली रिपोर्ट नहीं है। पिछले वर्ष लांसेट कमीशन ऑन पोल्यूशन एंड हेल्थ की रिपोर्ट में बताया था कि वर्ष 2015 के दौरान पूरे विश्व में 90 लाख से अधिक मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई। यह संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से संयुक्त रूप से होने वाली मृत्यु के आकड़ों से तीन गुना से भी अधिक है।

वायु प्रदूषण के कारण असामयिक मौतों के सन्दर्भ में 25 लाख से अधिक मृत्यु के साथ भारत पहले स्थान पर और 18 लाख मौतों के साथ चीन दूसरे स्थान पर था।

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