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दिल्ली में ऑड—ईवन पर पर्यावरण विशेषज्ञ ने उठाया सवाल, कहा वायु प्रदूषण पर नहीं पड़ता खास असर
दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार ने 4 नवम्बर से 15 नवम्बर तक दिल्ली में निजी वाहनों के लिए सम-विषम योजना की घोषणा कर दी है, पढ़िये इसे राजनीतिक स्टंट क्यों करार दे रहे हैं पर्यावरण मामलों के विशेषज्ञ लेखक महेंद्र पाण्डेय...
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने आंकड़ों की बाजीगरी से दिल्ली में वायु प्रदूषण को 25 प्रतिशत कम कर दिया है। आश्चर्य यह है कि किसी राजनेता या मीडिया ने इस पर कोई प्रश्न नहीं किया, प्रिंट मीडिया में तो इस पर बड़े-बड़े लेख भी छप गए। दिल्ली में चुनावों का दौर आने वाला है और इसी को मौके का फायदा उठाते हुए अरविन्द केजरीवाल ने 4 नवम्बर से 15 नवम्बर तक दिल्ली में निजी वाहनों के लिए सम-विषम योजना की घोषणा भी कर दी।
इसे चुनावी घोषणा कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय बारिश का मौसम है और प्रदूषण का स्तर कम है, इसलिए इसकी चर्चा भी नहीं की जा रही है। एक-दो सप्ताह में मौसम बदलने लगेगा और वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगेगा। उस समय अरविन्द केजरीवाल की यह घोषणा ढाल का काम करेगी। सितम्बर के महीने में ही इस घोषणा का दूसरा चुनावी फायदा भी है।
राष्ट्रीय हरित न्यायालय में अरविन्द केजरीवाल की इस घोषणा के विरोध में एक याचिका दायर की गयी थी, जिसे एनजीटी प्रमुख जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बैंच ने विचार योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया और कहा कि यह याचिका विचार योग्य है।
ऑड-ईवन के पक्ष में तर्क देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, दिल्ली में दस महीने वायु प्रदूषण कम रहता है, पर नवम्बर और दिसम्बर में पड़ोसी राज्यों में कृषि अपशिष्ट खुले में जलाने पर दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो जाता है। दिल्ली में पहले दो बार वर्ष 2016 के दौरान सम-विषम की घोषणा की जा चुकी है। पहली बार यह जनवरी में इसे लागू किया गया था और दूसरी बार अप्रैल में। इसीलिए केवल कृषि अपशिष्ट के जलाने को दिल्ली में वायु प्रदूषण का कारण बता देना जनता को बेवकूफ बनाने से अधिक कुछ नहीं है।
वर्ष 2017 में 12 जून को केंद्र सरकार ने दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ग्रेडेड रेस्पोंस एक्शन प्लान अधिसूचित किया था। इसमें वे सभी उपाय शामिल किये गए थे जो दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर के अनुसार किये जाने हैं। इसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद लागू किया गया था।
इसके अंतर्गत भी अत्यधिक प्रदूषण की अवस्था में सम-विषम का प्रावधान है। फिर अरविन्द केजरीवाल को सम-विषम अलग से लागू करने की क्या मजबूरी रहती है, यह एक अध्ययन का विषय हो सकता है। वर्ष 2017 के दौरान भी उन्होंने ऐसा ही कुछ वक्तव्य दिया था, तब इस लेख के लेखक ने राष्ट्रीय हरित न्यायालय में इसके विरुद्ध याचिका दायर की थी और एनजीटी ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि बिना पर्याप्त अध्ययन के इसे भविष्य में न लागू करें।
सम-विषम से सम्बंधित सभी अध्ययन, चाहे वे केंद सरकार ने किये हों या फिर दिल्ली सरकार ने किये हों, बताते हैं कि इससे वायु प्रदूषण के स्तर में 10 प्रतिशत से भी कम की गिरावट होती है। दिल्ली सरकार हमेशा यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन के हवाले से बताती है कि इस दौरान पीएम 2.5 की सांद्रता में 14 से 16 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी थी। इस अध्ययन में भी किसी और पैरामीटर का जिक्र नहीं है। स्पष्ट है कि सभी उपलब्ध अध्ययन यही इशारा करते हैं कि सम-विषम योजना का वायु प्रदूषण के स्तर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।