क्या औरत-क्या मर्द, क्या लड़के-क्या लड़कियां, क्या देहाती—क्या शहरी और क्या गरीब-क्या अमीर सबके सब अगर कहीं बिन बुलाए, बगैर निमंत्रण पहुंच रहे हैं तो वह है कुंभ के सेक्टर 15 में लगा किन्नर अखाड़ा, गजब की भीड़ रहती है और लोगों में अजब-सा आकर्षण...
इलाहाबाद के अर्धकुंभ से अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट
इलाहाबाद, जनज्वार। इलाहाबाद के अर्धकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए दर्जनों घाट बने हैं, जिसमें से अरैल घाट वीआईपी घाट के नाम से चर्चित है। अरैल पर केवल वही लोग जाते हैं जिनको आम आदमी नहीं कहा जाता। जैसे नेता, मंत्री, अभिनेता, दलाल, अधिकारी, माफिया और इनके परिवार—रिश्तेदार व लग्गू—भग्गू। इन्हीं की वजह से शहर से लेकर कुंभ तक में अफरातफरी मची रहती है, सड़कें जाम रहती हैं और करोड़ों लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
पर इतने तामझाम के बावजूद इन्हें लोग देखने नहीं जाते। अलबत्ता मोटी—मोटी गालियां जरूर देते हैं, औरत—मर्द श्रद्धालु—वीआईपी घाट की वजह से हो रही परेशानियों पर श्राप देते हैं, कई इन वीआईपी लोगों को भगवान से उठा लेने की दुआ करते हैं।
खैर! आम जनता जहां स्वत: की इच्छा से जा रही है वह अर्धकुंभ के सेक्टर 15 में लगा किन्नर अखाड़ा। सतपाल महाराज के टेंट से सीधे पश्चिम की ओर किलोमीटर भर आगे बढ़े तो कोने पर आपको किन्नर अखाड़े का बोर्ड दिख जाएगा। गौरतलब है कि कुंभ में किन्नर अखाड़ा लगाने की इजाजत पहली बार मिली है। पहली बार उसे 14वें अखाड़े के रूप में शामिल किया गया है।
लाखों के गहनों से लकदक, एक से एक ब्रांडेड साड़ियां पहने, तरह—तरह के क्रीम—पाउडर लगाए किन्नर आपको पंडाल में चलते—फिरते मिल जाएंगे, लेकिन अखाड़े में घुसते ही दीवारों पर देश भर के किन्नर प्रतिनिधियों—पदाधिकारियों के तस्वीरों के विशाल बोर्ड लगे हैं, जिस पर निगाह पड़ते ही लगता है मोदी जी की मेले में लगी तस्वीरें इनसे कमतर हैं।
इन तस्वीरों से आगे अखाड़े के पंडाल में पहुंचने के बाद जो भीड़ नजर आती है और किन्नरों के साथ सेल्फी लेने का जो क्रेज अर्द्धकुंभ के श्रद्धालुओं में दिखता है, उससे एकबारगी मन में सवाल उठता है कि क्या आज वही लोग यानी किन्नर हमारे हीरो बने हैं, जिनके यौन अपंग होने के कारण हमने अपने घरों से बाहर फेंक दिया, कहीं दूर छोड़ आए या फिर बड़ी निर्दयता से किन्नरों के झुंडों के हवाले अपने यौन अपंग बच्चों को कर दिया।
किन्नर अखाड़े की मुख्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं। वह टीवी और शो में आती रहती हैं। उन्होंने गे—लेस्बियन अधिकारों के लिए काफी संघर्ष किया है और किन्नर समाज की काननू लड़ाइयों में वह चर्चित रही हैं। अब वह हिंदू धर्मगुरुओं की सबसे ऊंची पदवियों में से एक महामंडलेश्वर की उपाधि से सज्जित हैं। इस उपाधि के बाद संतों के अतंर्मन में क्या प्रभाव पड़ता है पता नहीं, लेकिन बाहर से देखें तो दो छातानुमा कोई चीज इन महामंडेलश्वरों को मिल जाती है, जिसे इनके साथ—साथ और सिर के ऊपर दो चेले लिए हुए रहते हैं।
संयोग से पंडाल में घुसते ही लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी एक घेरे में मीडिया से मुखातिब दिख जाती हैं। वहां बड़े—बड़े कैमरे लगे हैं और लक्ष्मी के ऊपर दो लोग छातानुमा वह चीज लेकर खड़े हैं, जो महामंडलेश्वर की उपाधि के बाद मिलता है। लक्ष्मी को देखने और उनकी बातें सुनने के लिए लोग घेरे की ओर बढ़ने का प्रयास करते हैं तो बाउंसर रोक देते हैं। बाउंसर बताते हैं कि थोड़ी देर में लक्ष्मी त्रिपाठी दर्शन देंगी। वहीं आप लोग प्रवचन का लाभ भी ले सकते हैं। भक्तों को यह जानकर अच्छा लगता है कि उन्हें आज लक्ष्मी का प्रवचन सुनने का मौका मिलेगा।
बिहार के आरा शहर से आए एक बुजुर्ग हमें बताते हैं कि हिजड़े के मुंह से राम का नाम सुनके जो पुण्य मिलेगा वह इन बाबाओं में कहां। वे अपना नाम बृजबिहारी सिंह बताते हैं। वह चौथी बार कुंभ आए हैं। इस बार उनका पोता साथ आया है, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ता है।
अंग्रेजों के समय से ही चर्चित इलाहाबाद का वह छात्र लपककर अपने बाबा को एक रुपए का एक सिक्का देता है और कहता है, 'बाबाजी जल्दी दीजिए न किन्नर जी को सिक्का। मुंह से जूठा करके देंगे तो घर में पैसा बढ़ेगा। देखिए न सब लोग दे रहे हैं।'
मुझसे बात कर रहे बृजबिहारी सिंह तेजी से भीड़ में घुसते हैं जहां एक बेहद सजा—धजा किन्नर तमाम लोगों से सिक्के लेकर जूठा कर वापस कर रहा है। वे भी सिक्का जल्दबाजी में आगे बढ़ाते हैं। किन्नर बाबा की उम्र का ख्याल करते हुए सिक्का थाम जूठा कर उन्हें वापस करता है। बाबा झठ से उसके पैर छूते हैं और नाती यानी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र सिक्का।
बृजबिहारी सिंह कहते हैं, 'हमारा नाती पूरब के आक्सफोर्ड में पढ़ता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का आक्सफोर्ड कहते हैं न जी। इससे आप कुछ पूछिए।' मैं मुस्कुरा देता हूं और बाबाजी के नाती से पूछता हूं, 'आपका नाम क्या है और विश्वविद्यालय में आप क्या पढ़ते हैं।'
वह अपना नाम अभिषेक कुमार सिंह बताता है। वह एमए दूसरे साल का छात्र है। मैं उससे जानना चाहता हूं कि आपने किन्नर को सिक्का किसलिए दिया। वह कहता है, सभी दे रहे थे तो मैंने भी दे दिया। वह आगे कहता है, 'आपको लगा होगा कि मैं पढ़ा—लिखा होकर भी ऐसा क्यों किया, तो ऐसा न सोचिए। मेरे बाबा अपने समय के एमए हैं। पढ़ा—लिखा होने से संस्कार थोड़े न छूट जाता है।'
जबाव में मैं कहता हूं, 'पर यह अंधविश्वास है! इसमें संस्कृति—संस्कार जैसा क्या है?'
इस पर अभिषेक कुमार सिंह ने कहा, 'आपके लिए अंधविश्वास होगा, हमारे लिए यही संस्कृति भी है और संस्कार भी।' इसके बाद अभिषेक थोड़ा तल्ख हो पंडाल की ओर और आगे घुस जाता है। बृजबिहारी सिंह जाते—जाते बोल जाते हैं, 'राजपूत का खून है, जल्दी उबल पड़ता है।'
किन्नर अखाड़े के पंडाल में मौजूद सैकड़ों लोगों में मैं उस प्रौढ़ हो रहे व्यक्ति से मिलता हूं जो अनजान सी, लेकिन दिखने में सुंदर एक किन्नर के साथ सेल्फी लेने में सबसे पहले सफल होता है। उसके बाद सैकड़ों लड़के—लड़कियों में उस किन्नर के साथ फोटो लेने की होड़ मच जाती है।
मैं अपना परिचय देकर उस व्यक्ति का उससे नाम पूछता हूं और जानना चाहता हूं कि वह कहां से आया है। वह बताता है, 'मेरा नाम अशोक कुमार उपाध्याय है और मैं मध्य प्रदेश के रीवा का रहने वाला हूं। मैं कुंभ में दोस्तों के साथ आया हूं। मैं पेशे से प्राइमरी शिक्षक हूं और मेरे साथ आए सभी लोग भी शिक्षक हैं या फिर शिक्षण के कामों से जुड़े हैं।'
अशोक उपाध्याय भीड़ से अलग अपने तीन—चार मित्रों से मिलाते हैं। वे बताते हैं, 'हमने अखबार में जब पढ़ा कि वहां किन्नर अखाड़ा भी लगेगा तो नागाओं के बाद हमें इन्हें ही देखने की इच्छा थी। कुंभ इतना दूर में फैला हुआ है कि तीन दिन के प्रयास के बाद आज हमलोग यहां आने में सफल हुए हैं।'
मैं अशोक कुमार से पूछता हूं, 'जिस किन्नर को समाज घर में नहीं रहने देता, उसके साथ सेल्फी कैसे ले रहा है। क्या आप अपने मित्रों के बीच किन्नर के साथ वाला फोटो शेयर करेंगे तो वह आपको बुरा—भला नहीं कहेंगे?'
अशोक उपाध्याय मेरी बांतों पर तेज का हंसते हुए बोलते हैं, 'लोग पहचान पाएंगे कि किन्नर है कि लड़की? कभी नहीं। हमारे दोस्तों को जलन होगी कि इतनी खूबसूरत महिला इसे कहां मिली। फिर किन्नर के साथ फोटो, उसका आशीर्वाद लेना तो शुभ होता है, ये सभी जानते हैं।'
अशोक उपाध्याय के मित्रों में शामिल शिक्षक बद्रीनाथ जायसवाल किन्नरों के जानकार जान पड़ते हैं। वे कई किस्से सुनाते हैं और उनके प्रति नरमी भी दिखाते हैं। किन्नरों के प्रति समाज के यौन हिंसक रवैये पर दुख प्रकट करते हैं। वह अपने उपाध्याय मित्र को कोसते भी हैं कि इसने किन्नर के साथ सिर्फ फोटो इसलिए ली है कि इसमें उसके प्रति वासना की भावना है।
ऐसे में मैं बद्रीनाथ जायसवाल से जानना चाहता हूं कि अगर आपका बेटा या बेटी यौन रूप से अपंग पैदा हो जाए तो क्या आप भी उन्हें किन्नरों की जमात में डाल देंगे?
मेरे इस सवाल के बाद शिक्षकों के झुंड के सभी साथी बद्रीनाथ की ओर देखने लगते हैं। कुछ की देखने की मुद्रा 'अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे' वाली है कि बड़ी देर से नैतिकता झाड़ रहे थे। खैर! बद्रीनाथ कुछ देर की चुप्पी के बाद बोलते हैं, 'वैसे तो भगवान न करे ऐसा हो, लेकिन अगर ऐसा हो ही जाएगा तो मैं अपने घर में ही उसे पालूंगा।'
उनके इस साहसी और मानवीय बयान पर उनके किसी मित्र को भरोसा नहीं होता। सब कुहते हैं कि पत्रकार के सामने बोलना और बेटा—बेटी या रिश्तेदार किन्नर अपने घर में रखना, दोनों असंभव है।
आखिर में अशोक उपाध्याय संशोधित कर कहते हैं, 'मैं जायसवाल जी की बात से सहमत हूं। कौन मां—बाप अपने बच्चे को इस हालत में डालना चाहेगा, लेकिन समाज इनको जीने नहीं देगा। हर तरफ से इतना सुनाएगा कि या फिर उसे हिजड़ों को दे आएंगे या फिर मार डालेंगे।'