एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा साईंबाबा पर लगे आरोप मनगढ़ंत, सरकार करे तत्काल रिहा
90 फीसदी विकलांग दिल्ली विश्वद्यिालय के शिक्षक जीएन साईबाबा को जेल में रखना है देश के मानवाधिकार को कैद करना, जेल में साईबाबा को दवा तक नहीं दी जा रही, गंभीर हालत में है उनका स्वास्थ्य
आंदोलनकारियों को तोड़ना होगा भ्रम कि अगर साईबाबा जैसे लोगों को वह जमानत नहीं दिला सकते तो कैसे खड़ा कर पाएंगे प्रतिरोध का कोई आंदोलन, संघर्षों की कोई नई परंपरा
जनज्वार। विश्व के सबसे प्रसिद्ध मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने प्रोफेसर जीएन साईबाबा की जेल में स्वास्थ्य की गंभीर बिगड़ती हालत पर हस्तक्षेप करते हुए गृहमंत्री से अपील जारी किया है कि उन्हें तुरंत मेडिकल केयर दिया जाय। हस्ताक्षर अभियान में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने मांग रखा है कि जीएन साईबाबा को आरोपमुक्त कर उन्हें जेल से रिहा किया जाय।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपने वेबसाईट पर लिखा है,‘जी एन साईबाबा को ‘गैरकानूनी गतिविधि’, ‘आतंकवादी गतिविधि’ और ‘आंतकवादी संगठन का एक सदस्य’ के तौर पर षडयंत्र करने का आरोप है और उन्हें 7 मार्च 2017 को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
यह सजा मुख्यतः प्राथमिक दस्तावेजों और विडियो, जिसे कोर्ट ने साक्ष्य मान लिया, के आधार पर ही उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया(माओवादी) का सदस्य करार दे दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल का मानना है कि जीएन साईबाबा पर जो आरोप हैं वे मनगढंत हैं और उनका मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय अपराध मानकों के मुताबिक नहीं है।
साईबाबा ने जेल से लिखा पत्नी को पत्र, कहा मैं यहां जिंदगी की आखिरी सांसें ले रहा हूं
जीएन साईबाबा पर ‘अरबन माओवादी’ का सरगना जैसे आरोप लगाकर मिडिया में उनके खिलाफ न सिर्फ माहौल बनाया गया, साथ—साथ उनके परिवार को भी लगातार उत्पीड़ित किया जाता रहा है। गौरतलब है कि जीएन साईबाबा को यह सजा एक निचले कोर्ट ने दी है। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका डाल दी गई है।
जीएन साईबाबा छात्र जीवन से ही राजनीति-सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय जीवन में आ गये थे। 1990 के दशक के अंतिम दौर में किसान संगठनों का एक बड़ा मोर्चा बनाने और फिर वर्ष 2000 में साम्राज्यवादी वैश्वीकरण के खिलाफ जनवादी संगठनों का मोर्चा 'फैग' बनाने में सक्रिय भूमिका अदा किया।
अपने अध्ययन को बढ़ाते हुए दिल्ली के राम लाल आनंद काॅलेज में अंग्रेजी के अध्यापक हुए और अपना शोध प्रबंध लिखा। इस दौरान आदिवासी समुदाय पर हो रहे हमले, राजकीय दमन और साम्राज्यवादी लूट के खिलाफ उठ रही आवाज के साथ अपनी आवाज को बुलंद किया। इसके खिलाफ मोर्चाबंदी किया और आॅपरेशन ग्रीन हंट जैसी खतरनाक नीति का पर्दाफाश करने में अहम भूमिका निभाया।
जीएन साईबाबा इन्हीं कारणों से दमन की नीतियों के शिकार बनाये गये। उन पर आरोप गढ़े गये। उनके घर पर महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में चोरी होने के अरोप में छापा मारा गया और फिर कहानी चोरी से चलकर आतंकवाद तक पहुंचा दी गई। यह मुकदमा काफ्का के उपन्यास ‘द ट्रायल’ की याद दिलाता है।
आज सभी को पता है कि जीएन साईबाबा पोलियो ग्रस्त होने के चलते दोनों पैरों से विकलांग हैं। मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक वह 90 प्रतिशत विकलांग है। इस देश की सरकार की उनके प्रति जो सामाजिक, राजनीतिक जिम्मेदारी है वह उठाने के बजाय उन्हें प्रताड़ित करने का सिलसिला जारी रखे हुए है। जिस समय उन्हें सजा दी गई थी उस समय उनकी दवा चल रही थी और उनकी स्वास्थ्य की स्थिति काफी गंभीर थी।
नागपुर जेल में उनके साथ हो रहे दुर्व्यहार के कारण ही उनकी पत्नी वसंता ने अपील जारी किया कि उन्हें नागपुर जेल से हैदराबाद जेल में ट्रांसफर कर दिया जाय। साथ ही कोर्ट में स्वास्थ्य के आधार पर बेल पेटिशन अभी भी लंबित है। संभव है कि अगले हफ्ते तक इस पर सुनवाई हो। लेकिन साईबाबा के पत्रों से यही लगता है कि उनकी स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। जेल प्रशासन और सरकार पर उनकी इस स्थिति का कोई असर नहीं दिख रहा है।
हाल ही में जीएन साईबाबा को जब अस्पताल ले जाया गया तब उनकी पत्नी को भी उनसे मिलने नहीं दिया गया। साफ है कि सरकार की मंशा ही कुछ और है। पूरे घटनाक्रम को देखकर लगता है कि न्याय की आत्मा कोर्ट के किसी कोने से निकलकर किन्हीं और लोगों के हाथों फंस चुकी है। ऐसा ही चलता रहा तो हम सिर्फ न्याय का प्रहसन ही देख पायेंगे। ऐसा नजारा कुछ दिनों पहले पूरा देश सर्वोच्च न्यायालय के प्रांगण में देख चुका है।