विश्व के सबसे बड़े सेब उत्पादक क्षेत्रों में से एक कश्मीर का मोदी सरकार द्वारा अचानक विशेष राज्य का दर्जा छीन लेने के बाद पूर्ण तालाबंदी ने देश-विदेश के खरीदारों से फल उत्पादकों और व्यापारियों के तोड़ दिये हैं संपर्क, सोपोर में जिस बाग़ में देखिये सेब पेड़ों पर सड़ते-लटकते दिखाई देते हैं...
देवज्योत घोशाल और फ़याज़ बुखारी की रिपोर्ट
भले ही यह फसल कटाई का समय है पर उत्तरी कश्मीर के सोपोर शहर में बाज़ार, जो साल के इस समय लोगों, ट्रकों से भरा रहता है, खाली है, जबकि जम्मू कश्मीर के बागों में सेब टहनियों पर बिना तोड़े सड़ रहे हैं।
कश्मीर विश्व के सबसे बड़े सेब उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अचानक राज्य का विशेष दर्जा छीन लेने के बाद लगी पूर्ण तालाबंदी ने देश-विदेश के खरीदारों से फल उत्पादकों और व्यापारियों के संपर्क तोड़ दिए हैं और उद्योग संकट में फंस गया है।
मोदी सरकार ने कश्मीर की स्वायत्तता निरस्त करने कदम का प्रचार इस नाम पर किया था कि क्षेत्र को बाकी भारत से जोड़ा जायेगा, जिससे विकास तेज़ी से होगा। पर फिलवक्त तो, उनकी सरकार की इस कार्रवाई से उपजी अशांति ने अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है और मुस्लिम बहुल क्षेत्र में, जहाँ 30 सालों से ज्यादा समय से भारत के शासन के खिलाफ सशस्त्र बगावत सर उठाती रही है, नाराजगी और तीव्र हो गयी है।
पिछले सप्ताहांत में सुबह-सुबह सोपोर, जिसे सेब के बागों, बड़े मकानों और अपेक्षाकृत समृद्धि के कारण "लिटिल लन्दन" कहा जाता है, का बाज़ार वीरान था, इसके दरवाजों पर ताले थे।
सुबह की नमाज़ के लिए पास ही के मस्जिद जा रहे एक अकेले व्यापारी ने राईटर्स से कहा, "हर कोई डरा हुआ है। कोई नहीं आएगा।" सेब कश्मीर की अर्थव्यवस्था की धमनियां हैं और इससे प्रदेश की करीब आधी आबादी यानी 35 लाख लोग जुड़े हुए हैं।
5 अगस्त को अचानक, जब कटाई का मौसम शुरू हो ही रहा था, सरकार ने भारतीय संविधान के वह प्रावधान हटा दिए जो जम्मू कश्मीर को आंशिक स्वायत्तता देते थे और जिनके कारण केवल स्थानीय लोग ही वहां संपत्ति खरीद सकते थे या नौकरियां पाते थे। उसके साथ ही आवाजाही पर कड़े प्रतिबन्ध लगाए गए और मोबाइल, टेलीफोन और इन्टरनेट कनेक्शन बंद कर दिए गए।
सरकार के अनुसार तात्कालिक प्राथमिकता कश्मीर में हिंसा न पनपने देना था, जहाँ 1989 से अब तक 40 हज़ार से अधिक लोग मारे गए हैं और लैंड लाइन खोलने समेत प्रतिबन्ध धीरे-धीरे हटाये जा रहे हैं।
इसी के साथ सरकार ने तेज़ गति के आर्थिक विकास का वायदा भी किया है तथा इसी साल के अंत में एक निवेशक सम्मलेन की भी योजना सरकार बना रही है जिससे भारत की शीर्ष कंपनियों को क्षेत्र में आकर्षित किया जा सके, ताकि रोज़गार पैदा हों और युवाओं को उग्रवाद से दूर रखा जा सके।
लेकिन, किसानों और फल कारोबारियों का कहना है कि फिलहाल तो बंदिशों के कारण उन्हें अपना उत्पादन बाज़ार तक लाने और बाकी देश में भेजना मुश्किल हो गया है। कुछ का यह भी कहना है कि उग्रवादी संगठन उन्हें काम बंद करने के लिए धमका रहे हैं।
सोपोर में जिस बाग़ में देखिये, सेब पेड़ों पर सड़ते लटकते दिखाई देते हैं। दो-मंजिला मकान में बैठे एक कारोबारी हाजी कहते हैं, "हम दोनों तरफ से फंस गए हैं। न इधर जा सकते हैं, न उधर।"
धंधा चौपट है
जिन कारोबारियों ने रायटर से बात की उन्होंने कहा कि फलों का कारोबार ही नहीं, कश्मीर की अर्थव्यवस्था के दो अन्य प्रमुख क्षेत्र - पर्यटन और हस्तकला - पर भी बुरा असर पड़ा है।
ट्रेवल एजेंट शमीम अहमद, जिनकी ग्रीष्म राजधानी श्रीनगर में एक हाउसबोट है, कहते हैं कि इस साल का पर्यटन मौसम तो यूँ ही गया। उन्होंने कहा, "अगस्त का महीना सैलानियों का आने का चरम मौसम था और हमारे पास अक्टूबर तक बुकिंग थी। अब इसे सुधरने में काफी वक्त लगेगा और हमें नहीं पता आगे क्या होगा?"
पर्यटकों के लगभग गायब हो जाने से शौकत अहमद जैसे कालीन कारोबारी भी प्रभावित हुए हैं। वह कहते हैं, "जब पर्यटक नहीं हैं तो बिक्री भी नहीं है। इसके अलावा हम देश के अन्य हिस्सों में भी अपना माल बेच नहीं पा रहे क्योंकि संचार व्यवस्था बंद है।"
श्रीनगर में प्रमुख चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के कुछ सदस्यों ने कहा कि इन्टरनेट और मोबाइल कनेक्शन के अभाव में उनका काम ठप हो गया है और वह टैक्स फाइल करने से लेकर बैंक कार्य भी नहीं कर पा रहे।
किसी किस्म की उग्र प्रतिक्रिया को रोकने के लिए अगस्त की शुरुआत में हिरासत में लिए गए राजनीतिज्ञों और सिविल सोसाइटी सदस्यों में कुछ कारोबारी भी हैं।
पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू, जिनकी पार्टी कभी मोदी की सत्तारूढ़ भाजपा के साथ थी, ने कहा कि कुछ को छोड़ा गया है पर बाहर के लोग अब कश्मीरियों के साथ कारोबार करने में हिचकिचा रहे हैं।
उन्होंने कहा, "कुछ कारोबारियों पर छापे पड़े और कईयों को हिरासत में लिया गया, देश के बाकी हिस्सों से कोई भी इनके साथ कारोबार क्यों करेगा और अपने सौदे की जांच या अपने खाते खुलवाने को आमंत्रण देगा?"
कोई उम्मीद नहीं है
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को ले कर दो बार युद्ध हो चुका है। इन दोनों देशों के बीच बंट चुके कश्मीर पर दोनों ही देश अपना पूरा हक जताते हैं। दशकों से यह क्षेत्र दोनों देशों के बीच दुश्मनी का केंद्र बना हुआ है।
फरवरी में कश्मीर में भारतीय अर्धसेना काफिले पर घातक आतंकी हमले के बाद परमाणु शस्त्र संपन्न पड़ोसियों में आसमानी लड़ाई हो चुकी है जिससे सीमा पर संघर्ष की आशंका गहराने लगी थी।
मंज़ूर कोलू, जो बर्फीली पहाडियों से घिरी डल झील पर पांच कमरों वाली हाउसबोट चलाते हैं, के मार्फ़त अस्थिरता का ताज़ा मामला उन जैसों के लिए तबाही आने जैसा है। कोलू बताते हैं कि 5 अगस्त से कुछ दिन पूर्व पुलिस आई थी और अशांति की आशंका जताते हुए उनसे कहा था कि पर्यटकों को हटा दो। उन्होंने कहा, "उन्होंने मुझे कहा कि कोई भी अनहोनी हुई तो जम्मेवारी मेरी होगी।" उनके चार मेहमान इसके तुरंत बाद चले गए और उसके बाद कोई मेहमान नहीं आया।
लकड़ी के फर्नीचर और पारंपरिक कश्मीरी कालीनों से सजी 35 साल पुरानी बोट के लिविंग रूम में खाली बैठे कोलू ने कहा, "अब हमें अगले साल अप्रैल तक इंतज़ार करना होगा। यह नाउम्मीद करने वाला है। कितनी बार मैंने बोट बेचने की सोची पर यही मेरे पिता के जीवनभर की कमाई है।"
कश्मीर के पर्यटन उद्योग को हाल के वर्षों में कई झटके लगे हैं। 2014 में बाढ़ और 2016 में लम्बे समय तक अशांति।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच पर्यटकों की संख्या में सुधार हो रहा था, पर अगस्त में जैसे सबकुछ थम गया। पिछले महीने यहाँ केवल 10,130 पर्यटक आये, जबकि जुलाई में यह संख्या डेढ़ लाख और जून में एक लाख साठ हज़ार थी।
श्रीनगर के श्रमिक बहुल ज़ूनिमार इलाके में एक मंजिला मकान में अब्दुल हामिद शाह खिड़की के पास बैठे कश्मीरी शाल बुन रहे हैं। एक शाल बुनने में कम से कम तीन महीने लगते हैं और कुछ-कुछ शाल बुनने में तो पूरा एक साल लग जाता है।
शाह को प्रति शाल पैंतीस हज़ार रुपये मिलते हैं जो अक्सर महीने की किश्तों में, लगभग दस हज़ार रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। अगस्त से उनके पास उस शाल कारोबारी से भी पैसे आने बंद हो गए हैं, जिनके साथ वह एक दशक से काम कर रहे हैं। शाह बताते हैं, "वह मुझे कह रहे हैं कि कारोबार न होने के कारण उनके पास पैसे नहीं हैं।"
-संपादन संजय मिगलानी और अलेक्स रिचर्डसन
(देवज्योत घोशाल और फ़याज़ बुखारी की यह रिपोर्ट 19 सितम्बर 2019 को रायटर में छपी है, इसका अनुवाद कश्मीर खबर ने किया है।)
मूल खबर : Apples rot in Kashmir orchards as lockdown puts economy in tailspin