ट्रक ड्राईवर सिर्फ दो विभागों को हर साल देते हैं 48 हजार करोड़ रुपए की घूस

Update: 2020-03-11 06:10 GMT

ट्रक चालकों ने बताया कि वह यदि इस संंबंध में शिकायत करें तो कोई सुनवाई नहीं होती। ट्रक चालक का नाम आते ही यहीं मान लिया जाता है कि वही गलत है...

जनज्वार ब्यूरो, दिल्ली। 2019 में भारत में 51 फीसदी लोगों ने किसी ना किसी काम के लिए सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को रिश्वत दी है। जब हम बात ट्रक चालकों की करे तो एनसीआर में 84 प्रतिशत ट्रक ड्राइवरों ने रिश्वत दी है। भारत की सड़कों पर भ्रष्टाचार सारे रिकार्ड तोड़ रहा है। रिश्वत की यह रकम 47,852.28 करोड़ (6.7 बिलियन डॉलर) रुपए है। इतनी राशि अरूणाचल प्रदेश के पांच साल के ढांचागत विकास पर खर्च की गयी है।

'सेव लाइफ फाउंडेशन' ने ट्रक चालकों पर एक रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली-एनसीआर में 84 फीसदी ट्रक चालकों ने यातायात पुलिस अधिकारियों को रिश्वत दी है। देश में यह आंकड़ा 67 फीसदी है। ज्यादातर ट्रक ड्राइवर्स ने बताया कि वे सड़क पर असुरक्षित महसूस करते हैं, इनमें से बहुत कम ने कहा कि वे खुद असुरक्षित ड्राइविंग करते हैं। 49 प्रतिशत चालकों ने बताया कि गाड़ी ओवर लोड होने पर रिश्वत देनी पड़ती है।

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धिकारियों के साथ बहस करने के बजाय 100-200 रुपये की रिश्वत देना बेहतर है। 500 रुपये ले लो। यदि बात नहीं बनती तो वह इस तरह से रिश्चत की राशि को बढ़ाते हैं। सर्वे में चालकों ने बताया कि वह अड़ नहीं सकते। उनकी कोशिश होती है जितनी जल्दी हो अधिकारी के सामने से निकला जाए। लगभग दो-तिहाई ट्रक चालकों ने बताया कि हाइवे पर पुलिस रिश्वत लेती है। गुवाहाटी में 97%, चेन्नई में 89% और दिल्ली-एनसीआर में 84% ने रिश्वत दी है। विजयवाड़ा से सबसे कम संख्या 17% बताई गई।

गभग 44% ट्रक चालकों ने दावा किया कि उन्होंने आरटीओ अधिकारी को रिश्वत दी है। बेंगलुरु और गुवाहाटी में यह प्रतिशत 90% से अधिक था। आरटीओ अधिकारियों को दी जाने वाली औसत रिश्वत 1,172 रुपये थी, जिसकी सीमा शहरों में 571 रुपये और 2,386 रुपये के बीच थी। 28% ट्रक चालकों ने रिश्वत देने का कारण नहीं बताया।

Full View में एक-चौथाई चालकों ने कहा कि उन्होंने स्थानीय समूहों या गिरोहों को भी पैसा देना पड़ता है। गुवाहाटी में 90%, कोलकाता में 45% और विजयवाड़ा में 39% चालकों को स्थानीय गिरोह या गैंग धमका कर पैसे लेते हैं। चालकों के मुताबिक जबरन वसूली राशि औसतन 608 रुपये प्रति चक्कर बैठती है। माता का जागरण या फिर इसी तरह से आयोजन के नाम पर पैसे मांगे जाते हैं। जबकि कई बार तो कारण बताए बिना ही जबरन वसूली की जाती है।

सेव लाइफ फाउंडेशन के संस्थापक पीयूष तिवारी ने बताया कि पुलिस वाले चालकों को इसलिए भी रोक लेते हैं कि वह अपनी कंपनी की वर्दी पहन कर गाड़ी नहीं चला रहा है। जबकि उनका केबिन इतना गर्म हो जाता है कि चालक बहुत कम पकड़े पहन कर ही वाहन चला सकता है।

पंजाब के रोड सेफ्टी विशेषज्ञ नवनीत असीजा ने बताया कि रोड पर ट्रक चालक हर अधिकारी के निशाने पर रहते हैं। चौक पर खड़े सिपाही से लेकर आरटीओ, आबकारी एवं कराधान विभाग, यातायात विभाग यहां तक की होमगार्डस के जवान भी उनसे रिश्वत लेते हैं। एक ट्रक आपरेटर ने बताया कि दिल्ली से चंडीगढ़ तक वह औसतन दो हजार रुपए रिश्वत देते हैं। इसके बाद भी चालक को सड़क पर सम्मान नहीं मिलता। उन्हें हर कोई हिकरात भरी नजर से देखता है।

रिश्वत देना हमारी मजबूरी है। ट्रक आपरेटर अशोक कुमार ने बताया। जांच के नाम पर ट्रक खड़ा कर लेंगे। अब जितनी देरी होगी, उतना ही उनका नुकसान होता जाएगा। कई बार तो पूरा दिन ट्रक खड़ा करा दिया जाता है। जिससे तीन से चार हजार रुपए का नुकसान होता है। रिश्वत फिर भी देनी पड़ती है। ऐसे में एक ही उपाय है, जो भी कर्मचारी या अधिकारी ट्रक को हाथ दे, उसके हाथ में कुछ पैसा रख दो।

Full View ने बताया कि वह यदि इस संंबंध में शिकायत करे तो कोई सुनवाई नहीं होती। ट्रक चालक का नाम आते ही यहीं मान लिया जाता है कि वहीं गलत है। हमारी बात को कोई नहीं सुनता। हम जितना चाहे चीख चिल्ला लें, लेकिन गलत हमें ही माना जाता है। इसलिए हम सड़क पर किसी से बहस ही नहीं करते हैं।

ट्रक चालकों ने बताया कि हाइवे पर हर किसी के रेट फिक्स है। इसलिए दिक्कत ही नहीं आती। लेकिन शहर के बीच में कई बार उनसे ज्यादा रिश्वत भी मांगी जाती है। क्या रिश्वत देते हुए डर नहीं लगता, तो इस सवाल के जवाब में ट्रक चालकों ने बताया कि क्योंकि उन्होंने ट्रक चलाने का काम अपने उस्ताद से सीखा है। उनका व्यवहार रोड पर जैसा होता था, हम भी उसी तरह से व्यवहार करते हैं। उस्ताद ने ट्रक चलाने के साथ साथ यह भी सीखा दिया कि रिश्चत दी कैसे जाती है? अब तो डर ही नहीं लगता। यह उनके व्यवहार में शामिल हो गया है।

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न्होंने बताया कि उनके साथ रोड पर सम्मानजनक व्यवहार करना तो दूर इंसानों जैसा व्यवहार भी नहीं किया जाता है। उनका शोषण होता है। उनके साथ अधिकारी खराब व्यवहार करते हैं। कई बार गुस्सा आता है, लेकिन क्या कर सकते हैं?

र्वे में निकल कर आया कि ज्यादातर ट्रक चालक अपने काम से खुश नहीं है। इतना ही नहीं उन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ रहा है। काम के घंटे तय नहीं है। उन्हें दस हजार से 20 हजार रुपए महीना वेतन मिलता है। बहुत कम चालक ऐसे है जिन्हें प्रति किलोमीटर के आधार पर पैसा मिलता है। चालकों ने बताया कि वह शिक्षित नहीं है, उनके पास कोई दूसरा हुनर नहीं है जिससे आजिविका चला सके, इसलिए वह ट्रक चालक के तौर पर ही काम कर रहे हैं।

(नोट : इस खबर के लिए इनपुट इंडिया स्पेंड से लिया गया है)

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