आवारा पशुओं के आतंक के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन, किसानों ने कहा गौरक्षा के नाम पर बंद करो फर्जीवाड़ा
किसानों ने कहा पशु अपने घर ले जाएं नेता, नहीं तो बजा देंगे ईंट पर ईंट, किसान आंदोलन को रोकने के लिए सीकर जिले में 24 घंटे से बंद है इंटरनेट
जनज्वार, सीकर। सीकर में 1 सितंबर से चल रहा किसानों का पड़ाव 'धरना' आज जबर्दस्त रूप से व्यापक आंदोलन मेें बदल गया। कर्जमाफी, स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करो, आवारा पशुओं को आतंक पर लगाम लगाओ और पशु विक्रय प्रतिबंध अध्यादेश को रद्द करो की मांग के साथ शुरू हुआ किसान आंदोलन पूरे प्रदेश मेें फैलता जा रहा है।
आज सीकर में पूर्ण रूप से बंद हैं तो श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुनझुनु, नागौर और बीकानेर में भी इन मांगों के साथ प्रदर्शन हुए हैं। अखिल भारतीय किसान सभा के राजस्थान सहसचिव डॉक्टर संजय माधव ने बताया कि सरकारों को वोट लेने के बाद उन्हें भूल जाने की आदत अब बदल लेनी चाहिए। किसानों ने मोदी को प्रधानमंत्री अपने विकास और पैदावार बढ़ाने के लिए बनाया था, न कि किसानी और तबाह करने के लिए।
राज्य में आवारा पशुओं का आतंक एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। सरकार न तो कर्जमाफी कर रही है और न ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को ही लागू कर रही है। अलबत्ता इसने पशु विक्रय प्रतिबंध अध्यादेश लाने की साजिश जरूर की है, जिसके खिलाफ आज किसान व्यापक रूप से आंदोलनरत हैं।
बीकानेर जिले के लूनकरण तहसील में पिछले महीने किसान सभा ने प्रदर्शन करते हुए करीब डेढ़ दो हजार आवारा पशुओं को एसडीएम दफ्तर में बांध दिया था और प्रशासन को हिदायत दी थी इसको या फिर मंत्रियों के बंगले में बांध या अपने यहां रखो। अगर हमारे खेतों में ये दुबारा गए तो हमलोग उग्र आंदोलन करेंगे।
इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं में शामिल किसान नेता और पूर्व विधायक अमराराम का कहना है कि सरकार जब तक राज्य स्तर पर कोई वार्ता नहीं करती है, किसान पड़ाव और आंदोलन जारी रहेगा। किसान पिछले 2 महीने से अलग—अलग जगहों पर धरना दे रहे हैं। पर सरकार का कोई अमला सुनवाई करने को तैयार नहीं है, लेकिन अब किसानोें का गुस्सा व्यापक और ताकतवर होकर फूट रहा है तो सरकार अपने मंत्रियों को भेजकर हमें हवाई आश्वासन दे रही है।
सीकर प्रदर्शन में शामिल रहे नवलगढ़ के किसान राकेश कुमार सिंह कहते हैं, 'सरकार शहरों में गौहत्या के नाम पर वोट बटोर रही है और यहां किसान अपनी फसलों को बचाने की कोशिश में रात—रात भर जा रहे हैं। क्यों नहीं गौरक्षा से पहले सरकारों ने हमारी चिंता की, आखिर कौन बांधेगा अपने घरों में इनको। अगर सरकार हमारी बात नहीं सुनेगी तो हम ईंट से ईंट बजा देंगे।
झुनझुनु के किसान नेता श्रीचंद डूढ़ी के मुताबिक हमारी तीन मुख्य मांगें हैं। पहली कर्जमाफी, दूसरी स्वीमानाथन रिपोर्ट को लागू करो और तीसरी हमारे खेतों को आवारा पशुओं से निजात दिलाओ। इसके साथ ही तत्काल प्रभाव से पशु बिक्री पर लगे प्रतिबंध को हटाना भी है।
गौरतलब है कि हरियाणा और राजस्थान की सरकारों ने लगने वाले पशुमेले को प्रतिबंधित कर दिया है। इन प्रतिबंधों के कारण किसान अपने पशुओं को नहीं बेच पा रहे हैं, क्योंकि सरकार का कहना है कि पशु धन को जो वध के लिए ले जाएगा वह भी और जो बेचेगा वह भी दोनों ही दोषी माने जाएंगे और उन पर कार्यवाही होगी।
गौरक्षा के नाम पर किए किए इस किसान विरोधी फैसले से देशभर के किसान आक्रोश में हैं। किसान नेताओं का कहना है कि इसकी शुरुआत राजस्थान से हो चुकी है। अब धीरे—धीरे किसान अपने प्रदर्शनों के जरिए बताएंगे कि गौरक्षा के नाम पर जारी सरकारी नुराकुश्ती कैसे किसानों की बर्बादी का नया अध्याय लिख रही है।
केंद्र और राजस्थान राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद गौकशी पर पूर्ण रूप से पाबंदी लग गयी है जिसके कारण किसानों को फसलों अवारा पशु बड़ी संख्या में बर्बाद कर रहे हैं। साथ ही किसान अपने गैर दुधारू और अनुपयोगी पशुओं को बेच नहीं पा रहे हैं। किसानों की मांग है कि सरकार इन आवारा पशुओं के रखरखाव की जिम्मेदारी ले, अन्यथा उनके लिए खेती मुश्किल हो जाएगी।
केंद्र सरकार ने पशु बिक्री प्रतिबंध अध्यादेश भी ला दिया है। किसान इससे सबसे ज्यादा डरे हुए और नाराज हैं। इसके लागू होने के बाद किसानों को अपने पशु को बेचना भी प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। किसान को अपना पशु हमेशा अपने पास ही रखना होगा, चाहे वह जिस हालत में हो।