पढ़िए आशीष वशिष्ठ का विश्लेषण कि जानवरों ने नहीं इंसानों ने किया है जानवरों के क्षेत्र का अतिक्रमण, कैसे भोजन की अनुपलब्धता के चलते ये जानवर आबादी क्षेत्रों की तरफ बढ़ आ रहे हैं...
पिछले दिनों एक तेंदुआ भटककर लखनऊ की आबादी में घुस आया था। तेंदुए की आमद से क्षेत्र में दहशत का माहौल था। वन विभाग की टीम तेंदुए को पकड़ने की तैयारी ही कर रही थी कि इस बीच रेस्क्यू आपरेशन में पुलिस की गोली से तेंदुए की मौत हो गई। तेंदुए की हत्या की खबर वायरल होते ही सोशल मीडिया पर नाराजगी और गुस्से से भरी पोस्टों की बाढ़ सी आ गयी।
पुलिस के गैरकाूननी व नियम विरूद्ध कृत्य पर लोगों का गुस्सा व नाराजगी जायज है। लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिरकार जंगली जानवर मानव बस्तियों का रुख क्यों कर रहे हैं। क्यों मनुष्य और जंगली जीवों में संघर्ष बढ़ रहा है? क्या कभी आपने यह सोचा है कि विकास की कहानी का सीधा वास्ता आदमी और जानवर के उस टकराव से जुड़ा है, जो जंगल घटने के कारण और बढ़ा है।
इस घटना के बाद फिर एक बार ऐसा लगा कि मानो अपनी रिहाइश को लेकर इंसान और जंगली जानवरों के बीच जंग सी छिड़ी हुई है। असंतुलित एवं अनियंत्रित विकास से जंगल नष्ट हो रहे हैं और वहां रहने वाले जंगली जानवर कंक्रीट के आधुनिक जंगलों में भूखे-प्यासे और बौखलाए हुए भटक रहे हैं।
पूरे देश में ऐसी घटनाएं रुकने की बजाए बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए कि जानवर इसानों की बस्ती में घुस रहे हैं या इंसान जानवरों के क्षेत्र को कब्जा रहे हैं?
वास्तव में मानवीय हस्तक्षेप और दोहन के कारण न सिर्फ वन क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं, बल्कि वन्य जीवों के शांत जीवन में मानवीय खलल में भी सीमा से अधिक वृद्धि हुई है। घास के मैदान कम होने से वे जीव भी कम हुए हैं, जो मांसाहारी जंगली जानवरों का भोजन होते हैं।
भोजन की अनुपलब्धता उन्हें इंसानी बस्तियों में खींच लाती है, जिसके बाद मानव और वन्यजीव संघर्ष की लखनऊ जैसी वीभत्स तस्वीरें सामने आती हैं। दुनियाभर में जंगली जानवरों के हमलों में हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाते हैं तो बड़ी संख्या में लोग घायल भी होते हैं। मानव और वन्य जीवों का यह संघर्ष अब राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत में सबसे ज्यादा खराब हालात उत्तराखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में हैं।
पिछले दो दशकों में देश में इंसान और जंगली जानवर के बीच टकराव की घटनाओं में वृद्धि दर्ज हुई है। भारत में हाथी और बाघ जैसे जानवर औसतन हर रोज एक व्यक्ति को मार रहे हैं। लेकिन इसके उलट इंसान भी रोजाना औसतन एक तेंदुए को मार रहे हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, अप्रैल-2014 से इस साल मई महीने के 1,143 दिनों में 1,144 लोग जंगली जानवरों के हमले में जान गंवा चुके हैं। यह ट्रेंड लगातार जारी है और इसके कम होने के आसार नहीं दिख रहे।
आंकड़ों के मुताबिक, इसी अवधि में देशभर में 345 बाघ और 84 हाथी मारे गए। हालांकि इनमें से ज्यादातर जानवर शिकारियों के हाथों मारे गए। हाथियों को उनके दांतों के लिए निशाना बनाया गया। इंसानों की जो मौतें हुईं उनमें से 1,052 लोगों की मौत के लिए हाथी जिम्मेदार थे, जबकि 92 लोगों ने बाघ का शिकार बनकर जान गंवाई।
इस अवधि में हाथियों और बाघों के हमले में सबसे ज्यादा इंसानों की मौत पश्चिम बंगाल में हुई। कुल मौतों में से एक तिहाई लोगों की जान अकेले इसी राज्य में गई। राज्य में हाथियों की कुल तादाद 800 के करीब है। दूसरे राज्यों में भी ऐसी काफी घटनाएं हो रही हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल-2015 में करीब 950 लोग जानवरों के हमले में मारे गए हालांकि इनमें घटनाओं की तादाद नहीं बताई गई है।
देश का कोई भी कोना हो जीव-जंतुओं का पूरा आहार चक्र ही बाधित हो गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि घास प्रबन्ध अर्थात शाकाहारी जानवरों के लिए भोजन प्रबन्ध बिगड़ गया है। जब इनका भोजन अर्थात चारा जंगलों में नहीं होगा तो ये शहर-गांवों की तरफ क्यों नहीं आएंगे?
बाघ, तेंदुआ आदि जंगल छोड़कर आबादी की तरफ आने लगें तो इसे उनके संघर्ष की इंतहा ही कहना चाहिए। एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में करीब साढे तीन लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के सर्वे के आधार पर 14 हजार तेंदुए हैं। इनके स्वभाव में होता है कि ये घने जंगलों में रहने वाले बाघ से टक्कर नहीं लेता।
इसलिए कुछ बाहरी क्षेत्र में ही रहता है। जंगल के कुछ बाहर मिलने वाले जानवर चीतल, चिंकारा, सांभर आदि बहुत ही कम हो गए हैं। इसके अलावा इनके पीने के पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है।
देवभूमि हिमाचल में जंगली जानवरों का आतंक इतना अधिक हो गया है कि कई जगह लोगों ने खेती करना ही छोड़ दिया है। आंकड़े गवाह हैं कि हर साल करोड़ों रुपये की फसल के नुकसान का कारण जंगली जानवर ही बन रहे हैं। खेती को नष्ट करने के बाद अब यह जानवर लोगों की जान पर बन आए हैं।
प्रदेश में कई इलाके ऐसे हैं जहां बंदरों के आतंक से लोग परेशान हैं। ऐसे क्षेत्रों में लोग अकेले बाहर निकलने से भी कतराने लगे हैं। चंबा और कुल्लू जिले में भालू के हमले तो ऊना जैसे समतल इलाकों में नील गायों की मुसीबत बनी हुई है। 2011 में फिल्म अभिनेत्री और राज्य सभा सांसद हेमा मालिनी के मुंबई स्थित बंगले में तेंदुआ घुस गया था।
दरअसल मुंबई शहर फैलते-फैलते जंगलों के पास तक पहुंच चुका है जहां तेंदुए और दूसरे जंगली जानवर रहते है, बढ़ते दखल के चलते अब वे गाहे-बगाहे शहर में विचरण करने को मजबूर हैं। इसी तरह से पुणे, दिल्ली, मेरठ, लखनऊ, हरियाणा के शिवालिक पहाड़ियों के करीब बसे क्षेत्रों और गुड़गांव जैसे शहरों में इस तरह की घटनायें सामने आयीं हैं।
गुजरात में गीर के आसपास के इलाकों में अवैध खनन से जमीन बंजर होने लगी है। जंगल के जानवरों को खाने-पीने की दिक्कत होने लगी है और यही वजह है कि इन इलाकों में अमूमन जंगली जानवरों का हमला होने लगा है। दिल्ली और दिल्ली के आसपास के कई इलाकों में तो बंदरों के आतंक से लोग परेशान हैं। दरअसल पिछले कुछेक सालों से जंगली जानवर रिहाइशी इलाको की तरफ आने लगे हैं। कई जगहों पर बंदरों ने कब्जा कर रखा है।
मानव वन्यजीव संघर्ष किस कदर बढ़ रहा है और इसके क्या दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, उसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि भारत के अनेक अंचलों में जंगलों के पास खेती करने वाले किसान या तो नई किस्म की फसलें बो रहे हैं या खेती करना ही छोड़ रहे हैं।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के किसान परिवार पीढ़ियों से कपास और मटरी जैसी व्यावसायिक फसल लगा रहे थे। एक दशक पूर्व पास के जंगलों से हिरण और जंगली सुअरों का आना बढ़ा और फसल का नष्ट होना प्रारंभ हो गया। इसलिए वे अब केवल सोयाबीन लगाते हैं, क्योंकि सोयाबीन को जंगली जानवर नहीं खाते हैं।
बढ़ती मानव आबादी के साथ ही वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं में भी तेजी के साथ वृद्धि हो रही है। देश में 71 फीसदी वन भू-भाग वाले उत्तराखंड में वन्य जीव संघर्ष के मामले संभवतः समूचे भारत में सबसे अधिक हैं। बीते कुछ सालों में राज्य में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई है और कई लोग बुरी तरह जख्मी हुए हैं।
पिछले 6 सालों में 257 लोगों की मौत जंगली जानवरों के हमलों की वजह से हुई है, जबकि 1,486 लोग जख्मी हुए हैं। सिर्फ उत्तराखंड में बात करें तो राज्य बनने से लेकर अब तक के 17 सालों में विभिन्न कारणों से 357 हाथी, 128 बाघ और 957 गुलदार मारे गए हैं। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की हालत भी ठीक नहीं है।
इस भयावह स्थिति को देखते हुए भारत सरकार अब जर्मनी के साथ मिलकर एक प्रोजेक्ट लॉन्च करने जा रही है ताकि इंसान और जानवरों के संघर्ष को कम से कम किया जा सके।
देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वैज्ञानिकों ने जंगलों में और उनके आसपास के इलाकों में बढ़ते मानव-पशु संघर्ष के मामलों पर नियंत्रण के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी को एक साधन के तौर पर इस्तेमाल करने का फैसला किया है। पर्यावरण संतुलन के लिए सभी को वन्य जीवों की रक्षा का संकल्प लेना होगा तभी संघर्ष की स्थिति कम होगी।
मनुष्य ने अपने निजी स्वार्थों के चलते आज वनों का अनुचित तरीके से विदोहन किया किया है,जिसके चलते आज जंगली जानवर आबादी की ओर आ रहे हैं और दोनों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है इस संघर्ष को तुरंत रोका जाना समय की जरूरत है। (प्रतीकात्मक फोटो)