देशव्यापी बंद में शामिल श्रमिक बोले श्रम कानून पर हमला नहीं स्वीकार, धर्म के आधार पर नहीं बंटेंगे कभी

Update: 2020-01-09 12:41 GMT

देशव्यापी भारत बंद में शामिल लोगों ने केंद्र की मोदी सरकार को चेताया अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम इसे अनिश्चितकालीन हड़ताल में तब्दील कर देंगे, ऐसा करने से ही मालिकों के मुनाफे पर चोट लगेगी...

जनज्वार,लखनऊ। केंद्र की मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में बुधवार 8 जनवरी को श्रमिक संघों ने देशभर में भारत बंद का आह्वान किया था। देश के 10 प्रमुख श्रमिक संघों के आह्वान पर बुलाए गए बंद का उत्तर प्रदेश में भी व्यापक असर देखने को मिला।

स हड़ताल के माध्यम से मोदी सरकार से श्रम कानूनों को बदलाव को खत्म करने की मांग की गयी थी। हड़ताल करने वाले श्रमिकों ने केंद्र की मोदी सरकार को चेताया कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम इसे अनिश्चितकालीन हड़ताल में तब्दील कर देंगे। ऐसा करने से ही मालिकों के मुनाफे पर चोट लगेगी।

देशव्यापी हड़ताल में शिरकत करने वाले लोगों ने कहा कि मोदी सरकार ने मेहनतकश आवाम पर चौतरफा हमला किया है। हम सब किसी भी कीमत पर श्रम कानून पर हमले को स्वीकार नहीं करेंगे और धर्म के आधार पर नहीं कभी नहीं बंटेंगे।

रकार श्रम सुधार के नाम पर 44 श्रम क़ानूनों को बदलकर 4 श्रम संहिताएँ लागू करने जा रही है। इसका पहला लेबर कोड संसद में पेश किया जा चुका है। चारों लेबर कोड पारित होने के बाद मज़दूरों के अधिकार छिन जायेंगे।

गौरतलब है कि पुराने श्रम कानून सिर्फ कागजों की शोभा बढ़ा रहे हैं, क्योंकि देश के 93 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर इसे कानून को लागू ही नहीं किया गया है।

Full View से बात करते हुए लखनऊ के बीमा कर्मचारी संघ के लोगों ने कहा कि देश के उद्योगपतियों को फायदा पहुचांने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र का प्राइवेटाइजेशन किया जा रहा है। पुराने कानून में सरकार कोई बदलाव नहीं करे। हमारी इस हड़ताल के तहत हमें न्यूनतम मजदूरी 21 हजार रुपये चाहिए, जिससे किसी भी व्यक्ति का गुजारा हो सके। इस हड़ताल में आज किसान भी हमारे साथ हैं।

जदूरों ने कहा कि हम सार्वजनिक क्षेत्रों को प्राइवेट क्षेत्र में तब्दील किये जाने के खिलाफ हैं, क्योंकि किसी उद्यम को निजी किये जाने पर उसपर मात्र एक व्यक्ति का हक रह जात है और सार्वजनिक क्षेत्र पर हर भारतीय का हक है। इस हड़ताल में लगभग 25 करोड़ लोग समेत और देश के सभी संगठित और असंगठित मजदूर यूनियनें शामिल हैं।

बीमा कर्मचारी संघ के कर्मचारियों ने कहा कि हम सरकार से गुजारिश करते हैं कि वह सार्वजनिक क्षेत्र को न बेचे। सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने का मतलबदेश के किसी न किसी टुकड़े को बेचने के बराबर है। हमारा देश भारत बहुत ही खूबसूरत देश है। हम किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिकता में नहीं फसने वाले हैं। श्रम किसी जाति, किसी धर्म की धरोहर नहीं होता, हम सारे श्रकिक अपने मूल मुद्दों पर एक साथ हैं।

ये लेबर कोड के अनुसार सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी पूरे देश में 178 रुपये प्रतिदिन यानी 4630 रुपये मासिक करने का फ़ैसला किया है। मतलब अब कोई मालिक अगर किसी मज़दूर को केवल 4630 रुपये प्रति महीना तनख़्वाह देता है तो वह कोई क़ानून नहीं तोड़ेगा। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सुरसा की तरह मुंह फैलाती महंगाई में सिर्फ 4630 रुपये की तनख्वाह में किसी के घर का गुजार कैसे होगा।

ये लेबर कोड के मुताबिक अब फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर द्वारा फ़ैक्टरियों का निरीक्षण करना अनिवार्य नहीं रह जायेगा। अगर मालिक सिर्फ़ यह कह दे कि उसकी फ़ैक्टरी में 10 से कम मज़दूर काम करते हैं और फ़ैक्टरी में सबकुछ ठीक है तो उसकी बात मान ली जायेगी। मोदी सरकार ने जो नए कानून बनाए हैं, उससे फैक्ट्रियों में सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं रह जाएगा। इन्हीं सबके खिलाफ कल 8 जनवरी को देशभर के मजदूरों ने भारत बंद का आह्वान किया था।

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