कॉरपोरेट हितों के लिए सरकार कर रही आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से बेदखल

Update: 2019-03-02 10:58 GMT

जंगलों से आदिवासियों की बेदखली का आदेश साफ-तौर पर इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि जल-जंगल जमीन को आदिवासियों से छीनकर सरकार कॉरपोरेट लूट के लिए रास्ता साफ कर रही है...

वाराणसी, जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी 2019 को एक आदेश जारी किया कि 21 राज्यों के 20 लाख से अधिक आदिवासी परिवारों को 12 जुलाई 2019 तक जंगलों से बेदखल किया जाये। हालांकि सरकार इस फैसले के खिलाफ 13 जुलाई तक सुप्रीम कोर्ट से स्टे लेकर आ गयी है, लेकिन इससे आदिवासी विस्थापन की समस्या का हल नहीं होने वाला है।

आदिवासियों को उनके जल, जंगल, जमीन से विस्थापित किए जाने के आदेश के खिलाफ काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने 01 मार्च 2019 को विश्वनाथ मन्दिर (बीएचयू) से लंका गेट तक मार्च निकाला व लंका गेट पर सभा की। इससें पहले छात्र-छात्राओं ने विश्वनाथ मन्दिर पर एक नुक्कड़ नाटक भी किया, जिसमें विकास के नाम पर सरकार द्वारा आदिवासियों के जमीन छीनना दिखाया गया।

न्यायालय के आदेश-अनुसार आदिवासियों को विस्थापित किए जाने का कार्य मामले की अगली तारीख यानी 13 जुलाई से पहले किया जाना है।

शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से 17 राज्यों के मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किए हैं कि उन सभी मामलों में जहां भूमि स्वामित्व के दावे खारिज कर दिए गए हैं, उन्हें 12 जुलाई, 2019 तक बेदखल किया जाए। ऐसे मामलों में जहां सत्यापन/ पुन: सत्यापन/ पुनर्विचार लंबित है, राज्य को चार महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।

जंगलों से आदिवासियों की बेदखली का आदेश साफ-तौर पर इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि जल-जंगल जमीन को आदिवासियों से छीनकर सरकार कॉरपोरेट लूट के लिए रास्ता साफ कर रही है।

बीएचयू के छात्र-छात्राओं ने सरकार से ये भी मांग रखी कि संविधान में पांचवीं और छठवीं अनुसूची में आदिवासियों को जो अधिकार दिए गए हैं, उसका पालन किया जाय। सभा में अपनी बात रखते हुए बीएचयू के छात्र प्रेमचंद ओराँव ने कहा की जमीन आदिवासियों की है और यह सरकार आदिवासियों को उनके जीवन को छीनना चाहती है क्योंकि उनका जीवन जंगल से ही जुड़ा है।

छात्रा सुकृति ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि किस तरह कंपनियाँ जंगल, पहाड़ों को काटकर आदिवासियों का शोषण कर रही हैं और कारखाने से निकलने वाली गैसों और कचड़े को गाँव में ही दबा रही हैं। इससे वहाँ के लोगों और जानवरों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है।

आकांक्षा ने कहा कि कभी हमला सरकारें करती थीं, कभी सलवा जुडूम तो कभी ऑपरेशन ग्रीन, तो कभी ऑपरेशन समाधान के माध्यम से। विजेंद्र मीणा ने लोगों से अपील की कि बिरसा मुंडा की लड़ाई जंगल से निकालकर शहरों तक लाने की जरूरत है। रणधीर सिंह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इस आदेश पर कार्यवाही हुई तो पूरी मानवता खतरे में आ जायेगी, पूरा पर्यावरण बर्बाद कर दिया जायेगा। आने वाले समय में हवा भी खरीदनी पड़ेगी।

शोधछात्र प्रवीण नाथ यादव ने कहा कि जयपाल मुंडा के कड़े संघर्षों के कारण आदिवासियों के हक और अधिकारों, जल, जंगल, जमीन और पहाड़ों, उनकी बोल-चाल, रहन-सहन , गीत और संस्कृति के रक्षा के लिए पांचवी और छठवीं अनुसूचियाँ बनाई गईं, लेकिन देश में पिछले 70 वर्ष से कांग्रेस और अब भाजपा के बैनर तले ये दोनों अनुसूचियाँ जमीन पर नहीं उतर पायी हैं। इसलिए आज जयपाल सिंह मुंडा के संघर्षों को बिसराते हुए आदिवासियों से उनका जल, जंगल और जमीन छीने जा रहे हैं।

इस अघोषित आपातकाल के दौर में लोहिया जी की इस सीख कि "जिस दिन इस देश की सड़कें सूनी हो जायेंगी, उस दिन इस देश की संसद आवारा हो जायेगी' से प्रेरणा लेते हुए हम सभी किसानों, आदिवासियों और छात्रों-नौजवानों को सड़क पर उतर कर जनेऊ लीला के खिलाफ निर्णायक संघर्ष का बिगुल फूँक देना चाहिए।

बीएचयू के पूर्व छात्र नेता अफलातून देसाई ने कहा कि हजारों साल से जंगलों में रहने वाले आदिवासी जल, जंगल और जमीन के कुदरती मालिक हैं। संविधान की पाँचवी और छठवीं अनुसूचियाँ इसीलिए बनाई गई हैं। आदिवासियों से उनका जल, जंगल और जमीन को छीनकर उन्हें बेदखल करना देश और संविधान के खिलाफ है।

सभा को सम्बोधित करने वालों में मोहित, सुकृति, कृतिका, निकिता, आकांक्षा, रविन्द्र भारती, संजीत और चिंतामणि सेठ थे। कार्यक्रम का संचालन अनुपम ने किया। छात्र-छात्राओं ने हूल जोहार, जमीन हमारी आपकी, नहीं किसी के बाप की, जो जमीन को जोते-बोए, वो जमीन का मालिक हुए, पत्थलगड़ी आंदोलन जिंदाबाद, जैसे अनेक नारे लगाये।

सभा में चन्द्रनाथ निषाद, मारुति, जयलाल, अनामिका, निशि, पप्पू, आशीष, रणजीत भारती, सुभांगी, सौम्या, सविता, श्वेता, नीलेश, सपना, मंजू, समीर, अनुज, समन, पुनीत, पूनम, रोहन, सुधीर, सुजीत, रोहित, राजेश, सुनील समेत सैकड़ों की संख्या में छात्र और सामाजिक न्याय पसंद लोगों ने सहभागिता की। सभी लोगों ने अपील की कि जब तक यह तानाशाही फैसला वापस नहीं लिया जायेगा, तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।

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