भाजपा में भितरघात खुलकर सामने आ रहा है, जिसमें मेयर प्रत्याशियों को हराने की योजना को रोज मूर्त रूप दिया जा रहा है। इस मुहिम में छोटी से लेकर बड़ी सभी इकाईयां पूरी शिददत से जुटी नजर आती हैं...
हल्द्वानी से राजेश सरकार की रिपोर्ट
जनज्वार। कहावत है कि आदमी दुनिया जीत सकता है, पर घर में हारना उसकी विवशता होती है। ये कहावत अब हल्द्वानी में भाजपा प्रत्याशी डॉ जोगेंद्र सिंह रौतेला पर चरितार्थ होती नजर आ रही है। निकाय चुनाव और सत्ता संघर्ष का एक नया उदाहरण अब राज्य की जनता के सामने आने वाला है। जहां सारे दल अपने-अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं, वहीं भाजपा में इसके उलट चल रहे खेल की खबरें आ रही हैं।
साफ सुथरी छवि के जोगेंद्र को हराने के लिए वो ही ज्यादा जोर लगा रहे हैं, जिन्हें उनको जिताने के लिए जिम्मेदारियां सौंपी गयी हैं। इन जिम्मेदारियों को निभाने का दबाव पहले संगठन का माना जा रहा था, पर बादल छंटते-छंटते पता चला कि ये दबाव मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरफ से बनाया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद पर त्रिवेंद्र का रहना, न रहना राज्य में हो रहे निकाय चुनाव के नतीजों पर निर्भर होगा।
यहां उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में संघ और कारोबारियों के बीच समन्वयन बनाने में त्रिवेंद्र असफल रहे हैं, जिससे कारोबारियों (भाजपाई नेताओं) और त्रिवेंद्र के बीच कोई स्वस्थ रिश्ता पनप नहीं पाया, जिसके चलते अधिकांश भाजपाई त्रिवेंद्र की खिलाफत करते हुए नेतृत्व परिवर्तन का राग अलापने लगे। जानकार सूत्र बताते हैं कि ये राग जब सत्ता शीर्ष पर पहुंचा तो त्रिवेंद्र को चेतावनी दी गई कि आपकी कुर्सी तभी सलामत रह पाएगी, जब राज्य में निकाय चुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में होंगे।
इस स्थिति का भान होते ही त्रिवेंद्र ने कमर कस सभी विरोधियों को चिन्हित कर उन्हीं को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंप दी। बात इस कदर बड़ी कि विरोधियों को आईने भी दिखाये गए और कैबिनेट मिनिस्ट्री से बेदखली की बात भी कही गई तो मजबूरन मंत्री-संत्री अब प्रत्याशी के प्रचार में जाने को मजबूर हुए।
लेकिन इन मोटी खाल वालों का ईमान कहां बदलने वाला था। ये प्रचार में उतरे भी तो त्रिवेंद्र का तख्ता पलटने की मंशा से। ये मंशा तभी पूरी होगी जब मेयर प्रत्याशी हारेंगे। यानी दिखावे के प्रचार के साथ भितरघात की रणनीति।
यूं तो त्रिवेंद्र सरकार में न नौकरशाह खुश रहे और न ही सरकारी महकमा। कारोबारी भाजपाई पहले से ही नाखुश थे तो वृहद दायरा त्रिवेंद्र को हटाने का हिमायती बन गया। आम भाषा में कहा जाए तो त्रिवेंद्र रावत कथित जीरो टालरेंस को यथार्थ समझ बैठे थे और भाजपा का मुखौटा लगाए कारोबारियों की राह में रोड़ा बन बैठे। इसलिए त्रिवेंद्र को हटाने की मुहिम ने जोर पकड़ लिया।
बदकिस्मती कहें या हालत, इस बीच निकाय चुनाव अचानक सिर पर आ गए। चुनाव आते ही विरोधियों को नया अवसर मिल गया जिसके तहत त्रिवेंद्र को हटाया जा सकता है, और वो है निकाय चुनाव में शिकस्त देना।
निकाय चुनाव में त्रिवेंद्र को तभी शिकस्त दी जा सकती है जब उनके द्वारा तय किये गए प्रत्याशियों को जिताने के बजाए हरा दिया जाए। इसी मकसद से भाजपा में भितरघात तय कूटनीति का बड़े हिस्से के रूप में उभर कर सामने आ रहा है, जिसमें मेयर प्रत्याशियों को हराने की योजना को रोज मूर्त रूप दिया जा रहा है। इस मुहिम में छोटी से लेकर बड़ी सभी इकाईयां पूरी शिददत से जुटी नजर आती हैं। मेयर प्रत्याशियों के लिए ये मुहिम कितनी खतरनाक साबित होगी समझना मुश्किल नहीं है।
संगठन महामंत्री संजय कुमार का ‘मी-टू’ प्रकरण पहले ही भाजपा के लिए एक श्राप—सा साबित हुआ है। ऊपर से हर मेयर प्रत्याशी के प्रचार और अन्य जिम्मेदारियां भी संजय कुमार के करीबियों के हाथ ही हैं। हल्द्वानी इन सबसे अछूता नहीं है। यहां तो मीडिया सलाहकार और मीडिया मैनेजमैंट में बैठे लोगों में संजय कुमार के बेहद नजदीकी हैं। ऐसे में हल्द्वानी मेयर सीट पर जोगेंद्र रौतेला कैसे सीट निकाल पाएंगे, कहना मुश्किल है। त्रिवेंद्र को गिराने के लिए भाजपा को अपने काबिल मेयर प्रत्याशी को हराना तय हुआ है।
प्रत्याशियों की हार इसलिए सुनिश्चित की गयी होगी, क्योंकि त्रिवेन्द्र उमेश शर्मा के स्टिंग आॅपरेंशन से बच जो निकले। त्रिवेन्द्र स्टिंग आपरेंशन में फंसकर हटाए जाते तो शायद अपने ही प्रत्याशियों को हराने का प्रपंच कारोबारी भाजपाईयों को नहीं रचना पड़ता। लेकिन कारोबारी भाजपाई यह भूल रहे हैं कि यह प्रपंच भाजपा को आगामी चुनावो में कितना भारी पडे़गा।