केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नहीं करता किसी तरह के प्रदूषण का निवारण
वर्ष 2011 में कुल 150 प्रदूषित नदी क्षेत्र थे, वर्ष 2015 में 302 हो गए और वर्ष 2017 में देश में 351 प्रदूषित नदी क्षेत्र थे
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
हाल में ही केन्द्रीय बोर्ड से जब ये पूछा गया कि यह संस्था प्रदूषण निवारण के लिए क्या काम करती है, तब जवाब में केन्द्रीय बोर्ड ने बताया के देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक, हिंडन नदी के लिए एक मॉडल एक्शन प्लान बनाया गया है। आश्चर्य तो यह है कि मॉडल एक्शन प्लान के बाद भी हिंडन नदी लगातार और प्रदूषित होती जा रही है। इस जवाब में प्रदूषित नदी क्षेत्र की चर्चा भी है, पर तथ्य तो यह है कि देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
पर्यावरणविद ब्रज किशोर झा के अनुसार गंगा की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे संस्थान प्रदूषण का निवारण नहीं करते, बल्कि नियंत्रण का प्रयास करते हैं और असफल रहते हैं।
केन्द्रीय बोर्ड के अनुसार देश की नदियों पर वर्ष 2011 में कुल 150 प्रदूषित नदी क्षेत्र थे, वर्ष 2015 में 302 हो गए और वर्ष 2017 में देश में 351 प्रदूषित नदी क्षेत्र थे। इसके बाद भी केन्द्रीय बोर्ड नदियों में प्रदूषण के नियंत्रण के लिए अपनी पीठ थपथपाना चाहे तो इसे हास्यास्पद की कहा जा सकता है।
नदियों में प्रदूषण रोकने के लिए इसकी पूरी जानकारी जरूरी है और केन्द्रीय बोर्ड के पास यह जानकारी भी नहीं है। प्रदूषण मापने के जो तरीके 1980 के दशक में अपनाए गए थे वही आज भी चल रहे हैं। केन्द्रीय बोर्ड के अनुसार नदियां केवल शहरों के गंदे पानी से प्रदूषित हो रही हैं, जबकि नदियों के विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसी स्थिति कब की बदल चुकी है। अब तो नदियों का प्रदूषण एक जटिल विषय है, इसमें कीटनाशक भी हैं, भारी धातु भी हैं, प्लास्टिक के अति-सूक्ष्म टुकड़े भी हैं और अनेक विषैले पदार्थ भी हैं।
जिस दिन प्रदूषण का निवारण करने पर जोर दिया जाएगा, उसी समय से प्रदूषण पर लगाम लगानी शुरू होगी, पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रवैय्ये से ऐसा निकट भविष्य में संभव तो नहीं लगता।